अपने ही दिल का सताया हुआ हूँ
गम का मरहम ले लगा, अगर दगा यह जिस्म |रब का पहरा ले बचा, किया वहम किस किस्म |
किया वहम किस किस्म, अश्क के सागर नागर |
शेरो में भर दिया, गजब का भाव बिरादर |
करता किन्तु सचेत, फैक्टरी उनकी चालू |
चालू गम निर्माण, रवैया बेहद टालू ||
कुछ रिश्ते ...(2)
सदा at SADA
1
माता मारक हो जाती है जब भी खतरा हो बच्चों पर |
ये ही सबसे सच्चा रिश्ता, साबित होता हर अवसर पर | 2 जर जमीन बट जाती है जब, गला काट दुश्मनी निभाते | रिश्ते तो मर जाते लेकिन, दो भाई इक बाप कहाते || 3 पहला पहला प्यार अनोखा, अल्प समय का साथ सिखाये | इस दुनिया में आकर अपना, हम सब कैसे समय बिताये || 4 महा स्वार्थी लोलुप बन्दे इस दुनिया में भरे पड़े हैं | हर रिश्तों को बेंच सके वे, मदद मांगिये हाथ खड़े हैं || |
सृजन
प्रवाह at नव - उद्गार
शिशुताई से ताई माई, बुआ मौसियाँ है हर्षित जब ।
माँ का पारावार नहीं है, कितनी हर्षित होती है तब ।
शिशु में उसके प्राण बस रहे, शिशु के वश में माँ का जीवन ।
शिशु जागे जागे है माता, शिशु सोवे फिर भी जगता मन ।
दिन भर भागदौड करती है, रक्त जलाए दूध पिलाए ।
पर न कोई गिला शिकायत, गीला तन घूमें घर आँगन ।।
त्याग तपस्या की प्रति-मूरत, रविकर करे प्रणाम मातु को-
माँ की महिमा अगम अगोचर, शिशु ही उसका तीरथ उपवन ।
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मेरे सपनों का भारत
सपनों का भारत दिखे, लिखे मुँगेरी लाल |
रुपिया बरसे खेत में, घर में मुर्गी दाल |
घर में मुर्गी दाल, चाल सब चलें पुरातन |
जर जमीन जंजाल, बजे हर घर में बरतन |
चचा भतीजावाद, राज भी हो अपनों का |
बझा रहे हर जंतु, यही भारत सपनों का ||
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नादानियां असीम हैं, शैतानी मकबूल-जंग लंग गौरांग तक, गजनी दुश्मन खेंप | गजनी दुश्मन खेंप, बाल न बांका होवे | देख दुर्दशा किन्तु, वही भारत माँ रोवे | अगर गुलामी काल, मानते लाज लुटी है | नाजायज औलाद, वही तो आज जुटी है || |
आपका बहुत - बहुत आभार रविकर जी
ReplyDeleteसादर
टिप्पणी करने के लिए सभी कुणडलियाँ बहुत बढ़िया रचीं हैं आपने!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कुण्डलियाँ वाह !
ReplyDeleteसबके ख़याल माँ जैसे नहीं हो सकते.
ReplyDeleteमाँ अज़ीम है.
आदरणीय रविकर बेहद सुन्दर तरीके से आप अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं. मेरी रचना को इस लायक समझा आपने बहुत-२ शुक्रिया
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