Monday 24 September 2012

माल मान-सम्मान पद, "कलमकार" की चाह -


गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन

आज धनबाद के ब्लॉगर्स को माननीय देवेन्द्र गौतम जी का सानिध्य प्राप्त हुआ ।

इस गोष्ठी में  गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन की स्थापना की आवश्यकता महसूस की गयी । आपके विचार और सुझाव सादर आमंत्रित हैं । 
--------रविकर---------



दोहे 
अरुण कुमार निगम
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 माल मान-सम्मान पद, "कलमकार" की चाह ।
 देते "कल-मक्कार" को,  सुन प्रशस्ति नरनाह ।1।





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घाटे का सौदा करे, सेठ अशर्फी लाल ।
गाँव गाँव में बेच के, बेहद मद्दा माल ।

बेहद मद्दा माल, बिठाता भट्ठा सबका ।
एक क्षत्र हो राज्य, रो रहा ग्राहक-तबका ।

करी सब्सिडी ख़त्म, विदेशी वह व्यापारी ।
बेंचे महंगा माल, खरीदेगी लाचारी ।।


भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-4(II)

सर्ग-1
भाग-5

अथ - शांता 

सृंगी जन्मकथा  

 रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।
विषय परा-विज्ञान मन, औषधि प्रजनन अन्न ।

विकट तपस्या त्याग तप, इन्द्रासन हिल जाय ।
तभी उर्वशी अप्सरा, ऋषि सम्मुख मुस्काय ।


करे कर्म कन्या कठिन, किस्मत कुंद कड़ाकु-

तीसरी प्रस्तुति  

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक १८ 

http://www.openbooksonline.com/

दोहे
काँव काँव काकी करे, काकचेष्टा *काकु ।
करे कर्म कन्या कठिन, किस्मत कुंद कड़ाकु ।।


एक समाचार

करती केस प्रताड़ना, है तलाक की चाह ।
बहस भिवानी कोर्ट में, पति की नहिं परवाह ।
पति की नहिं परवाह, पचीसों गुटखे गटके ।
छ: हजारही आय, तभी तो पति को खटके ।
तिलमिलाय कह रही, छोड़ मैं सकती पति को।
चाहूँ तुरत तलाक , नहीं छोड़ूं इस लत को ।।


 

हग्गो तो मूतो नहीं, रोक दिया पेशाब -

यह डंडा-धारी करे, सारे काम खराब |
हग्गो तो मूतो नहीं, रोक दिया पेशाब |
 
रोक दिया पेशाब, हटा देता सब खम्भे | 
कोयलांचल ले देख,  देख ले बड़े-अचम्भे |
 
सब-संख्यक को हर्ष, पड़ा डंडे से पाला |
नौ वर्षों से पेड़, नोचते  पैसों वाला ||

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर काव्यात्मक टिप्पणियाँ!
    आपका आभार!

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  2. काव्यमय टिप्पणियों में आपका जबाब नही,,,,,

    RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,

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    1. RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,

      इस पोस्ट पर आपकी काव्यात्मक टिप्पणी की आशा रखता हूँ,,,,,

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