भारत भारत खुला.
खुला खुला भारत खुला, धुला धुला पथ पाय |
ईस्ट-वेस्ट इण्डिया में, सब का मन हरसाय | सब का मन हरसाय, आय के चाय पिलाओ | डबल-रोटियां खाय, हुकूमत के गुण गाओ | बंद हमेशा बंद, कंद के पड़ते लाले | गोरे लाले मस्त, रो रहे लाले काले || |
Untitledकविता विकास
काव्य वाटिका
मस्त मस्त है गजल यह , किसका कहें कमाल । खुश्बू जो पाई जरा, हुवे गुलाबी गाल । हुवे गुलाबी गाल, दिखे प्यारे गोपाला । काले काले श्याम, मुझे अपने में ढाला । बहुरुपिया चालाक, शाम यह अस्तव्यस्त है । वो तो राधा संग, दीखता बड़ा मस्त है ।। |
आज के व्यंजन
kush
सोते कवि को दे जगा, गैस सिलिंडर आज ।
असम जला, बादल फटा, गरजा बरसा राज ।
गरजा बरसा राज, फैसला पर सरकारी ।
मार पेट पर लात, करे हम से गद्दारी ।
कवि "कुश" जाते जाग, पुत्र रविकर के प्यारे ।
ईश्वर बिन अब कौन, यहाँ हालात सुधारे ।। |
क्या ब्लॉग जगत के नारी वादियों की वाद प्रियता शून्य हो चली है?क्वचिदन्यतोSपि...बढ़िया घटिया पर बहस, बढ़िया जाए हार | घटिया पहने हार को, छाती रहा उभार | छाती रहा उभार, दूर की लाया कौड़ी | करे सटीक प्रहार, दलीले भौड़ी भौड़ी | तर्कशास्त्र की जीत, हारता मूर्ख गड़रिया | बढ़िया बढ़िया किन्तु, तर्क से हारे बढ़िया || |
सियानी गोठ
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग | रहे गुलाबी खिला सा, हो सफ़ेद हो दंग | हो सफ़ेद हो दंग, रचे रचना गड़बड़ सी | झड़े हरेरी सकल, तनिक जो बहसा बहसी | कभी क्रोध से लाल, कभी पीला हो डरकर | बुरा है इसका हाल, घोर काला मन रविकर || |
लगा चून, परचून, मारता डंडी रविकर -
पासन्गे से परेशां, तौले भाजी पाव ।
इक छटाक लेता चुरा, फिर भी नहीं अघाव ।
फिर भी नहीं अघाव, मिलावट करती मण्डी ।
लगा चून, परचून, मारता रविकर डंडी ।
कर के भारत बंद, भगा परदेशी नंगे ।
लेते सारे पक्ष, हटा अब तो पासन्गे ।।
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गधे का गाना (काव्य-कथा)
Kailash Sharma
इस्तेमाल अकल का करके, अंकुश लगा दबाना बेहतर | कथा गधे की यही सिखाये, यही कहे चालाक लोमड़ी- जो भी ऐसा नहीं करेगा, गधा बनेगा गा-कर पिटकर || |
रविकर सर आपके दोहे निराले होते हैं.
ReplyDeleteकोख की साख
ReplyDeleteकोख और कोख में फर्क है .आज विज्ञान उस मुकाम पे चला आया है जहां एक ही कोख से माँ और बेटी पैदा हो सकतें हैं .अभी स्वीडन में एक माँ ने अपनी उस बेटी को अपनी कोख (चिकित्सा शब्दावली में ,विज्ञान की भाषा में गर्भाशय ,बच्चेदानी )डोनेट कर दी जो कुछ साल पहले बच्चेदानी के कैंसर की वजह से अपनी बच्चेदानी निकलवा चुकी थी .ठीक होने का और कोई रास्ता बचा ही नहीं था .सफलता पूर्वक बेटी में माँ की कोख का प्रत्यारोप लग चुका है .अंत :पात्र निषेचन (इन वीट्रो फ़र्तिलाइज़ेशन )के ज़रिये उसका एम्ब्रियो (भ्रूण की आरम्भिक अवस्था )प्रशीतित करके रखा जा चुका है साल एक के बाद इसे प्राप्त करता युवती के ही गर्भाशय में रोप दिया जाएगा .फिर इसी गर्भाशय से एक बेटी और पैदा हो सकती है .दाता महिला इन नवजात कन्या की नानी कहलायेगी लेकिन माँ बेटी एक ही गर्भाशय की उपज कहलाएंगी .तो ज़नाब ऐसी है गर्भाशय की महिमा .इस खबर से अभिभूत हो हमारे नाम चीन ब्लोगर भाई रविकर फैजाबादी (लिंक लिखाड़ी )ने अपने उदगार यूं व्यक्त किये हैं -
रविकर फैजाबादीSeptember 20, 2012 9:20 AM
कहते हम हरदम रहे, महिमा-मातु अनूप ।
पावन नारी का यही, सबसे पावन रूप ।
सबसे पावन रूप, सदा मानव आभारी ।
जय जय जय विज्ञान, दूर कर दी बीमारी ।
गर्भाशय प्रतिरोप, देख ममता रस बहते ।
माँ बनकर हो पूर्ण, जन्म नारी का कहते ।।
सोचता हूँ और फिर गंभीर हो जाता हूँ हमारे उस देश में जहां कर्ण ने अपने कवच कुंडल तक दान कर दिए थे ,ऋषि दाधीच (दधिची )ने अपनी अस्थियाँ दान कर दिन थीं -
अब लगता है -
अरे दधिची झूंठा होगा ,
जिसने कर दी दान अस्थियाँ ,
जब से तुमने अस्त्र सम्भाला ,
मरने वाला संभल गया है .
अपना हाथी दांत का सपना ,
लेकर अपने पास ही बैठो ,
दलदल में जो फंसा हुआ था ,
अब वो हाथी निकल चुका है .
दफन हो रहीं हैं मेरे भारत में ,
कोख में ही बेटियाँ .
मूक हो ,निर्मूक हो राष्ट्र सारा देखता है .
खुबसूरत सटीक दोहे..
ReplyDeleteबहुत खूब!
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