सुशील
उल्लूक टाईम्स
भूले अपनी जड़ों को, लूले झूले झूल |
फूट डालता राज जो, अंग्रेजी का फूल |
अंग्रेजी का फूल, धूल में मिल जाता है |
बोला जब दिग्विजय, ठाकरे चिल्लाता है |
अरे बिहारी राज, लाज ना आती तोको |
चाटुकार घर-बार, रोकता कैसे मोको ||
Kumar Radharaman
स्वास्थ्य
स्वास्थ्य
उल्लू पिटता जा रहा, बड़ी घनेरी धूप |
खर्राटों से जगे जब, बीबी बदले रूप |
बीबी बदले रूप, खुले बिन आँखें पिटता |
खर्राटे दिन-रात, हड्डियाँ रहता घिसता |
बोले है उल्लूक, रहम हम पर अब करिए |
रही हड्डियाँ तोड़, तनिक कौवे से डरिये ||
ताल पुराना पाय के, दादुर करे गुड़ूप |
टर्राता टर टर टिकत, छोड़े अपना कूप |
छोड़े अपना कूप, मित्रता भाव निभाते |
एक कुंए की बात, बैठ के मन बहलाते |
करे प्रशंसा ढेर, बहुत आये फुदकाना |
पहली पहल सवेर, देखता ताल पुराना ||
खर्राटों से जगे जब, बीबी बदले रूप |
बीबी बदले रूप, खुले बिन आँखें पिटता |
खर्राटे दिन-रात, हड्डियाँ रहता घिसता |
बोले है उल्लूक, रहम हम पर अब करिए |
रही हड्डियाँ तोड़, तनिक कौवे से डरिये ||
आचार्य परशुराम जी
ताल पुराना पाय के, दादुर करे गुड़ूप |
टर्राता टर टर टिकत, छोड़े अपना कूप |
छोड़े अपना कूप, मित्रता भाव निभाते |
एक कुंए की बात, बैठ के मन बहलाते |
करे प्रशंसा ढेर, बहुत आये फुदकाना |
पहली पहल सवेर, देखता ताल पुराना ||
इस अंक
का समापन निम्न पंक्तियों से करते हुए इस स्तम्भ से विदा ले रहा हूँ-
बन्दउ ब्लॉग प्रमुख गन
चरना।
छमहु जानि दास निज सरना।।
------आचार्य परशुराम
शिष्यों पर होवे कृपा, गुरुवर क्यूँ नाराज ?क्षमा मांगते आपसे, सुने विनय आवाज |
सुने विनय आवाज, कपाटों को पुनि खोलें |
हम सब तो नादान, कृत्य से हुवे अबोले |
सतत कृपा की चाह, राह न बंद कीजिये |
नियमित हो यह आंच, हमें भी चढ़ा दीजिये ||
http://boletobindas.blogspot.in/2012/09/22.html?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed:+BoleToBindas+%28Bole+to+Bindas%29
सचिन सांसद आ गए, खेलें क्रिकेट खेल |
टेस्ट मैच में हुए जो, तीन मर्तवा फेल |
टेस्ट मैच में हुए जो, तीन मर्तवा फेल |
तीन मर्तवा फेल, रिटायर क्यूँ हो जाए |
फेल हुवे नौ साल, पहल मोहन से आए |
माँ मोहन के पास, बॉस श्रीकांत हमारे |
है संसद का साथ, भले गर्दिश में तारे ||
जूता
Onkarkavitayen
बूता जूता का घटा, लटा बड़ा है पैर |
बारह घंटे नित खटा, बारह पैर बगैर |
बारह पैर बगैर, सैर पर सुबह सवेरे |
दौडाए है ढेर, शाम तक पूरा पेरे |
निकल गई सब अकड़, जकड़ न पाए जूता |
लतियाया इस कदर, ख़तम है रविकर बूता ||
क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?
Virendra Kumar Sharmaकबीरा खडा़ बाज़ार में
आत्म-विमोहों अपपठन, से पीड़ित इंसान |
काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा, बन सकती वरदान |
बन सकती वरदान, सफलता सौ प्रतिशत है |
जांच सहित उपचार, आइये है स्वागत है |
राम राम कल्याण, ज़रा कोशिश तो करिए |
हैं बच्चे नादान, मुश्किलें उनकी हरिये ||
कठिन है बिटिया की माँ होना....
चीलों कौवों से भरा, यह सारा आकाश |
पंख जटायू के कटे, खुश रावण के दास |
खुश रावण के दास, खींचिए लक्ष्मण रेखा |
खुद पर हो विश्वास, कीजिए अपना देखा |
अनुभव से दो सीख, अभी तो उड़ना मीलों |
आत्म-शक्ति भरपूर, दूर हट जाओ चीलों ||
गर्भ का आशय
देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्मागर्भाशय निक्लाय, पाप पर पुरुष धो रहा
(1)
उन्नति पथपर अग्रसर, अब बिहार के लोग |
जनसँख्या कंट्रोल में, सुन पुरुषों का योग |
सुन पुरुषों का योग, करोडो खर्च हो रहा |
गर्भाशय निक्लाय, पाप पर पुरुष धो रहा |
यह नितीश सरकार, जांच तो व्यर्थ कराये |
बनता वर्ल्ड रिकार्ड, डाक्टर बड़े मुटाये ||
(2)
हुई कहानी सब ख़तम, दफ़न जवानी दोस्त |
हड्डी कुत्ते चाटते, सिस्टम खाया गोश्त |
सिस्टम खाया गोश्त, रोस्ट कर कर के नोचा |
बन जाता जब टोस्ट, होस्ट इक अफसर पोचा |
आया न आनंद, वही लंदफंदिया बोला |
करके फ़ाइल बंद, बिना सिग्नेचर डोला ||
Beloved Life
जनसँख्या कंट्रोल में, सुन पुरुषों का योग |
सुन पुरुषों का योग, करोडो खर्च हो रहा |
गर्भाशय निक्लाय, पाप पर पुरुष धो रहा |
यह नितीश सरकार, जांच तो व्यर्थ कराये |
बनता वर्ल्ड रिकार्ड, डाक्टर बड़े मुटाये ||
(2)
हुई कहानी सब ख़तम, दफ़न जवानी दोस्त |
हड्डी कुत्ते चाटते, सिस्टम खाया गोश्त |
सिस्टम खाया गोश्त, रोस्ट कर कर के नोचा |
बन जाता जब टोस्ट, होस्ट इक अफसर पोचा |
आया न आनंद, वही लंदफंदिया बोला |
करके फ़ाइल बंद, बिना सिग्नेचर डोला ||
पुरुषार्थ
Santosh KumarBeloved Life
हार जीत से परे जो, पहन गले में हार |
स्वाभिमान से सिर उठा, जीता यह संसार |
जीता यह संसार, सफलतम जीवन जीता |
सतत कर्म आधार, मिले शुभ सकल सुबीता |
माँ का आशिर्वाद, सनातन मिले रीत से |
चरैवेति हर समय, परे हों हार जीत से ||
स्वाभिमान से सिर उठा, जीता यह संसार |
जीता यह संसार, सफलतम जीवन जीता |
सतत कर्म आधार, मिले शुभ सकल सुबीता |
माँ का आशिर्वाद, सनातन मिले रीत से |
चरैवेति हर समय, परे हों हार जीत से ||
आधा किलो आटा
संग्रह-खोरी है बुरी, तृष्णा का ना अंत |
शांत निहित संतोष में, सुखी सुज्ञ श्रीमंत |
सुखी सुज्ञ श्रीमंत, सातवीं पीढी सोंचे |
गर दूजी उद्दंड, बाल सब सिर के नोचे |
शाहजहाँ सा बाप, कैद में चना चखाया |
करो फैसला आप, कहो क्या खाना खाया ??
शांत निहित संतोष में, सुखी सुज्ञ श्रीमंत |
सुखी सुज्ञ श्रीमंत, सातवीं पीढी सोंचे |
गर दूजी उद्दंड, बाल सब सिर के नोचे |
शाहजहाँ सा बाप, कैद में चना चखाया |
करो फैसला आप, कहो क्या खाना खाया ??
वाह ... बहुत बढिया ।
ReplyDeleteवाह: बहुत सुन्दर
ReplyDeletegupta ji nice links congratulation.
ReplyDeleteबहुत खूब.....
ReplyDeleteआपका आभार रविकर जी.
सादर
अनु
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (08-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत बहुत आभार, प्रकाशित किया रविकर।
ReplyDeleteतृष्णा सदा विकट, बस संतोष ही सुखकर॥
बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteबार बार
फिर ले आये आप
उल्लू का अखबार !