बेचैन आत्मा-देवेन्द्र पाण्डेय
भीग-भाग के भागते, आगे आगे श्याम ।
गोवर्धन को थामते, दें आश्रय सुखधाम ।
दें आश्रय सुखधाम, मगर वे हमें डुबाते ।
मनभावन यह चित्र, डूब के हम उतराते ।
प्राकृतिक हर दृश्य, देखता रात जाग के ।
हम को दिया डुबाय, स्वयं तो गए भाग के ।।
-अमृता तन्मय
चमके चंचल बिजुरिया, प्रगटे बादल रोष ।
करे इंद्र उत्पात तो, मोहन का क्या दोष ?
मोहन का क्या दोष, कोष में है जितना जल ।
देता मेघ उड़ेल, तोड़ना चाहे सम्बल ।
रविकर नहीं अनाथ, व्यर्थ तू दमके बमके ।
कृष्ण कमरिया हाथ, बदन हर्षित मम चमके ।
-अंजू चौधरी
दुष्ट मनों को ठीक से, लेती सखी टटोल ।
लेती सखी टटोल, भूलते जो मर्यादा ।
ऐसे दानव ढेर, कटुक भाषण विष ज्यादा ।
छलनी करें करेज, मगर जब पड़ती खुद पर ।
मांग दया की भीख, समर्पण करते रविकर ।।
सच्ची पूजा देवि की, अब होगी हर वार।
अब होगी हर वार, वार जो होते आये ।
कुंद हुई वह धार, वक्त सबको समझाए ।
त्याग तपस्या प्रेम, पड़ें पुरुषों पर भारी ।
सब रूपों को तिलक, सभी से आगे नारी ।।
प्रस्तुतकर्ता- प्रेम सागर सिंह
रिषभ पुत्र जयकार है, भारत भारति भान ।
सब भारतों को मिल रहा, यथा-उचित सम्मान ।
यथा-उचित सम्मान, भ्रांतियां दूर हुई हैं ।
दशरथ पुत्री आज, पुन: मशहूर हुई है ।
गलत तथ्य को जल्द, हे इतिहास सुधारो ।
शांताजी का नाम, नहीं हे जगत विसारो ।।
-डॉ. अनवर जमाल
सदा नाक में दम करे, जीना हुआ हराम ।
जीना हुआ हराम, शाम को दर्शन पाया ।
अंतर का पैगाम, नाम तेरे पहुंचाया ।
पाया नहीं जवाब, सिवा ख़त अंश राख के ।
करो सुपुर्दे ख़ाक, मरुँ न काँख काँख के ।।
बहुत बढ़िया कुंडलिया,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,,मेरे सपनो का भारत,,,,
बहुत बढ़िया एवं उपयोगी जानकारी...आपका आभार..|
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....आभार..
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति ..
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteसबका सार समेट के कथ्य किया तैयार !
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