चली तिरंगे पर लटक, दल बल सहित विचित्र ।
दल बल सहित विचित्र, हरा से भगवा हारे ।
मिटता लाल निशान, करे तृण-मूल किनारे ।
रंग रूप हैं भिन्न, खिन्न है सभी कबीले ।
धानी पीला-श्वेत, बैगनी काले नीले ॥
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सदा
SADA
दो बूंदे जिंदगी की, पल पल रही पिलाय | लेकिन लकवा ग्रस्त मन, अंग विकल लंगड़ाय | अंग विकल लंगड़ाय, काम ना करता माथा | पद मद में मगरूर, नकारे स्नेहिल गाथा | नीति नियम शुभ रीति, देखकर आँखें मूंदे | इष्ट मित्र परिवार, बहा लें दो दो बूंदे- |
"दोहे-व्यर्थ न समय गवाँइए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
बहुत सही है समय यह, बहुत सही उपदेश | समय पालना नियम से, काटे सारे क्लेश || |
नफरत की सौदागरीनफ़रत की सौदागरी, कर *सौनिक व्यापार | ना हर्रे ना फिटकरी, आये रक्त बहार | आये रक्त बहार, लोथड़े भी बिक जाएँ | मस्जिद मठ बाजार, जहाँ मर्जी मरवायें | कर लो बम विस्फोट, शान्ति दुनिया को अखरत | हथियारों की होड़, भरे यारों में नफरत || *मांस बेंचने वाला / बहेलिया |
जब कभी रस्ता चले । फब्तियां कसता चले-
जब कभी रस्ता चले ।
फब्तियां कसता चले ।।
जान जोखिम में मगर-
मस्त-मन हँसता चले ।।
अब बजट में आदमी -
हो गया सस्ता चले ।।
मौत मंहगी हो गई -
हाल कुछ खस्ता चले ।।
तेज रविकर का बढ़ा -
चाँद पर बसता चले ॥
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दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय-
दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय ।
पाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय ।
(यमक अलंकार)
पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला ।
भानुमती ने पुन:, पिटारा कुनबा खोला ।
(श्लेष अलंकार )
पालागन सरकार, बनाओ रविकर अहमक ।
निगलो भारत देश, मौज में रानी दीमक ।।
पाला पड़ना= मुहावरा
पाला= पालना / जल की बूंदे जो सर्दियों में (आम ) फसल बर्बाद कर देती है /
पालागन = प्रणाम
तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय
तीन, तीन तेरह करे, मार्च पास्ट करवाय ।
धनहर-ईंधन धन हरे, धनहारी मुसकाय ।
धनहारी मुसकाय, आय व्यय का तखमीना ।
आग लगे धनधाम, चैन जनता का छीना ।
इ'स्कैम और इ' स्कीम, भाव इसमें हैं गहरे ।
धन्य धन्य सरकार, तीन, तीन तेरह करे ॥
धनहर=धन चुराने वाला
धनहारी = दूसरे के धन का उत्तराधिकारी
धनधाम=रूपया पैसा और घरबार
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बहुत अच्छे
ReplyDeleteसार्थक और सुन्दर रंगों से ओतप्रोत प्रसूति,आभार.
ReplyDeleteदीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय ।
ReplyDeleteपाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय ।
पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला ।
भानुमती ने पुन:, पिटारा कुनबा खोला ।
पालागन सरकार, बनाओ रविकर अहमक ।
निगलो भारत देश, मौज में रानी दीमक ।।
बहुत उम्दा ,,,रविकर जी,,,
Recent postकाव्यान्जलि: रंग,
बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteजय गुरुदेव रविकर जी ,टिपण्णी हमार खाय रहत है आपका स्पेम बक्सा ..
ReplyDeleteनीले हाथी पर चढ़े, देखो माया मित्र ।
ReplyDeleteचली तिरंगे पर लटक, दल बल सहित विचित्र ।
दल बल सहित विचित्र, हरा से भगवा हारे ।
मिटता लाल निशान, करे तृण-मूल किनारे ।
रंग रूप हैं भिन्न, खिन्न है सभी कबीले ।
धानी पीला-श्वेत, बैगनी काले नीले ॥
सशक्त प्रस्तुति .तंज ही तंज .राजनीति के रंग लिए .
बहुत बढ़िया लिंक्स | आभार
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति,जय गुरुदेव,जय रविकर
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