हर दो-दस को हम करें, मिलकर धुर-पाखण्ड ।खण्ड-खण्ड खेलें खलें, खुलकर फिर उद्दंड । खुलकर फिर उद्दंड , जमे सब राज-घाट पर । राज-पाट पर नजर, जमे पंचाट-हाट पर । राष्ट्र-पिता तो दफ़न, माय मम झोली भर दो । संकट में सरकार, सकल चिंताएं हर दो ।। |
यह मुर्दों की बस्ती हैश्यामल सुमन
मनोरमा
मुद्दों ने ऐसा भटकाया, हुआ शहर वीरान । मुर्दे कब्ज़ा करें घरों पर, भरे घड़े श्मशान । एक व्यवस्था चले सही से, लाशों पर है टैक्स - अपना बोरिया बिस्तर लेकर, भाग गए भगवान् ।। |
शीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय |
गुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय | लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते | चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते | सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता | मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता || |
मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात ?
तुकबन्दी क्या सीख ली, भूला अपनी जात ।
भूला अपनी जात, फटाफट छान जलेबी ।
कहाँ कुंडली मार, डराता बाबा-बेबी ।
ब्लॉग-वर्ल्ड अभि-जात, हकाले ऊल-जुलूली ।
उटपटांग कुल कथ्य, शिल्प बेहद मामूली ।।
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http://snshukla.blogspot.in/2012/09/169.html मेरी कवितायेँ फितरत चालों की रही, सालों का है ऐब । शोहरत की खातिर खुली, षड्यंत्रों की लैब । षड्यंत्रों की लैब , करे नीलामी भारी । खाय दलाली ढेर, उजाड़े प्राकृत सारी । शुद्ध हवा फल फूल, धूप की बाकी हसरत । हरकत ऊल-जुलूल, बदल ले अपनी फितरत ।। |
रस्सी पीटने वाले 'वो'.....अच्छी है रस्सा-कसी, हंसी-रुदन है साथ ।रस्सी अपने हाथ में, नागिन उनके हाथ । नागिन उनके हाथ, लिया गिन गिन के बदलें । बदले न हालात, मोरचे चलते अगले । मारक विष तैयार, बड़ी भारी नर-भक्षी । जो भी जाए हार, हार डाले वो अच्छी ।। |
मन्त्र मारती मन्थरा, मारे मर्म महीप ।
स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप ।
समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी ।
कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी ।
कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा ।
रावण-बध परिणाम, मारती मन्त्र मन्थरा ।।
*व्यग्र
*आपातकाल
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मेरी तरफ से ब्लॉगिंग के सारे पुरस्कार, सम्मान आपकी झोली में ।
ReplyDelete.
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आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं ।
बहु प्रतिभा के धनी ये,कुंडलियों के खान
ReplyDeleteजाते जिस पोस्ट पर , फ़ौरन करे बखान,,,,,,
अच्छे लिंक्स
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteरविकर की टिप्पणी और आपका लेखन
मिलकर करते हैं अलग सा सम्मोहन !