"दोहे-चलते बने फकीर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मोहर हो जापान की, बिके अधिक सामान |
तांका चोका हाइगा, समझें ना नादान |
समझें ना नादान, दान नाना करवाए |
ना ना करते नात, बात अपनी मनवाए |
रविकर जाता भूल, गीतिका दोहा सोहर |
जाता है जापान, लगा के आता मोहर ||
अन्ना मैं हूं और मैं ही रहूंगा ...
महेन्द्र श्रीवास्तव
चतुर शिकारी सा करे, गर सेवक व्यवहार |
हार हमेशा होयगी, हार स्वप्न बेकार |
हार स्वप्न बेकार, बुराई चले मिटाने |
अपने में सौ छेद, बिके जब दो दो आने |
पहले आत्म सुधार, करो फिर मारामारी |
जग जाहिर है लक्ष्य, बड़े ही चतुर शिकारी ||
बात की लम्बाई
सुशीलउल्लूक टाईम्स
लम्बी लम्बी फेंकिये, अनियंत्रित जब जोश |
गुरुवर अपनी देखिये, एक्स्ट्रा कक्षा रोष |
एक्स्ट्रा कक्षा रोष, बड़ी बारीकी होती |
विश्लेषक श्रीमान, सकल कक्षा है सोती |
बड़े बड़े से तथ्य, संतरा सरिस मुसम्बी |
छोटे पैराग्राफ, करें ना बातें लम्बी ||
तुम्हारी गंध तुम्हारे रूप से अधिक भाती है !
संतोष त्रिवेदी
गंध गजब गजगामिनी, कर-काया कमनीय |
स्वाँस सरस उच्छ्वास में, हरदम यह करनीय |
हरदम यह करनीय, गले पर देख दुपट्टा |
पट्टा रविकर डाल, झूमता हट्टा कट्टा |
चाहत पाले एक, दर्श दे प्राण स्वामिनी |
यहीं कहीं हो पास, गंध गजब गजगामिनी ||
“कठिन है बिटिया की माँ होना” (चर्चा मंच-996)
रहो सदा यूँ साजते, गुरुवर चर्चा मंच |स्वास्थ्य बना उत्तम रहे, विनवत पाठक पञ्च |
विनवत पाठक पञ्च, कष्ट न रंचमात्र हो |
सृजनशीलता ख़ास, प्रभावी गीत पात्र हो |
बढे सदा सम्मान, सफलता की सीढ़ी पर |
कृपादृष्टि हो सदा, आज की इस पीढ़ी पर ||
NSG हीरो 'मानेश' (मुम्बई २६/११) को सरकारी चिकित्सा खर्च देने से इनकार जबकि आतंकवादी मदान को महंगी आयुर्वेदिक-स्पा की सुविधा
शर्मनाक वह दिन रहा, कटे शर्म से नाक ।
सैनिक को इनकार है, आतंकी की धाक ।
आतंकी की धाक, लगा धक्का है दिल को ।
बेदिल मंत्री रोज, डिगाते हैं मंजिल को ।
देते आयुर्वेद, नहीं नानी मर जाती ।
नहीं किसी को खेद, दुर्दशा हमें रुलाती ।।
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक <a href="http://dineshkidillagi.
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ये लो इसको भी चैन कहाँ है
ReplyDeleteकूडा़ भी फेंको ले आता यहाँ है !
मस्त कुण्डलियाँ ,,,,,
ReplyDeleteमुझे स्थान देने के लिए आभार
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति के लिए .......आभार रविकर जी !
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