Saturday, 2 November 2013

"ताल-कटोरा" पाय, लगाते घोंघे गोते-


बापू होते खेत इत, भारत चाचा खेत |
सेत-मेत में पा गए, वंशावली समेत |

वंशावली समेत, समेंटे सत्ता सारी |
  मद कुल पर छा जाय, पाय के कुल-मुख्तारी |

"ताल-कटोरा" आय, लगाते घोंघे गोते |
धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -

सदाचार-शुचि-योग से, करे पुष्ट त्यों देह -

(1)
जिंक-पर्त बिन लौह को, खाये जैसे जंग । 
नियत ताप आर्द्रता बिन, बदले मक्खन रंग। 
बदले मक्खन रंग, ढंग मानव अलबेला। 
पापड़ बेला ढेर, कष्ट बेला ही झेला । 
बिना बिटामिन खनिज, पार नहिं होंगे दुर्दिन ।  
लौह-देह भी नष्ट, बचे नहिं जिंक पर्त बिन ।  
(2)
रखता सालों-साल ज्यों, रविकर सुदृढ़ गेह । 
सदाचार-शुचि-योग से, करे पुष्ट त्यों देह । 
करे पुष्ट त्यों देह, मरम्मत टूट फूट की । 
सेहत के प्रतिकूल, कभी ना जिभ्या भटकी । 
खट्टे फल सब्जियां, विटामिन सी नित चखता । 
यही विटामिन सुपर, निरोगी हरदम रखता ॥ 


सरदार पर सियासत

S.N SHUKLA 
लोहा है हर देह में, भरा अंग-प्रत्यंग |

मगर अधिकतर देह में, मोह-मेह का जंग |

मोह-मेह का जंग, जंग लड़ने से डरता |


नीति-नियम से पंगु, कीर्ति कि चिंता करता |

लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |



किया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा || 


हथेली में तिनका छूटने का अहसास

प्रकृति के साथ

बोझिल यह जीवन दिखे, अलस पसरता गेह |
खोटी दिनचर्या हुई, मोटी होती देह |

मोटी होती देह, मेह से भीगे धरती |
प्राणदायिनी वायु, देख ले दृश्य कुदरती |

करले रविकर ध्यान, मोक्ष ही अंतिम मंजिल |
बढ़िया यह आख्यान, लेख बिलकुल नहिं बोझिल ||



पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-रविकर


पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |


सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |

कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |

जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||


वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी 
पावली=चवन्नी 
गावदी = मूर्ख / अबोध



8 comments:

  1. बहुत सुंदर. दीपोत्सव की मंगलकामनाएँ !!
    नई पोस्ट : कुछ भी पास नहीं है

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  2. सुंदर सूत्र संकलन !
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !

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  3. सुन्दर दीपों की लड़ियाँ , मंगलमय दीप पर्व

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  4. वाह! क्या बात है! फिर आई दीवाली
    आपको दीपावली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

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  5. लोहा है हर देह में, भरा अंग-प्रत्यंग |

    मगर अधिकतर देह में, मोह-मेह का जंग |

    मोह-मेह का जंग, जंग लड़ने से डरता |

    नीति-नियम से पंगु, कीर्ति कि चिंता करता |

    लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |


    किया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा ||

    रविकर का ज़वाब नहीं एक मर्म को पकड़ के लेख की आत्मा को ढ़ाल देते हैं कुंडली में .बधाई उत्सव त्रयी की .

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  6. सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।

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  7. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति !
    दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाए...!
    ===========================
    RECENT POST -: दीप जलायें .

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  8. अवध उस स्थान कहते हैं जहां किसी का वध न हो .लेकिन ये अवध नरेश के समय की बात है अब तो वहाँ सेकुलर प्रेत रहते हैं सरकार में .सुन्दर प्रस्तुति .मान्यवर अपनी मेल चेक करें .

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