महेन्द्र श्रीवास्तव
शोकाकुल परिवार से गहरी सहानुभूति-
किन्तु क्या- हो सकता है क्या नहीं, हों रिश्ते असहाय | खर्चा पूरा नहिं पड़े, नाम लिस्ट में आय | नाम लिस्ट में आय, सभी का हक़ पर हक़ है - जीजा देवर बहन, खफा इन से नाहक है | शायद पहली मौत, देश में इतनी चर्चा | उठा रही सरकार, सभी नातों का खर्चा || हक़ का हक़ है- हक़ बेशक मिले- नाहक लिस्ट लम्बी हो गई है- सादर- |
कुण्डलिया : नरेन्द्र मोदी की तरफ से-
हमने भी की गलतियाँ, मिले शर्तिया दंड |
शिकायतें भी हैं कई, किन्तु नहीं उद्दंड | किन्तु नहीं उद्दंड, सिपाही भारत माँ का | सेवा करूँ अखंड, करे ना कोई फांका | सभी हाथ को काम, ग्रोथ नहिं देंगे कमने | स्वास्थ्य सुरक्षा शान्ति, शपथ दुहराई हमने || |
औरतें अपने जैसी औरतों को अपना हमदर्द क्यों न बना सकीं ?
Dr. Ayaz Ahmad
हैरत होती है हमें, करते कडुवी बात |
खरी खरी लिख मारते, भूलो रिश्ते नात |
भूलो रिश्ते नात, सज्जनों को उपदेशा |
लेकिन दुर्जन दुष्ट, करे हैं खोटा पेशा |
गिरेबान में झाँक, सकें ना भोली औरत |
लागू है ड्रेस कोड, उन्हीं पर होती हैरत ||
कामयाबी की मंजिलेंRajendra Kumar
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अंग अनेकन अर्थ भरे लुकवावत हैं रँगवावत हैं-"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 29
मदिरा सवैया
नंग-धडंग अनंग-रती *अकलांत अनंद मनावत हैं ।
रंग बसंत अनंत चढ़ा शर चाप चढ़ाय चलावत हैं ।
लाल हरा हुइ जाय धरा नभ नील सफ़ेद दिखावत हैं ।
अंग अनेकन अर्थ भरे लुकवावत हैं रँगवावत हैं ॥
*ग्लानि-रहित
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कार्टून कुछ बोलता है - एक उभरते उम्मीदवार का अंत !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
कई दरिन्दे शेष है, मरते हैं मर जाँय |
मारे मारे शर्म के, कुल मारे लटकाय ||
मारे मारे शर्म के, कुल मारे लटकाय ||
आदरणीय गुरुदेव श्री सादर प्रणाम बेहद सुन्दर एवं प्रभावशाली प्रस्तुति हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुतिकरण,सादर नमन.
ReplyDeleteगुरु आशीष से ईश मिले ,गुरु हाथो तपिश
जप तप करते नहीं मिले ,सद्गुरु है जगदीश
बहुत बढ़िया सर जी !
ReplyDeleteहो सकता है क्या नहीं, हों रिश्ते असहाय |
ReplyDeleteखर्चा पूरा नहिं पड़े, नाम लिस्ट में आय |
नाम लिस्ट में आय, सभी का हक़ पर हक़ है -
जीजा देवर बहन, खफा इन से नाहक है |
शायद पहली मौत, देश में इतनी चर्चा |
उठा रही सरकार, सभी नातों का खर्चा ||
हक़ का हक़ है-
हर्जाना देना आसान लोक लुभाऊ काम है .क़ानून व्यवस्था लागू करने की कोई बात नहीं करता ,
एक बेहया बदलाव के साक्षी बन रहे हैं हम लोग .
ReplyDeleteज़बर्ज़स्त तंज भाई साहब .व्यवस्था को राजा भैया ही हांक रहे हैं .
रंग रँगीला दे जमा, रँगरसया रंगरूट |
ReplyDeleteरंग-महल रँगरेलियाँ, *फगुहारा ले लूट ||
*फगुआ गाने वाला पुरुष -
फ़गुआना फब फब्तियां, फन फ़नकार फनिंद |
रंग भंग भी ढंग से, नाचे गाये हिन्द ||
हुई लाल -पीली सखी, पी ली मीठी भांग |
अँगिया रँगिया रँग गया, रंगत में अंगांग ||
देख पनीले दृश्य को, छुपे शिशिर हेमंत ।
आँख गुलाबी दिख रही, पी ले तनि श्रीमंत ॥
तड़पत तनु तनि तरबतर, तरुनाई तति तर्क ।
लाल नैन बिन सैन के, अंग नोचते *कर्क ॥
खुमारी के रंग ऐसे ही होते हैं भैया साहब
खुमारी के रंग ऐसे ही होते हैं भैया साहब
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन प्रस्तुति महोदय ,
ReplyDeleteवर्तमान परिप्रेक्ष्य को रेखांकित
करती ,बढ़िया.........
बहुत बढ़िया लिंक्स चयन हुज़ूर | सादर
ReplyDelete'अलगावों'के लिये है,सुदृढ़ सुदृढ़ बाड़ |
ReplyDeleteप्रेम की फुलवारी बना, मीत 'लिंक-लिक्खाड़ ||
अलगावों के लिये है, मानो सुदृढ़ बाड़ |
ReplyDeleteप्रीति-संकलन कर रहा, मीत लिंक लिक्खाड़ !!