Monday, 10 September 2012

सफल साधना हो गई, जमा विमोचन रंग-रविकर



Rajesh Kumari   

सफल साधना हो गई, जमा विमोचन रंग |
खंडूरी जी का सुलभ, सतत समय सत्संग | 

सतत समय सत्संग, गंग की कृपा अनोखी |
पढ़कर पाठक दंग, जंग कर्नल की चोखी |

रविकर परम प्रसन्न, पर्व इक पुन: नाधना |
आऊंगा इस बार, विमोचन सफल साधना ||




"हमारी नियति" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

नीति-नियत पर दृष्टि है, रहा नियंता देख |
चन्द्रगुप्त की लेखनी, प्रभु जांचे आलेख |
प्रभु जांचे आलेख, जँचे न इनकी करनी |
उड़े हवा में ढेर, समय पर सकल बिखरनी |
अपनों को यदि भूल, छलेगा अपना रविकर |
पायेगा वह दंड, भरोसा नीति नियत पर ||




नज़रिया

मनोज कुमार
विचार  
 हलवाई झपड़ा रहा, छोटू को दिन रात ।
सदा बात बेबात पर, दिखलाए औकात ।
दिखलाए औकात, पालता छोटू कुत्ता
अब खाए जब लात, छड़ी से मारे इत्ता ।
हो जाए संतोष, पिटे पर करे पिटाई ।
वा रे छोटू नीति, दुष्ट कितना हलवाई ।।



क्या "नेशनल टायलेट" है संसद ?

महेन्द्र श्रीवास्तव 
सीमा से बाहर गए, कार्टूनिस्ट असीम |
झंडा संसद सिंह बने, बेमतलब में थीम |
बेमतलब में थीम, यहाँ आजम की डाइन |
कितनी लगे निरीह, नहीं अच्छे ये साइन |
अभिव्यक्ति की धार, भोथरी हो ना जाये |
खींचो लक्ष्मण रेख, स्वयं अनुशासन लाये || 



चलो मैं तुम्‍हारे साथ चलती हूँ !!!

सदा 
 मन्त्रों में जो शब्द हैं, उन शब्दों में शक्ति ।
कठिन परिस्थित से भरे, निबटा जिनसे व्यक्ति ।
 निबटा जिनसे व्यक्ति, चेतना जागृत करते ।
नई ऊर्जा भक्ति, चुनौती खातिर भरते ।
पावन माँ की सीख, करे सब ईश्वर अच्छा ।
अनुभव से इंसान, कर सके रविकर रक्षा ।।




इंडियन मीडिया सेंटर :उज्जैन यात्रा

महाकाल के दर्श कर, घूमे जब उज्जैन ।
तन थक कर था चूर पर, मन को मिलता चैन ।
मन को मिलता चैन, रैन में  बेचा घोड़ा ।
सोया गहरी नींद, भिखारी किन्तु निगोड़ा ।
देता मुझे जगाय, बताये वह क्यों तगड़ा ।
सिंहासन बत्तीस, करे है सारा रगड़ा  ।।




बहुत बड़ा कानूनची, व्यापारी बड़वार |
करता छोटा  इंच छ:, जो भी जिम्मेदार |
जो भी जिम्मेदार, सभी धंधे होने दे |
कुछ की बम बम बूम, कई को तू रोने दे |
मिलता है राजस्व, राज यम-राज चले है |
धंधे में दे दखल, राम को बहुत खले है ||
 

तब ध्यान करो प्रकृति की तरफ.....


छंदों की महिमा गजब, चर्चित यह सन्देश |
कविता कर लो या पढो, ध्यान करो अनिमेष |
ध्यान करो अनिमेष, आत्म उत्थान जरुरी  |
सच्चा व्यक्ति विशेष, होय अभिलाषा पूरी |
रचते पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की |
सच्चा हो ईमान, बड़ी महिमा छंदों की ||

अपने ही दिल का सताया हुआ हूँ

गम का मरहम ले लगा, अगर दगा यह जिस्म |
रब का पहरा ले बचा, किया वहम किस किस्म |
किया वहम किस किस्म, अश्क के सागर नागर |
शेरो में भर दिया, गजब का भाव बिरादर |
करता किन्तु सचेत, फैक्टरी उनकी चालू |
चालू गम निर्माण, रवैया बेहद टालू ||

Anil Singh :maa

Aziz Jaunpuri 
 
मोटर में लिख घूमते, माँ का आशिर्वाद ।
जय माता दी बोलते, नित पावन अरदास ।

नित पावन अरदास, निकल माँ बाहर घर से ।
रोटी को मुहताज, कफ़न की खातिर तरसे ।

कह रविकर पगलाय, कहीं खाती माँ ठोकर ।
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर ।।


सरकार के सर में दर्द?? !!!


  लगा तेल नवरत्न का, मोहन बोले आज ।
सिरदर्दी कम न हुई, सर सर सर आवाज ।
सर सर सर आवाज, दर्द मीडिया बढाए ।
नवरत्नों पर गाज, भूल से हमीं गिराए ।
जनता भोरी मस्त, त्रस्त न हमको करती ।
डरते सारे लोग, मीडिया किन्तु अकड़ती ।। 


शब्दों पर पहरे !

संतोष त्रिवेदी 
 

बड़ा वाकया मार्मिक, संवेदना असीम |
व्यंग विधा इक आग है, चढ़ा करेला नीम |
चढ़ा करेला नीम, बहुत अफसोसनाक है |
परंपरा यह गलत, बहुत ही खतरनाक है |
लेकिन मेरे मित्र, खींच के लक्ष्मण रेखा |
खींचे जाएँ चित्र, करें न हम अनदेखा ||



उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक  <a href="http://dineshkidillagi.
blogspot.in/"> लिंक-लिक्खाड़ </a>  पर  है ।।

आज के और लिंक 

रविकर नहीं अनाथ, व्यर्थ तू दमके बमके-

11 comments:

  1. अच्छे लिंक्स
    मुझे भी शामिल करने के लिए आभार

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  2. बहुत सुंदर !
    राजेश जी को बहुत बहुत बधाई !

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  3. वाह!
    आज तो सभी को टिपिया दिया!
    आम के आम,
    गुठलियों के दाम!

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  4. पढ़ते ताबड़तोड़ छंद पर छंद गढ़ रहे
    कर कविवर कमाल झंडे खूब गड़ रहे।:)

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  5. राजेश जी को बहुत बहुत बधाई !

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  6. लिखते ताबडतोड है,कुण्डलियाँ के छंद
    दिनेश की दिल्लगी पढ़,रह जाते है दंग,,,,

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  7. बहुत बढिया व्यंजना .बढ़िया गजब प्रस्तुति इतने बड़े फलक पर .

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  8. सपना साकार हुआ ,मेरी पुस्तक का विमोचन (पूर्व मुख्य मंत्री उत्तराखंड)बी सी खंडूरी जी के करकमलों द्वारा सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |
    Rajesh Kumari
    HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR

    सफल साधना हो गई, जमा विमोचन रंग |
    खंडूरी जी का सुलभ, सतत समय सत्संग |

    सतत समय सत्संग, गंग की कृपा अनोखी |
    पढ़कर पाठक दंग, जंग कर्नल की चोखी |

    रविकर परम प्रसन्न, पर्व इक पुन: नाधना |
    आऊंगा इस बार, विमोचन सफल साधना ||

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  9. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।अच्छे लिंक्स

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  10. आदरणीय रविकर सर सुन्दर लिंक्स संयोजन मेरी रचना को स्थान मिला तहे दिल से शुक्रिया

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