फागुन आने को है (बुधवार की चर्चा-1182)
जन्म-दिवस की शुभकामनायें
कविवर हे इंजीनियर, प्रभु-प्रिय मित्र प्रदीप | बार बार शुभकामना, रहते हृदय समीप | रहते हृदय समीप, यशस्वी होवे जीवन | सुख समृद्ध सौहार्द, ख़ुशी से किलके आँगन | रहो हमेशा स्वस्थ, बढे बल-विद्या रविकर | है प्रभु का आशीष, कीजिये कविता कविवर || |
साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
गोकुल से कब का गया, गोपी कुल बेहाल |
गोपी कुल बेहाल, पञ्च कन्या पांचाली |
बढ़ा बढ़ा के चीर, बचाया उसको खाली |
वंशी भी बेचैन, ताल सुर वाणी खोई |
खुद बन दुर्गा शक्ति, नहीं आयेगा कोई ||
अर्ज सुनिये
कोई चारा है नहीं, बेचारा गोपाल |गोकुल से कब का गया, गोपी कुल बेहाल |
गोपी कुल बेहाल, पञ्च कन्या पांचाली |
बढ़ा बढ़ा के चीर, बचाया उसको खाली |
वंशी भी बेचैन, ताल सुर वाणी खोई |
खुद बन दुर्गा शक्ति, नहीं आयेगा कोई ||
मछुवारों के मौत का, अभी फैसला दूर ।
अभी फैसला दूर, मिली नहिं चॉपर फ़ाइल ।
कातिल गए स्वदेश, फंसा इक और मिसाइल ।
भेजे सुप्रिम-कोर्ट, देखिये बढ़ी बेबसी ।
कातिल नातेदार, नहीं देगा अब इटली ॥
(१ )
टिली-लिली टिल्ला टिका, टिल्ले बड़ा नवीस ।
इटली के व्यवहार पर, फिर से निकली खीस ।
टिली-लिली = अंगूठा दिखाना
टिल्ला= धक्का
टिल्ले-नवीस = बहाने बाजी
कार्टून कुछ बोलता है- अब तक का सबसे तीब्र विरोध !अंधड़ !
मामा देता है बना, फिर मामा का बाप |
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अट्ठारह सोलह लड़े, भूला सतरह साल-
अट्ठारह सोलह लड़े, भूला सतरह साल |
कम्प्रोमाइज करो झट, टालो तर्क बवाल |
टालो तर्क बवाल, आयु सतरह करवाओ |
करो नहीं अंधेर, सख्त कानून बनाओ |
फास्ट ट्रैक में केस, जड़ों पे डालो मठ्ठा |
नाशों पाप समूल, बिठा मत मंत्री भट्ठा ||
लीक-खींचना है भला, लीक-पीटना हेय | बाबा का यह कूप है, इसीलिए जल पेय | इसीलिए जल पेय, प्रदूषित चाहे जितना | बरसे झम झम मेह, होय क्या उससे हित ना | अपनी अपनी सोच, सोच से आँख मीच ना | लिखे लेखनी लेख्य, अनवरत लीक खींचना ||
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मनसायन आयन मन्मथ भायन मानस वेग बढ़ा कसके |
रजनी सजनी मधुचन्द मिली, मकु खेल-कुलेल पड़ा लसके |
अब स्वप्न भरोस करे मनुवा पिय आय रहो हिय में बस के ।
खट राग लगे कुल रात जगे मन मौज करे रजके हँसके |।
सुनिए यह चित्कार, बुलाये रविकर पातक -
तक तक कर पथरा गईं, आँखे प्रभु जी आज |
कब से रहा पुकारता, बैठे कहाँ विराज | बैठे कहाँ विराज, हृदय से सदा बुलाया । नाम कृपा निधि झूठ, कृपा अब तक नहिं पाया | सुनिए यह चित्कार, बुलाये रविकर पातक | मिटा अन्यथा याद, याद प्रभु तेरी घातक ॥ |
सादर जन सधारण सुचना
ReplyDeleteसाहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
सादर जन सधारण सुचना
ReplyDeleteसाहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
गुरूजी गजब |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आदरणीय.
ReplyDeleteसफल वही है आजकल, वही हुआ सिरमौर।
जिसकी कथनी और है,जिसकी करनी और।।
बेहतरीन लिंक्स संयोजन ...
ReplyDeleteआभार आपका
सुन्दर लिंक !!
ReplyDeleteआभार माननीय !!
शानदार सूत्र-यात्रा करवाई आपने
ReplyDeleteआभार रविकर जी !
ReplyDeletesundar prastuti :-)
ReplyDeleteमन की भावनाओं को व्यक्त करती ...नई रचना Os ki boond: टुकड़े टुकड़े मन ...