बापू होते खेत इत, भारत चाचा खेत |
सेत-मेत में पा गए, वंशावली समेत |
वंशावली समेत, समेंटे सत्ता सारी |
मद कुल पर छा जाय, पाय के कुल-मुख्तारी |
"ताल-कटोरा" आय, लगाते घोंघे गोते |
धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -
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सदाचार-शुचि-योग से, करे पुष्ट त्यों देह -
(1)
जिंक-पर्त बिन लौह को, खाये जैसे जंग ।
नियत ताप आर्द्रता बिन, बदले मक्खन रंग।
बदले मक्खन रंग, ढंग मानव अलबेला।
पापड़ बेला ढेर, कष्ट बेला ही झेला ।
बिना बिटामिन खनिज, पार नहिं होंगे दुर्दिन ।
लौह-देह भी नष्ट, बचे नहिं जिंक पर्त बिन ।
(2)
रखता सालों-साल ज्यों, रविकर सुदृढ़ गेह ।
सदाचार-शुचि-योग से, करे पुष्ट त्यों देह ।
करे पुष्ट त्यों देह, मरम्मत टूट फूट की ।
सेहत के प्रतिकूल, कभी ना जिभ्या भटकी ।
खट्टे फल सब्जियां, विटामिन सी नित चखता ।
यही विटामिन सुपर, निरोगी हरदम रखता ॥
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सरदार पर सियासत
S.N SHUKLA
लोहा है हर देह में, भरा अंग-प्रत्यंग |मगर अधिकतर देह में, मोह-मेह का जंग | मोह-मेह का जंग, जंग लड़ने से डरता | नीति-नियम से पंगु, कीर्ति कि चिंता करता | लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |
किया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा ||
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हथेली में तिनका छूटने का अहसासबोझिल यह जीवन दिखे, अलस पसरता गेह | खोटी दिनचर्या हुई, मोटी होती देह | मोटी होती देह, मेह से भीगे धरती | प्राणदायिनी वायु, देख ले दृश्य कुदरती | करले रविकर ध्यान, मोक्ष ही अंतिम मंजिल | बढ़िया यह आख्यान, लेख बिलकुल नहिं बोझिल || |
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-रविकर
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
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बहुत सुंदर. दीपोत्सव की मंगलकामनाएँ !!
ReplyDeleteनई पोस्ट : कुछ भी पास नहीं है
सुंदर सूत्र संकलन !
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सुन्दर दीपों की लड़ियाँ , मंगलमय दीप पर्व
ReplyDeleteवाह! क्या बात है! फिर आई दीवाली
ReplyDeleteआपको दीपावली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
लोहा है हर देह में, भरा अंग-प्रत्यंग |
ReplyDeleteमगर अधिकतर देह में, मोह-मेह का जंग |
मोह-मेह का जंग, जंग लड़ने से डरता |
नीति-नियम से पंगु, कीर्ति कि चिंता करता |
लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |
किया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा ||
रविकर का ज़वाब नहीं एक मर्म को पकड़ के लेख की आत्मा को ढ़ाल देते हैं कुंडली में .बधाई उत्सव त्रयी की .
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteदीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाए...!
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RECENT POST -: दीप जलायें .
अवध उस स्थान कहते हैं जहां किसी का वध न हो .लेकिन ये अवध नरेश के समय की बात है अब तो वहाँ सेकुलर प्रेत रहते हैं सरकार में .सुन्दर प्रस्तुति .मान्यवर अपनी मेल चेक करें .
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