Thursday 27 September 2012

मानव जीता जगत, किन्तु गूगल से हारा -




बेबस पेड़

सुशील 

सदाबहारों में गिने, जाते हैं जो पेड़ |
पतझड़ वाले क्यूँ रहे, उन पेड़ों को छेड़ |
उन पेड़ों को छेड़, नहीं उनका कुछ बिगड़े |
खाद नमी भरपूर, खाय के होते तगड़े |
उल्लू क्यों गमगीन, बहुत शाखाएं हाजिर |
हर शाखा पर एक, किन्तु बैठा है शातिर ||



काव्यमयी प्रस्तावना, मन गलगल गुगलाय ।
शब्दों का यह तारतम्य, रहा गजब है ढाय ।
रहा गजब है ढाय, बोलते हैप्पी बड्डे ।
घर घर बनते जाँय, अति मनोरंजक अड्डे ।
मानव जीता जगत,  किन्तु गूगल से हारा ।
गूगल जयजयकार, तुम्ही इक मात्र सहारा ।


ख्वाब तुम पलो पलो

expression 
 बढ़ता नन्हा कदम है, मातु-पिता जब संग ।
लेकिन तन्हा कदम पर, तुम बिन लगती जंग ।
तुम बिन लगती जंग, तंग करती है दूरी  ।
जीतूँ जीवन-जंग, उपस्थिति बड़ी जरुरी ।
थामे कृष्णा हाथ, प्यार का ज्वर चढ़ जाए ।
छलिये चलिए साथ, कभी आ बिना बुलाये ।।


‘रेणु’ से ‘दलित’ तक

  अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)

सियानी गोठ

 
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित
अरुण निगम के पिताजी, श्रेष्ठ दलित कविराज |
उनकी कविता कुंडली, पढता रहा समाज |
पढता रहा समाज, आज भी हैं प्रासंगिक |
देशभक्ति के मन्त्र, गाँव पर लिख सर्वाधिक ||
छत्तिसगढ़ का प्रांत, आज छू रहा ऊंचाई |
जय जय जय कवि दलित, बड़ी आभार बधाई ||

बेहतर

आशा जोगळेकर  

 गुण-अवगुण की खान तन, मन संवेदनशील ।
इसीलिए इंसान हूँ , दीदी मस्त दलील ।।

साधना शब्‍दों की ... !!!

सदा  
SADA  

गुरुजन के आशीष से, जानो शब्द रहस्य |
शब्द अनंत असीम हैं, क्रमश: मिलें अवश्य |
क्रमश: मिलें अवश्य, किन्तु आलस्य नहीं कर |
कर इनका सम्मान, भरो झोली पा अवसर |
फिर करना कल्याण, लोक हित सर्व समर्पन |
रे साधक ले साध, दिखाएँ रस्ता गुरुजन ||


बिना घोटाले के भी देश की बैंड बजायी जा सकती है!


शीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय |
गुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय |
लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते |
चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते |
सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता |
मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता ||

रचना जब विध्वंसक हो !

विध्वंसक-निर्माण का, नया चलेगा दौर ।
 नव रचनाओं से सजे, धरती चंदा सौर ।

धरती चंदा सौर, नए जोड़े बन जाएँ ।
नदियाँ चढ़ें पहाड़, कोयला कोयल खाएं ।

होने दो विध्वंस, खुदा का करम दिखाते  ।
धरिये मन संतोष,  नई सी रचना लाते ।।

6 comments:

  1. Bahut hi lajawab prastuti...sare links umda....

    Sadar naman.

    ReplyDelete
  2. सबसे ऊपर जब उल्लूक बैठाया
    शाख से कौन फिर कुछ कह पाया !!

    ReplyDelete
  3. कुडलियों से सजीं लिंक्स अचची लगीं । जाती हूँ इन पर । मुझे भी इन महानुभावों में सम्मिलित करने का आभार ।

    ReplyDelete
  4. कृपया अच्छी पढें ।

    ReplyDelete
  5. कलम विरासत में मिली , हुई जिंदगी धन्य
    और भला क्या चाहिये , तन मन है चैतन्य
    तन मन है चैतन्य , करूँ नित साहित सेवा
    भाव श्वाँस बन जाय,मिले नित शब्द-कलेवा
    रहे आखरी साँस तलक , लिखने की आदत
    गर्व स्वयं पर करूँ ,मिली है कलम विरासत ||

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर रविकर जी....
    हमारी कविता को अपनी टिप्पणी से सुशोभित करने का शुक्रिया..
    सादर
    अनु

    ReplyDelete