"जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई"दीदी जी स्वीकारिये, मेरा यह उपहार । जन्म दिवस की दे रहा, शुभकामना अपार । शुभकामना अपार, आपके श्री चरणन में । दिवस बिठाये चार, अमोलक मम जीवन में । रविकर करे प्रणाम, स्वस्थ तन मन से रहिये । मिले सभी का स्नेह, सदा जय माता कहिये ।। |
चर्खी हुई चाकरी
मनोज कुमार
नए नए हर दिन पड़े, यक्ष-प्रश्न मम कक्ष । यक्ष-प्रश्न मम कक्ष, सुबह से शाम हो रही । होता दही दिमाग, युधिष्ठिर कथा अनकही । करे पलायन नित्य, छोड़कर जान चार की । नित चिक चिक फटकार, वहां भी सुनूँ नार की । |
स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप ।
समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी ।
कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी ।
कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा ।
रावण-बध परिणाम, मारती मन्त्र मन्थरा ।।
*व्यग्र
*आपातकाल
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कथा-सारांश : भगवती शांता परम-19
चौपाई
रावण की दारुण अय्यारी | कौशल्या पर पड़ती भारी ||
कौशल्या का हरण कराये | पेटी में धर नदी बहाए ||
दशरथ संग जटायू धाये | पेटी सागर तट पर पाए ||
नारायण जप नारद आये | कौशल्या संग व्याह कराये ||
अवध नगर में खुशियाँ छाये | खर-दूषण योजना बनाये |
कौशल्या का गर्भ गिराया | पल-पल रावण रचता माया ||
सुग्गासुर आया इक पापी | गिद्धराज ने गर्दन नापी ||
नव-दुर्गा में खीर जिमाये | नन्हीं-मुन्हीं कन्या आये ||
रानी फिर से गर्भ धारती | कौला विपदा विकट टारती ||
कौशल्या का छद्म वेश धर | सात मास मैके में जाकर ||
रावण के षड्यंत्र काटती | कौशल्या को ख़ुशी बांटती ||
शांता खुशियाँ लेकर आये | कौला को भी पास बुलाये ||
उलझे अंतरजाल में, दिया दनादन छाप -
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नारी-गौतम को छला, छले आज भी सोम ।
राह दिखाना ढोंग है, ताके पूरा व्योम । ताके पूरा व्योम, डरे नहिं राहु-केतु से । प्रणय-कक्ष में झाँक, रहा वह नित्य सेतु से । रविकर आओ शीघ्र, भगाओ तम-व्यभिचारी । यह पापी निर्लज्ज, आज भी ताके नारी ।। |
सौ सुनार की चोट हित, मतदाता तैयार ।
इक लुहार की ठोक के, चाहे सुख-भिनसार ।
चाहे सुख-भिनसार, रात कुल पांच साल की ।
दुर्गति के आसार, मुसीबत जान-माल की ।
चोरी लूट खसोट, डकैती बलत्कार की ।
लुटा दिया जब वोट, सहो अब सौ सुनार की ।।
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हम देख न सके,,,
Dheerendra singh Bhadauriya
हुस्न-इश्क को भूल जा, रविकर पकड़ सलाह |
सूक्ष्म-दृष्टि अतिशय विकट, अभी गजब उत्साह |
अभी गजब उत्साह, कहीं ना आह निकाले |
यह कंटकमय राह, पड़ो ना इनके पाले |
पड़ जाए गर धीर, ध्यान में रखो रिश्क को |
शुभकामना असीम, भूल जा हुश्न-इश्क को ||
भानमती की बात - साठा सो पाठा.शर्मिन्दा पौरुष हुआ, लपलपान जो नीच ।पैर कब्र में लटकते, ले नातिन को खींच । ले नातिन को खींच, बचे ना होंगे बच्चे । यह तो शोषक घोर, चबाया होगा कच्चे । है इसको धिक्कार, धरा पर काहे जिन्दा । खुद को जल्दी मार, हुआ रविकर शर्मिंदा ।। |
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसर आपके ब्लॉग पर आना और आपके दोहों को पढ़ कर शुकून मिलता है
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २/१०/१२ मंगलवार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का स्वागत है
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति................
ReplyDeleteनारी-गौतम को छला, छले आज भी सोम ।
ReplyDeleteराह दिखाना ढोंग है, ताके पूरा व्योम ।
ताके पूरा व्योम, डरे नहिं राहु-केतु से ।
प्रणय-कक्ष में झाँक, रहा वह नित्य सेतु से ।
रविकर आओ शीघ्र, भगाओ तम-व्यभिचारी ।
यह पापी निर्लज्ज, आज भी ताके नारी ।।
गुरु देव अब मूल रचना करो सेतु सेतु लिंक लिख्खाड़ करते करते छूट न जाए रचना कार .मुझे आप पहले ज्यादा अच्छे लगते थे .लगते अब भी हो .अभी हालफिलाल छोटी बहर की एक गजल लिख गए आप जिसकी अनुगूंज अभी गुंजायमान है .
ReplyDeleteब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
आदमी अपने स्वभाव को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता .ये नहीं है कि हमारा ब्लॉग जगत में किसी से द्वेष है
केवल विशुद्धता की वजह से हम कई मर्तबा भिड़ जाते हैं .पता चलता है बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया .अब
डाल दिया तो डाल दिया .अपनी कहके ही हटेंगे आज .
जिनको परमात्मा ने सजा दी होती है वह नाक से बोलते हैं और मुंह से नहीं बोल सकते बोलते वक्त शब्दों को
खा भी जातें हैं जैसे अखिलेश जी के नेताजी हैं मुलायम अली .
लेकिन जहां ज़रूरी होता है वहां नाक से भी बोलना पड़ता है .भले हम नाक से बोलने के लिए अभिशप्त नहीं हैं .
अब कुछ शब्द प्रयोगों को लेतें हैं -
नाई ,बाई ,कसाई ......इनका बहुवचन बनाते समय "ईकारांत "को इकारांत हो जाता है यानी ई को इ हो जाएगा
.नाइयों ,बाइयों ,कसाइयों हो जाएगा .ऐसे ही "ऊकारांत "को "उकारांत " हो जाता है .
"उ " को उन्हें करेंगे तो हे को अनुनासिक हो जाता है यानी ने पे बिंदी आती है .
लेकिन ने पे यह नियम लागू नहीं होता है .ने को बिंदी नहीं आती है .
ब्लॉग जगत में आम गलतियां जो देखने में आ रहीं हैं वह यह हैं कि कई ब्लोगर नाक से नहीं बोल पा रहें हैं मुंह
से ही बोले जा रहें हैं .
में को न जाने कैसे मे लिखे जा रहें हैं .है और हैं में भी बहुत गोलमाल हो रहा है .
मम्मीजी जातीं "हैं ".यहाँ "हैं "आदर सूचक है मम्मी जाती है ठीक है बच्चा बोले तो लाड़ में आके .
अब देखिए हमने कहा में हमने ही रहेगा हमनें नहीं होगा .ने में बिंदी नहीं आती है .लेकिन उन्होंने में हे पे बिंदी
आयेगी ही आयेगी .अपने कई चिठ्ठाकार बहुत बढ़िया लिख रहें हैं लेकिन मुंह से बोले जा रहें हैं .नाक का
इस्तेमाल नहीं कर रहें हैं .
यह इस नव -मीडिया के भविष्य के लिए अच्छी बात नहीं है जो वैसे ही कईयों के निशाने पे है .
मेरा इरादा यहाँ किसी को भी छोटा करके आंकना नहीं है .ये मेरी स्वभावगत प्रतिक्रिया है .
कबीरा खड़ा सराय में चाहे सबकी खैर ,
ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर .
कुंडली नुमा बना दो इस पोस्ट को .
मेरी पोस्ट पर लाजबाब टिप्पणी के लिये आभार,,,,
ReplyDeleteसार्थक चुनाव -आभार रविकर जी !
ReplyDeleteकहीं मिठाई तो कहीं पटाखा हो जाता है
ReplyDeleteरविकर जब टिपियाता है तो देखिये
जो होता है दूध उसका दही हो जाता है
ऎसा करना मैने देखा है अब तक
और किसी को नहीं आता है !