सूर्य-चन्द्र सम शंख यह, बसे वरुण मध्यांग |
ब्रम्हा बैठे पृष्ठ पर, अग्र सरस्वति-गंग |
अग्र सरस्वति-गंग, विराजे रविकर वाणी |
जाय जीत हर जंग, निकलती धुनि कल्याणी |
पाये चौदह रत्न, रत्न यह हर हर बम बम |
ब्रम्हा विष्णु महेश, भगवती सूर्य चन्द्र सम ||
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होती जिनसे चूक है, कहते उन्हें उलूक |
असत्यमेव लभते सदा, यदा कदा हो चूक |
यदा कदा हो चूक, मूक रह कर के लूटो |
कह रविकर दो टूक, लूट के झटपट फूटो |
बोलो सतत असत्य, डूब के खोजो मोती |
व्यवहारिक यह कथ्य, सदा जय इससे होती ||
असत्यमेव लभते सदा, यदा कदा हो चूक |
यदा कदा हो चूक, मूक रह कर के लूटो |
कह रविकर दो टूक, लूट के झटपट फूटो |
बोलो सतत असत्य, डूब के खोजो मोती |
व्यवहारिक यह कथ्य, सदा जय इससे होती ||
भूला रोटी प्याज भी, अब मिलती ना भीख | नमक चाट कर जी रहे, ले तू भी ले चीख | ले तू भी ले चीख, चीख पटना में सुनकर | हुआ खफा गुजरात, हमें लगता है रविकर | राहुल बाँटे अन्न, सकल जनतंत्र कबूला | मोदी छीने स्वाद, नमक भिजवाना भूला || |
सचिन! एक चिट्ठी तुम्हारे लिये....
Ankur Jain
बहा नाक से खून पर, जमा पाक में धाक |
चौबिस वर्षों तक जमा, रहा जमाना ताक |
रहा जमाना ताक, टेस्ट दो सौ कर पूरे |
कर दे ऊँची नाक, बहा ना अश्रु जमूरे |
चला मदारी श्रेष्ठ, दिखाके करतब नाना |
ले लेता संन्यास, उम्र का करे बहाना |।
वानखेड़े में राहुल
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(1) हुल्लड़ बाजी हो रही, राहुल रहे विराज | सचिन हुवे आउट चलो, रैली में ले आज | रैली में ले आज, बैट का देखें जलवा | राज्य सभा का कर्ज, इधर मोदी भौकलवा | मोदी मोदी शोर, भीड़ कर बैठी फाउल | मौका अपना ताड़, भाग लेते हैं राहुल || (2) चौका या छक्का नहीं, बड़ा देश परिवार | मौका पा धक्का लगा, कर दे बेड़ा पार | कर दे बेड़ा पार, वानखेड़े की गोदी | अनायास ही शोर, हो रहा मोदी मोदी | पूरे दो सौ टेस्ट, ऐतिहासिक था मौका | सचिन नहीं वह और, लगाया जिसने चौका || |
प्रशस्ति-गान...
Amrita Tanmay
व्यापारिक वह धूर्तता, इधर मूर्खता शुद्ध | महिमामंडित होय जग, जीत-जीत हर युद्ध | जीत-जीत हर युद्ध , अहिंसा पूज बुद्ध की | हुवे टिकट कुल ब्लैक, फैंस को बोर्ड क्रुद्ध की | सचिन बहुत आभार, लगे रविकर अपनापा | कृपा ईश की पाय, आज कण कण में व्यापा | |
कार्टून:- आओ कबाड़ी, आओ.
ना ही शिक्षक हूँ अमे, ना ही कोई चोर |
बड़ा समीक्षक समझ ले, लाया बुक्स बटोर |
लाया बुक्स बटोर, नए पैदा कवि लेखक |
नई पौध का जोर, कहाँ तक चखता बक बक |
देते पुस्तक भेज, दक्षिणा नहिं मनचाही |
इनसे रहा वसूल, कहाँ है बोल मनाहीं -
सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई-
पाई नाव चुनाव से, खर्चे पूरे दाम |
लूटो सुबहो-शाम अब, बिन सुबहा नितराम |
बिन सुबहा नितराम, वसूली पूरी करके |
करके काम-तमाम, खजाना पूरा भरके |
सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई |
थाम नाव पतवार, जमा कर पाई पाई ||
लाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर, दंड नहीं कुछ ख़ास |
दंड नहीं कुछ ख़ास, व्यवस्था दीर्घ-सूत्रता |
विधि-विधान का नाश, लोक का भाग्य फूटता ।
बेचारा यह देश, लगा अब धैर्य छूटने ।
भोगे जन-गण क्लेश, लगे सब लाज लूटने ॥
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आदरणीय सर , बढ़िया सूत्र , धन्यवाद
ReplyDelete" जै श्री हरि: "
सुंदर सचिनमय चर्चा !
ReplyDeleteराहुल बाँटे अन्न, सकल जनतंत्र कबूला |
ReplyDeleteमोदी छीने स्वाद, नमक भिजवाना भूला ||
सुन्दर !
राहुल बाँटे अन्न, सकल जनतंत्र कबूला |
ReplyDeleteमोदी छीने स्वाद, नमक भिजवाना भूला ||
सटीक प्रासंगिक
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (17-11-2013) को "लख बधाईयाँ" (चर्चा मंचःअंक-1432) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गुरू नानक जयन्ती, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मँहगाई की मार से, बेहतर तू ही मार -
ReplyDeleteये क्या नमक फांकेगा ?
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भूला रोटी प्याज भी, अब मिलती ना भीख |
नमक चाट कर जी रहे, ले तू भी ले चीख |
ले तू भी ले चीख, चीख पटना में सुनकर |
हुआ खफा गुजरात, हमें लगता है रविकर |
राहुल बाँटे अन्न, सकल जनतंत्र कबूला |
मोदी छीने स्वाद, नमक भिजवाना भूला ||