छोड़ा है मुझको तन्हा बेकार बनाके
"अनंत" अरुन शर्मा
चले कार-सरकार की, होय प्रेम-व्यापार |
औजारों से खोलते, पेंच जंग के चार | पेंच जंग के चार, चूड़ियाँ लाल हुई हैं | यह ताजा अखबार, सफेदी छुई-मुई है | चश्मा मोटा चढ़ा, रास्ता टूटा फूटा | पत्थर बड़ा अड़ा, यहीं पर गाड़ू खूटा || |
लो क सं घ र्ष !
उद्योगों के दर्द की, जायज चिंता मित्र | नहीं किन्तु हमदर्द ये, इनकी सोच विचित्र | इनकी सोच विचित्र, मार सूखे की पड़ती | है किसान हलकान, पड़ी पड़ती भू गड़ती | सूखे में भी चाह, चलो टी वी फ्रिज भोगो | सत्ता इनके संग, कमीशन दो उद्योगों || |
मौसम ने ली अंगड़ाई
देवेन्द्र पाण्डेय
सीधी रेखाएं खिंची, बढ़िया मेड़ मुड़ेर । पोली पोली माँ दिखे, मिले उर्वरक ढेर । मिले उर्वरक ढेर, देर क्या करना सावन । किलकारी ले गूंज, लगे जग को मनभावन । होय प्रफुल्लित गात, गजब हरियाली देखा । अब तो मानव जात, पकड़ ले सीधी रेखा । |
घर में पिटाई क्यों सहती हैं बाहर बोल्ड रहने वाली महिलायें ?
DR. ANWER JAMAL
कहना चाहूँ कान में, मेहरबान धर कान | दिखता है जो सामने, मत दे उस पर ध्यान | मत दे उस पर ध्यान, मजा ले आजादी का | मर्द सदा व्यवधान, विकट बंधन शादी का | पिटते कितने मर्द, मगर मर्दाना छवि है | होते नित-प्रति हवन, यही तो असली हवि है ||| |
...और वो अकेली ही रह गई
बड़ी मार्मिक कथा यह, प्रिया करे ना माफ़ |
परिजन को करनी पड़े, अपनी स्थिति साफ़ | अपनी स्थिति साफ़, किया बर्ताव अवांछित | गैरों का दुष्कर्म, करे खुद को भी लांछित | मात-पिता तकरार, हुई बेटी मरियल सी | ढोई जीवन बोझ, नहीं इक पल को हुलसी || |
Politics To Fashion
आयेगा उत्कृष्ट अब, रहो सदा तैयार । काँटा चम्मच हाथ में, मजेदार उपहार । मजेदार उपहार, वाह युवती की इच्छा । मृत्यु सुनिश्चित देख, किन्तु देती है शिक्षा । होना नहीं निराश, जगत तुमको भायेगा । जैसा भी हो आज, श्रेष्ठ तो कल आएगा ।। |
मेरी कविता
आशा बिष्ट
टूटा दर्पण कर गया, अर्पण अपना स्नेह । बोझिल मन आँखे सजल, देखा कम्पित देह । देखा कम्पित देह, देखता रहता नियमित । होता हर दिन एक, दर्द नव जिस पर अंकित । कर पाता बर्दाश्त, नहीं वह काजल छूटा। रूठा मन का चैन, और यह दर्पण टूटा ।। |
बस तुम ....
Anupama Tripathi
कान्हा कब का कहा ना, कितना तू चालाक । गीता का उपदेश या , जमा रहा तू धाक । जमा रहा तू धाक, वहाँ तू युद्ध कराये । किन्तु कालिमा श्याम, कौन मन शुद्ध कराये । तू ही तू सब ओर, धूप में छाया बनकर । तू ही है दिन-रात, ताकता हरदम रविकर ।। |
हो रहा भारत निर्माण ( व्यंग्य कविता )क्या भारत निर्माण है, जियो मित्र लिक्खाड़ । खाय दलाली कोयला, रहे कमीशन ताड़ । रहे कमीशन ताड़ , देश को गर बेचोगे । फिफ्टी फिफ्टी होय, फिरी झंझट से होगे । चलो घुटाले बाल, घुटाले को दफनाना । आयेगा फिर राज, नए गांधी का नाना ।। |
रचना जब विध्वंसक हो !
विध्वंसक-निर्माण का, नया चलेगा दौर ।
नव रचनाओं से सजे, धरती चंदा सौर ।
धरती चंदा सौर, नए जोड़े बन जाएँ ।
नदियाँ चढ़ें पहाड़, कोयला कोयल खाएं ।
होने दो विध्वंस, खुदा का करम दिखाते ।
धरिये मन संतोष, नई सी रचना लाते ।।
सियानी गोठ
अरुण कुमार निगम
सर्वाधिक शुद्धता लिए, मिलती राखी मात्र || |
रविकर सर जैसा आप लिखते हैं कोई नहीं लिख सकता आपके ब्लॉग पर आके हृदय प्रसन्न हो जाता है. मेरी रचना को स्थान दिया और उनपर सुन्दर दोहे रचे तहे दिल से शुक्रिया
ReplyDeletemeri pravishti ko sashkt manch pradaan karne hetu ssadar dhnywaad..
ReplyDeleteबहुत बढिया.
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत खूब सार्थक सटीक कुण्डलियाँ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : गीत,
बहुत अच्छा संकलन लाते है आप !
ReplyDeleteआभार भाई जी !
ReplyDeleteचित्र पर कविता कर ही दिया आपने। वाह!
ReplyDeleteलाजवाब !
ReplyDeleteटूटा दर्पण कर गया, अर्पण अपना स्नेह ।
ReplyDeleteबोझिल मन आँखे सजल, देखा कम्पित देह ।
देखा कम्पित देह, देखता रहता नियमित ।
होता हर दिन एक, दर्द नव जिस पर अंकित ।
कर पाता बर्दाश्त, नहीं वह काजल छूटा।
रूठा मन का चैन, और यह दर्पण टूटा ।।
भाईसाहब ये तमाम सेतु पढ़े इनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति भी .सोने पे सुहागा और उससे आगे क्या होता है भला वह सभी कुछ मिल गया .बधाई .
ReplyDeleteकविता की यह कोपलें कहाँ-कहाँ विस्तार ,
ReplyDeleteसब लपेट मैं आ गये ,शब्दों का संभार!