- उत्तर मिलता है कभी, कभी अलाय बलाय ।प्रश्नों का अब क्या कहें, खड़े होंय मुंह बाय ।खड़े होंय मुंह बाय, नहीं मन मोहन प्यारे ।सब प्रश्नों पर मौन, चलें वैशाखी धारे ।वैशाखी की धूम, लुत्फ़ लेता है रविकर ।यूँ न प्रश्न उछाल, समय पर मिलते उत्तर ।।बेचेंगे हर हाल में, बचा हुआ सब माल |
अचर सचर दो साल में, खलें खींच खलु खाल |
खलें खींच खलु खाल, चाल सी टी दुहराया |
लेकिन अबकी ढाल, मुलायम ममता माया |
सन चौदह तक होय, तेरही बहुत खलेगी |
जाए न सरकार, दूर तक बड़ी चलेगी ||
लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई-
मगन मना मानव मुआ, याद्दाश्त कमजोर |
लप्पड़ थप्पड़ छड़ी अब, चाबुक रहा खखोर |
चाबुक रहा खखोर, बड़ी यह चमड़ी मोटी |
न कसाब न गुरू, घुटाला हाला घोटी |
लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई |
भौंक भौंक मर जाय, लाश पर लज्जा रोई ||
Monday, 17 September 2012
अब कब जाओगे ????
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बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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