Saturday, 29 September 2012

मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात ?



हम हर साल दो अक्टूबर को पाखंड करते हैं,फ़िर पूरे साल लंबी तान कर सो जाते हैं ।
हर दो-दस को हम करें, मिलकर धुर-पाखण्ड ।
खण्ड-खण्ड खेलें खलें, खुलकर फिर उद्दंड ।
खुलकर फिर उद्दंड , जमे सब राज-घाट पर ।
राज-पाट पर नजर, जमे पंचाट-हाट पर ।
राष्ट्र-पिता तो दफ़न, माय मम झोली भर दो ।
संकट में सरकार, सकल चिंताएं हर दो ।।

 मनोरमा
मुद्दों ने ऐसा भटकाया,  हुआ शहर वीरान ।
मुर्दे कब्ज़ा करें घरों पर, भरे घड़े श्मशान ।

एक व्यवस्था चले सही से, लाशों पर है टैक्स -

अपना बोरिया बिस्तर लेकर, भाग गए भगवान् ।।

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शीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय |
गुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय |
लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते |
चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते |
सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता |
मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता ||

 मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात ?
तुकबन्दी क्या सीख ली, भूला अपनी जात ।

भूला अपनी जात, फटाफट छान जलेबी ।
कहाँ कुंडली मार, डराता बाबा-बेबी ।

ब्लॉग-वर्ल्ड अभि-जात,  हकाले ऊल-जुलूली ।
उटपटांग कुल कथ्य, शिल्प बेहद मामूली ।। 



http://snshukla.blogspot.in/2012/09/169.html मेरी कवितायेँ  
फितरत चालों की रही, सालों का है ऐब ।
शोहरत की खातिर खुली, षड्यंत्रों की लैब ।
षड्यंत्रों की लैब , करे नीलामी भारी ।
खाय दलाली ढेर, उजाड़े प्राकृत सारी ।
शुद्ध हवा फल फूल, धूप की बाकी हसरत ।
हरकत ऊल-जुलूल, बदल ले अपनी फितरत ।।


ताकें आहत औरतें, होती व्यथित निराश ।
छुपा रहे मुंह मर्द सब, दर्द गर्द एहसास ।
दर्द गर्द एहसास,  कुहांसे से घबराए ।
पिता पड़ा बीमार, खरहरा पूत थमाये ।
 मातु-दुलारा पूत, भेज दी बिटिया नाके ।
बहन बहारे *बगर, बहारें भैया ताके ।।
*बड़े घर के सामने का स्थान 

रस्सी पीटने वाले 'वो'.....

 अच्छी है रस्सा-कसी, हंसी-रुदन है साथ ।
रस्सी अपने हाथ में, नागिन उनके हाथ ।
नागिन उनके हाथ, लिया गिन गिन के बदलें ।
बदले न हालात, मोरचे चलते अगले ।
मारक विष तैयार, बड़ी भारी नर-भक्षी ।
जो भी जाए हार, हार डाले वो अच्छी ।।


 मन्त्र मारती मन्थरा, मारे मर्म महीप ।
स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप । 
समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी ।
कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी ।
कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा ।
रावण-बध परिणाम, मारती मन्त्र मन्थरा ।।
*व्यग्र 
*आपातकाल

4 comments:

  1. मेरी तरफ से ब्लॉगिंग के सारे पुरस्कार, सम्मान आपकी झोली में ।
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    आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं ।

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  2. बहु प्रतिभा के धनी ये,कुंडलियों के खान
    जाते जिस पोस्ट पर , फ़ौरन करे बखान,,,,,,

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  3. वाह !
    रविकर की टिप्पणी और आपका लेखन
    मिलकर करते हैं अलग सा सम्मोहन !

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