भाये ए सी की हवा, डेंगू मच्छर दोस्त ।
फल दल पादप काटते, काटे मछली ग़ोश्त । काटे मछली ग़ोश्त, बने टावर के जंगल । टूंगे जंकी टोस्ट, रोज जंगल में मंगल । खाना पीना मौज, मगन मनुवा भरमाये । काटे पादप रोज, हरेरी ज्यादा भाये ।। |
नारा की नाराजगी, जगी आज की भोर-
नारा की नाराजगी, जगी आज की भोर ।
यह नारा कमजोर था, नारा नारीखोर ।
नारा नारीखोर, लगा सड़कों पर नारा ।
नर नारी इक साथ, देश सारा हुंकारा।
कर के पश्चाताप, मुख्य आरोपी मारा ।
नेता नारेबाज, पाप से करो किनारा ॥
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कार्टून कुछ बोलता है - एक उभरते उम्मीदवार का अंत !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
कई दरिन्दे शेष है, मरते हैं मर जाँय |
मारे मारे शर्म के, कुल मारे लटकाय || |
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बहुत ही अच्छी रचना है आपकी..... आभार
ReplyDeleteबढ़िया ...
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