Monday, 17 September 2012

अब कब जाओगे ????

उत्तर मिलता है कभी, कभी अलाय बलाय ।
प्रश्नों का अब क्या कहें, खड़े होंय मुंह बाय ।

खड़े होंय मुंह बाय, नहीं मन मोहन प्यारे ।
सब प्रश्नों पर मौन, चलें वैशाखी धारे ।

वैशाखी की धूम, लुत्फ़ लेता है रविकर ।
यूँ न प्रश्न उछाल, समय पर मिलते उत्तर ।।

बेचेंगे हर हाल में, बचा हुआ सब माल |
अचर सचर
दो साल में, खलें खींच खलु खाल | 

खलें खींच खलु खाल, चाल सी टी दुहराया  |
लेकिन अबकी ढाल, मुलायम ममता माया |

सन चौदह तक होय, तेरही बहुत खलेगी |
जाए न सरकार, दूर तक बड़ी चलेगी ||


लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई-

मगन मना मानव मुआ, याद्दाश्त कमजोर |
लप्पड़ थप्पड़ छड़ी अब, चाबुक रहा खखोर |

चाबुक रहा खखोर, बड़ी यह चमड़ी मोटी  |
न कसाब न गुरू, घुटाला हाला घोटी |

लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई |
भौंक भौंक मर जाय, लाश पर लज्जा रोई ||

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