दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय-
दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय ।
पाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय ।
(यमक अलंकार)
पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला ।
भानुमती ने पुन:, पिटारा कुनबा खोला ।
(श्लेष अलंकार )
पालागन सरकार, बनाओ रविकर अहमक ।
निगलो भारत देश, मौज में रानी दीमक ।।
पाला पड़ना= मुहावरा
पाला= पालना / जल की बूंदे जो सर्दियों में (आम ) फसल बर्बाद कर देती है /
पालागन = प्रणाम
तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय
तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय ।
धनहर-ईंधन धन हरे, धनहारी मुसकाय ।
धनहारी मुसकाय, आय व्यय का तखमीना ।
आग लगे धनधाम, चैन जनता का छीना ।
इ'स्कैम और इ' स्कीम, भाव इसमें हैं गहरे ।
धन्य धन्य सरकार, तीन, तीन तेरह करे ॥
धनहर=धन चुराने वाला
धनहारी = दूसरे के धन का उत्तराधिकारी
धनधाम=रूपया पैसा और घरबार
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सदा
SADA
दो बूंदे जिंदगी की, पल पल रही पिलाय |
लेकिन लकवा ग्रस्त मन, अंग विकल लंगड़ाय |
अंग विकल लंगड़ाय, काम ना करता माथा |
पद मद में मगरूर, नकारे स्नेहिल गाथा |
नीति नियम शुभ रीति, देखकर आँखें मूंदे |
इष्ट मित्र परिवार, बहा लें दो दो बूंदे-
दो बूंदे जिंदगी की, पल पल रही पिलाय |
लेकिन लकवा ग्रस्त मन, अंग विकल लंगड़ाय |
अंग विकल लंगड़ाय, काम ना करता माथा |
पद मद में मगरूर, नकारे स्नेहिल गाथा |
नीति नियम शुभ रीति, देखकर आँखें मूंदे |
इष्ट मित्र परिवार, बहा लें दो दो बूंदे-
प्यारे प्यारे घर
Chaitanyaa Sharma
सूरज चन्दा से रहें, जीव जंतु चैतन्य ।
कलरव गौरैया करे, गौ गोरु सह अन्य ।
गौ गोरु सह अन्य, चमकते उपवन कुटिया।
खिलते फूल विभिन्न, फलों से भरती हटिया ।
सीधे पथ पर चले, हमेशा सच्चा बन्दा ।
रहे जगत में कीर्ति, गगन पर सूरज चन्दा ॥
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"दोहे-व्यर्थ न समय गवाँइए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
बहुत सही है समय यह, बहुत सही उपदेश |
समय पालना नियम से, काटे सारे क्लेश ||
तमांचे की गूंज
Saleem akhter Siddiqui
माचा मचिया मंच है, बोरा धरती धूल |
महाजनों के लिए ही, बच्चे बगिया फूल | बच्चे बगिया फूल, मूल में स्वार्थ छुपाये | रहा सकल हित साध, किन्तु परमार्थ कहाए | नन्हें मुन्हें बाल, प्यार से कहते चाचा | इक छोटी सी भूल, लगाता चचा तमाचा ||
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जब कभी रस्ता चले । फब्तियां कसता चले-
जब कभी रस्ता चले ।
फब्तियां कसता चले ।।
जान जोखिम में मगर-
मस्त-मन हँसता चले ।।
अब बजट में आदमी -
हो गया सस्ता चले ।।
मौत मंहगी हो गई -
हाल कुछ खस्ता चले ।।
तेज रविकर का बढ़ा -
चाँद पर बसता चले ॥
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सुगढ़ सलोनी कई, कई में सौ विकृतियाँ-
पहला पहला यंत्र है, इस दुनिया का चाक ।
बना प्रवर्तक यंत्र का, कुम्भकार की धाक ।
कुम्भकार की धाक, पूर्वज मुनि अगस्त्य है ।
मिटटी पावक पाक, मृत्यु पर अटल सत्य हैं ।
देता कृति आकार, रचयिता सहला सहला ।
कुम्भकार भगवान्, प्रवर्तक सबसे पहला ॥
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बहुत सुंदर पंक्तियाँ ......... चैतन्य को दिए स्नेहाशीष के लिए आभार
ReplyDeleteWow. Very fine, meaningful presentation.
ReplyDelete/
आभार आपका इस प्रस्तुति के लिये
ReplyDeleteसादर
सुन्दरतम प्रस्तुतिकरण,आभार आदरणीय.
ReplyDeleteआपकी टिप्पणियों से रोज नया ऊर्जा मिलती है रविकर जी!
ReplyDeleteआभार!
मनमोहक प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर......सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक लिनक्स
गुरूजी बहुत बढ़िया | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|
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