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सर्ग-4
भाग-6
शांता-सृंगी विवाह
पहले फेरे के वचन, पालन-पोषण खाद्य |
संगच्छध्वम बोलते, बाजे मंगल वाद्य ||
स्वस्थ और सामृद्ध हो, त्रि-आयामी स्वास्थ |
भौतिक तन अध्यात्म मन, मिले मानसिक आथ ||
धन-दौलत या शक्ति हो, ख़ुशी मिले या दर्द |
भोगे मिलकर संग में, दोनों औरत-मर्द ||
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Untitled
Vaanbhatt
वापस आने के लिए, नहीं निकलते बुद्ध ।
मात-पिता फिर भी करें, कोशिश परम विशुद्ध ।
कोशिश परम विशुद्ध, सकल सुविधा दिलवाते ।
करें भागीरथ यत्न, ज्ञान की गंगा लाते ।
पाता जीवन श्रेष्ठ, लगा सुत पाठ-पढ़ाने ।
परदेशी व्यवहार, नहीं अब वापस आने ।
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बच्चों की खिलती मुस्कान(प्रवीण पाण्डेय)
न दैन्यं न पलायनम्
अपनी किस्मत से दुनिया में, कई अधूरे चित्र मिलें हैं । ऊपर वाले की रहमत से, कुछ कलियाँ कुछ तनिक खिले हैं। अपनी मेधा अपनी इच्छा, चाहे जो व्यवहार करूँ - किन्तु पूर्णता देनी होगी, मनभावन शुभ रंग भरूँ ।। |
शीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय | गुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय | लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते | चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते | सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता | मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता || |
यह मुर्दों की बस्ती हैश्यामल सुमन
मनोरमा
मुद्दों ने ऐसा भटकाया, हुआ शहर वीरान । मुर्दे कब्ज़ा करें घरों पर, भरे घड़े श्मशान । एक व्यवस्था चले सही से, लाशों पर है टैक्स - अपना बोरिया बिस्तर लेकर, भाग गए भगवान् ।। |
क्या थे वादे .....udaya veer singh |
जिसकी कालर व्हाइट व्हाइट, चीं चीं चीं चीं कालर ट्यून । जिसको संदेसा देता हो, उगता सूरज, डूबा मून । कदम कदम जो चले संभल कर, नेचर से है नेचर प्रेमी भेज रहे क्यूँ एस एम् एस हो, गुड नाइट को करते रयून ।। |
चलो उधर अब चल दो ।
रस्ता जरा बदल दो ।।
दुनिया के मसलों का
हिन्दुस्तानी हल दो ।।
होली होने को हो ली
रंग तो फिर भी मल दो ।
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ReplyDeleteपौधा रोपा परम-प्रेम का, पल-पल पौ पसरे पाताली |
पौ बारह काया की होती, लगी झूमने डाली डाली |
गीतात्मकता से संसिक्त है यह वेश रचना का .आनुप्रासिक शब्द सौन्दर्य लुभाता है .गति ताल माधुर्य सबकी अन्विति एक साथ होती है .
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संकलन !!
ReplyDeleteउम्दा संकलन !!
ReplyDeleteबढ़िया संकलन |
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