सोना-चांदी मार्का, च्वयनप्राश जो खाय ।
नित खाए बादाम जो, अक्ल शर्तिया आय । अक्ल शर्तिया आय, सदा जो रहिये खाते। दिन दूनी बढ़ जाय, नाम भी रहो कमाते । रविकर बिलकुल झूठ, छोड़ बादाम चबाना । अक्ल चाहिए तो, शुरू कर ठोकर खाना ।। |
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर-
मोटर में लिख घूमते, माँ का आशिर्वाद ।
जय माता दी बोलते, नित पावन अरदास ।
नित पावन अरदास, निकल माँ बाहर घर से ।
रोटी को मुहताज, कफ़न की खातिर तरसे ।
कह रविकर पगलाय, कहीं खाती माँ ठोकर ।
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर ।।
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गेंडुरी-4
भौंरा उवाच
बढ़ी रार को देखकर, भौरें ने की बात ।
मक्खी मच्छर से कहे, पहचानो औकात ।
पहचानो औकात, रात दिन के ये झगड़े । ये मानव बद्जात, चुटुक से रिश्ते रगड़े । तुम दोनों तो गैर, जुल्म अपनों पर ढाए । तुम आखिर क्या चीज, बीज तक कई मिटाए । |
मेरे सपनों के भारत में, मोटा मोटा कोटा होगा-
मेरे सपनों के भारत में, मोटा मोटा कोटा होगा ।
बड़ा बड़प्पन रखे जेब में, चालू पुर्जा छोटा होगा ।|
गली गली में गदहा लोटा, भांग भरा हर लोटा होगा ।
नकली दाना दवा दिवाना, असली नस्ली टोटा होगा ।| |
चर्चा-मंच प्रणाम, चलो कल होंय हजारी - रविकर
है हजार हाथा-हथी, हथिनी हथ हथियार ।
हथियाया हरदम हटकि, हरसाया हरबार ।
हरसाया हरबार, सभी हे *चर्चा-कारों ।
नए-पुराने विज्ञ, नेह शाश्वत स्वीकारो ।
चर्चा-मंच प्रणाम, चलो कल होंय हजारी।
पाठक ब्लॉगर जगत, हुआ रविकर आभारी ।। |
अक्षर लड़ते हैं कभी, हो शब्दों में युद्ध |
कवि भी कैसे खेलता, हो भावों से क्रुद्ध |
हो भावों से क्रुद्ध, शुद्ध काया का चक्कर |
रहे एक की जगह, शब्द दो मारें टक्कर |
काया जो अस्वस्थ, पंक्ति टेढ़ी हो जाती |
बुद्धि का क्या दोष, यही काया भरमाती ||
कवि भी कैसे खेलता, हो भावों से क्रुद्ध |
हो भावों से क्रुद्ध, शुद्ध काया का चक्कर |
रहे एक की जगह, शब्द दो मारें टक्कर |
काया जो अस्वस्थ, पंक्ति टेढ़ी हो जाती |
बुद्धि का क्या दोष, यही काया भरमाती ||
मज़ा आया जनाब ...
ReplyDeleteआपकी काव्यमयी टिप्पणियाँ उत्प्रेरक का काम करती हैं!
ReplyDeleteमंगलवार, 11 सितम्बर 2012
ReplyDeleteदेश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
आज भारत के लोग बहुत उत्तप्त हैं .वर्तमान सरकार ने जो स्थिति बना दी है वह अब ज्यादा दुर्गन्ध देने लगी है .इसलिए जो संविधानिक संस्थाओं को गिरा रहें हैं उन वक्रमुखियों के मुंह से देश की प्रतिष्ठा की बात अच्छी नहीं लगती .चाहे वह दिग्विजय सिंह हों या मनीष तिवारी या ब्लॉग जगत के आधा सच वाले महेंद्र श्रीवास्तव साहब .
असीम त्रिवेदी की शिकायत करने वाले ये वामपंथी वहीँ हैं जो आपातकाल में इंदिराजी का पाद सूंघते थे .और फूले नहीं समाते थे .
त्रिवेदी जी असीम ने सिर्फ अपने कार्टूनों की मार्फ़त सरकार को आइना दिखलाया है कि देखो तुमने देश की हालत आज क्या कर दी है .
अशोक की लाट में जो तीन शेर मुखरित थे वह हमारे शौर्य के प्रतीक थे .आज उन तमाम शेरों को सरकार ने भेड़ियाबना दिया है .और भेड़िया आप जानते हैं मौक़ा मिलने पर मरे हुए शिकार चट कर जाता है .शौर्य का प्रतीक नहीं हैं .
असीम त्रिवेदी ने अशोक की लाट में तीन भेड़िये दिखाके यही संकेत दिया है .
और कसाब तो संविधान क्या सारे भारत धर्मी समाज के मुंह पे मूत रहा है ये सरकार उसे फांसी देने में वोट बैंक की गिरावट महसूस करती है .
क्या सिर्फ सोनिया गांधी की जय बोलना इस देश में अब शौर्य का प्रतीक रह गया है .ये कोंग्रेसी इसके अलावा और क्या करते हैं ?
क्या रह गई आज देश की अवधारणा ?चीनी रक्षा मंत्री जब भारत आये उन्होंने अमर जवान ज्योति पे जाने से मना कर दिया .देश में स्वाभिमान होता ,उन्हें वापस भेज देता .
बात साफ है आज नेताओं का आचरण टॉयलिट से भी गंदा है .
टॉयलट तो फिर भी साफ़ कर लिया जाएगा .असीम त्रिवेदी ने कसाब को अपने कार्टून में संविधान के मुंह पे मूतता हुआ दिखाया है उसे नेताओं के मुंह पे मूतता हुआ दिखाना चाहिए था .ये उसकी गरिमा थी उसने ऐसा नहीं किया .
सरकार किस किसको रोकेगी .आज पूरा भारत धर्मी समाज असीम त्रिवेदी के साथ खड़ा है ,देश में विदेश में ,असीम त्रिवेदी भारतीय विचार से जुड़ें हैं .और भारतीय विचार के कार्टून इन वक्र मुखी रक्त रंगी लेफ्टियों को रास नहीं आते इसलिए उसकी शिकायत कर दी .इस देश की भयभीत पुलिस ने उसे गिरिफ्तार कर लिया .श्रीमान न्यायालय ने उसे पुलिस रिमांड पे भेज दिया .
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मेरे सपनों के भारत में, मोटा मोटा कोटा होगा-
ReplyDeleteमेरे सपनों के भारत में, मोटा मोटा कोटा होगा ।
बड़ा बड़प्पन रखे जेब में, चालू पुर्जा छोटा होगा ।|
गली गली में गदहा लोटा, भांग भरा हर लोटा होगा ।
बहुत बढ़िया रविकर जी .
बेहतरीन हमेशा की तरह !
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