Monday, 4 March 2013

दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय



रंग,


धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 

नीले हाथी पर चढ़े, देखो माया मित्र । 
चली तिरंगे पर लटक, दल बल सहित विचित्र । 

दल बल सहित विचित्र, हरा से भगवा हारे । 
मिटता लाल निशान, करे तृण-मूल किनारे । 

रंग रूप हैं भिन्न, खिन्न है सभी कबीले ।  
धानी पीला-श्वेत, बैगनी काले नीले ॥  




सदा 

 SADA
दो बूंदे जिंदगी की, पल पल रही पिलाय |
लेकिन लकवा ग्रस्त मन, अंग विकल लंगड़ाय |
अंग विकल लंगड़ाय, काम ना करता माथा |
पद मद में मगरूर, नकारे स्नेहिल गाथा |
नीति नियम शुभ रीति, देखकर आँखें मूंदे |
इष्ट मित्र परिवार, बहा लें दो दो बूंदे-

"दोहे-व्यर्थ न समय गवाँइए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

बहुत सही है समय यह, बहुत सही उपदेश |
समय पालना नियम से, काटे सारे क्लेश ||



नफरत की सौदागरी

 

नफ़रत की सौदागरी, कर *सौनिक व्यापार |
ना हर्रे ना फिटकरी, आये रक्त बहार |


आये रक्त बहार, लोथड़े भी बिक जाएँ |
मस्जिद मठ बाजार, जहाँ मर्जी मरवायें |


कर लो बम विस्फोट, शान्ति दुनिया को अखरत |
हथियारों की होड़, भरे यारों में नफरत ||


*मांस बेंचने वाला / बहेलिया

जब कभी रस्ता चले । फब्तियां कसता चले-

जब कभी रस्ता चले ।
फब्तियां कसता चले ।।

जान जोखिम में मगर-
मस्त-मन हँसता  चले ।।

अब बजट में आदमी -
हो गया सस्ता चले ।।

मौत मंहगी हो गई -
हाल कुछ खस्ता चले ।।

तेज रविकर का बढ़ा -
चाँद पर बसता चले  ॥

दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय-

 दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय । 
पाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय । 
 (यमक अलंकार)
पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला । 
भानुमती ने पुन:, पिटारा कुनबा खोला । 
(श्लेष अलंकार )
पालागन सरकार, बनाओ रविकर अहमक । 
निगलो भारत देश,  मौज में रानी दीमक ।।
पाला पड़ना= मुहावरा
पाला= पालना / जल की बूंदे जो सर्दियों में (आम ) फसल बर्बाद कर देती है /
पालागन = प्रणाम 

तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय

तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय । 

धनहर-ईंधन धन हरे, धनहारी मुसकाय । 


धनहारी मुसकाय, आय व्यय का तखमीना । 

आग लगे धनधाम, चैन जनता का छीना । 


इ'स्कैम और इ' स्कीम, भाव इसमें हैं गहरे । 

धन्य धन्य सरकार, तीन, तीन तेरह करे ॥ 

धनहर=धन चुराने वाला 
धनहारी = दूसरे के धन का उत्तराधिकारी 
धनधाम=रूपया पैसा और घरबार 

8 comments:

  1. बहुत अच्छे

    ReplyDelete
  2. सार्थक और सुन्दर रंगों से ओतप्रोत प्रसूति,आभार.

    ReplyDelete
  3. दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय ।
    पाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय ।
    पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला ।
    भानुमती ने पुन:, पिटारा कुनबा खोला ।
    पालागन सरकार, बनाओ रविकर अहमक ।
    निगलो भारत देश, मौज में रानी दीमक ।।


    बहुत उम्दा ,,,रविकर जी,,,

    Recent postकाव्यान्जलि: रंग,

    ReplyDelete
  4. बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  5. जय गुरुदेव रविकर जी ,टिपण्णी हमार खाय रहत है आपका स्पेम बक्सा ..

    ReplyDelete
  6. नीले हाथी पर चढ़े, देखो माया मित्र ।
    चली तिरंगे पर लटक, दल बल सहित विचित्र ।

    दल बल सहित विचित्र, हरा से भगवा हारे ।
    मिटता लाल निशान, करे तृण-मूल किनारे ।

    रंग रूप हैं भिन्न, खिन्न है सभी कबीले ।
    धानी पीला-श्वेत, बैगनी काले नीले ॥

    सशक्त प्रस्तुति .तंज ही तंज .राजनीति के रंग लिए .

    ReplyDelete
  7. बहुत बढ़िया लिंक्स | आभार

    ReplyDelete
  8. सार्थक प्रस्तुति,जय गुरुदेव,जय रविकर

    ReplyDelete