आला आशिक आस्तिक, आत्मिक आद्योपांत ।
आत्म-विस्मरित आत्म-रति, रहे हमेशा शांत ।
रहे हमेशा शांत, ईष्ट से लौ लग जाए ।
उधर नास्तिक देह, स्वयं को केवल भाये ।
कहते मिथ्या मोक्ष, नकारे खुदा, शिवाला ।
भटके बिन आलम्ब, जला के प्रेम-पुआला ॥
आत्म-विस्मरित=अपना ध्यान ना रखने वाला आत्मरत नहीं बल्कि आत्म-रति=ब्रह्मज्ञान |
अबला-गुहार !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंधड़ !
हदे पार करते रहे, जब तब दुष्टाबादि |
*अहक पूरते अहर्निश, अहमी अहमक आदि |
अहमी अहमक आदि, आह आदंश अमानत |
करें नारि-अपमान, इन्हें हैं लाखों लानत |
बहन-बेटियां माय, सुरक्षित प्रभुवर करदे |
नाकारा कानून व्यवस्था व्यर्थ ओहदे ||
*इच्छा / मर्जी
हदे पार करते रहे, जब तब दुष्टाबादि |
*अहक पूरते अहर्निश, अहमी अहमक आदि |
अहमी अहमक आदि, आह आदंश अमानत |
करें नारि-अपमान, इन्हें हैं लाखों लानत |
बहन-बेटियां माय, सुरक्षित प्रभुवर करदे |
नाकारा कानून व्यवस्था व्यर्थ ओहदे ||
*इच्छा / मर्जी
सकते में हैं जिंदगी, माँ - बहनों की आज |
सकते में हैं जिंदगी, माँ - बहनों की आज |
प्रश्न चिन्ह सम्बन्ध पर, आय नारि को लाज |
आय नारि को लाज, लाज लुट रही सड़क पर |
दब जाए आवाज, वहीँ पर जाती है मर |
कहीं नहीं महफूज, दुष्ट मिल जाँय बहकते |
बने सुर्खियाँ न्यूज, नहीं कुछ भी कर सकते ||
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"महिला दिवस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
बन्धन में वे बाँध के, मन की मर्जी थोप |
मन की मर्जी थोप, नारि को हरदम लूटा |
कर इनको आजाद, अन्यथा तोड़े खूंटा |
वही काटते आज, जमाने ने जो बोया |
रहें कुंवारे पुरुष, अश्रु से नयन भिगोया ||
निष्फल करना कठिन, दुर्जनों के मनसूबे
-बेसुरम् मन सूबे से स्वार्थ से, जुड़े धर्म से सोच । गर्व करें निज वंश पर, रहा अन्य को नोंच । रहा अन्य को नोंच, बढ़ी जाती कट्टरता । जिनकी सोच उदार, मूल्य वह भारी भरता । भारी पड़ते दुष्ट, आज सज्जन मन ऊबे । निष्फल करना कठिन, दुर्जनों के मनसूबे ॥ |
बीजेपी -बड़ी जालिम पार्टीडॉ शिखा कौशिक ''नूतन ''
नेता जी क्या कहते हैं ?
दादी दिल दिखता दुखित, द्रवित दिव्यतम तेज । देख पार्टी की दशा, रही लानतें भेज । रही लानतें भेज, किया था प्राण निछावर । सत्ता लोलुप लोग, चाहते केवल पावर । कल बेटा कुर्बान, टले पोते की शादी । लगा वंश पर दाँव, दुखी हो जाए दादी ॥ |
महिला दिवस अब प्रतिदिन मनाना चाहिए ( Women's Day ) .....>>> संजय कुमारसंजय कुमार चौरसिया
" जीवन की आपाधापी "
नारि-सशक्तिकरण में, जगह जगह खुरपेंच | राम गए मृग छाल हित, लक्ष्मण रेखा खेंच | लक्ष्मण रेखा खेंच, नीच रावण है ताके | साम दाम भय भेद, प्रताणित करे बुलाके | अक्षम है कानून, पुलिस अपनों से हारी | नारि नहीं महफूज, लूटते रहे *अनारी || |
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ReplyDelete.
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... :)
पुन: आभार आपका..
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This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विवेचना किया है. सत्य या नहीं यह तो कहना मुश्किल है, हो सकता है मृत्यु के उपरांत भी कोई सत्ता हो. हाँ स्वर्ग और हूरों वाली बात मजेदार जरूर लगती है.
ReplyDeleteनीरज 'नीर'
आज महिला दिवस के अवसर पर पढ़ें मेरी कविता : नारी
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): “नारी”
पहले छँद में यह विरोधाभास क्यों प्रतीत हो रहा है?......
ReplyDelete'आत्म-विस्मरित'/ 'आत्मरति', रहे हमेशा शांत ।
'कह के मिथ्या जगत,' / 'नकारे खुदा, शिवाला' ।
आत्म-विस्मरित और आत्मरति दोनो शांत कैसे?
जगत को मिथ्या कहने वाले भला कब खुदा शिवालय नकारते है?
भाव स्पष्ट कीजिए थोडा सा.....
आत्म-विस्मरित=अपना ध्यान ना रखने वाला
Deleteआत्मरत नहीं बल्कि
आत्म-रति=ब्रह्मज्ञान
कह के मिथ्या जगत
Deleteइस पंक्ति को ऐसे लिखना चाहिए था-
कहते मिथ्या मोक्ष
ठीक है न आदरणीय-
आदरणीय सुझाव दीजिये-
Deleteयह तवरित कुण्डलियाँ कभी कभी अर्थ का अनर्थ कर ही देती हैं-
सादर-
'कहते मिथ्या मोक्ष' सही है.
Deleteदेह-विस्मरित,आत्मरति, रहे हमेशा शांत ।
कह के मिथ्या मोक्ष,नकारे खुदा, शिवाला।
चर्चित करने के लिए क्षमा करेँ.........
बहुत बहुत आभार आदरणीय-
Deleteयह कुण्डलिया सार्थक हुई-आपके चर्चा करने से ही-
इसलिए पुन: आभार-
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteरविकर जी आपका आभार!
ReplyDeleteमहिला दिवस की शुभकामनाएँ!
नारि-सशक्तिकरण में, जगह जगह खुरपेंच |
ReplyDeleteराम गए मृग छाल हित, लक्ष्मण रेखा खेंच |
लक्ष्मण रेखा खेंच, नीच रावण है ताके |
साम दाम भय भेद, प्रताणित करे बुलाके |
अक्षम है कानून, पुलिस अपनों से हारी |
नारि नहीं महफूज, लूटते रहे *अनारी ||
वाह बहुत बेहतरीन ,,,प्रस्तुत;
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दुख का निवारण औरतों को उनके हक़ देने में है
ReplyDeleteउम्दा पोस्ट के लिए शुक्रिया.