लिए नौ लखा हार, सुरक्षा घेरा तोड़े -
महिला दिवस त्यौहार -अख़बारों में विज्ञापनों की बहार
डॉ शिखा कौशिक ''नूतन ''
छोड़े सज्जन शॉर्टकट, उधर भयंकर लूट |
देर भली अंधेर से, पकड़ें लम्बा रूट |
चुनो सुरक्षित मार्ग, सिखाते पापा मम्मी |
लिए नौ लखा हार, सुरक्षा घेरा तोड़े |
बाला लापरवाह, लुटा करके ही छोड़े ||
बाला लापरवाह, लुटा करके ही छोड़े ||
NAVIN C. CHATURVEDI
विष्णु-प्रिया पद चापती, है लक्ष्मी साक्षात |
उधर कालिका दाबती, रख कर शिव पर लात | रख कर शिव पर लात, रूप दोनों ही भाये | नारीवादी किन्तु, विष्णु पर हैं भन्नाए |
शिव के सिर पर गंग, उधर कैकेयी की हद |
इत लक्ष्मी को मिला, प्यार से विष्णु-प्रिया पद || |
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अहमी अहमक आदि, आह आदंश अमानत | करें नारि-अपमान, इन्हें हैं लाखों लानत | बहन-बेटियां माय, सुरक्षित प्रभुवर करदे | नाकारा कानून व्यवस्था व्यर्थ ओहदे || *इच्छा / मर्जी |
"महिला दिवस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
गोया गैया गोपियाँ, गोरखधंधा गोप |
बन्धन में वे बाँध के, मन की मर्जी थोप | मन की मर्जी थोप, नारि को हरदम लूटा | कर इनको आजाद, अन्यथा तोड़े खूंटा | वही काटते आज, जमाने ने जो बोया | रहें कुंवारे पुरुष, अश्रु से नयन भिगोया || |
महिला दिवस अब प्रतिदिन मनाना चाहिए ( Women's Day ) .....>>> संजय कुमारसंजय कुमार चौरसिया
" जीवन की आपाधापी "
नारि-सशक्तिकरण में, जगह जगह खुरपेंच | राम गए मृग छाल हित, लक्ष्मण रेखा खेंच | लक्ष्मण रेखा खेंच, नीच रावण है ताके | साम दाम भय भेद, प्रताणित करे बुलाके | अक्षम है कानून, पुलिस अपनों से हारी | नारि नहीं महफूज, लूटते रहे *अनारी || |
क्यूंकि स्त्री मात्र देह ही तो है.......
उपासना सियाग
nayee udaan
हारा कुल अस्तित्व ही, जीता छद्म विचार |
वैदेही तक देह कुल, होती रही शिकार |
होती रही शिकार, प्रपंची पुरुष विकारी |
चले चाल छल दम्भ, मकड़ जाले में नारी |
सहनशीलता त्याग, पढाये पुरुष पहारा |
ठगे नारि को रोज, झूठ का लिए सहारा ||
हारा कुल अस्तित्व ही, जीता छद्म विचार |
वैदेही तक देह कुल, होती रही शिकार |
होती रही शिकार, प्रपंची पुरुष विकारी |
चले चाल छल दम्भ, मकड़ जाले में नारी |
सहनशीलता त्याग, पढाये पुरुष पहारा |
ठगे नारि को रोज, झूठ का लिए सहारा ||
सकते में हैं जिंदगी, माँ - बहनों की आज |
सकते में हैं जिंदगी, माँ - बहनों की आज |
प्रश्न चिन्ह सम्बन्ध पर, आय नारि को लाज |
आय नारि को लाज, लाज लुट रही सड़क पर |
दब जाए आवाज, वहीँ पर जाती है मर |
कहीं नहीं महफूज, दुष्ट मिल जाँय बहकते |
बने सुर्खियाँ न्यूज, नहीं कुछ भी कर सकते ||
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नि:संदेह देह देह ही है देह भी नहीं नि:संदेह (कविता विशेष)
अविनाश वाचस्पति
कहता जिन्हें विदेह युग, उनकी भी थी देह |
काली कुबड़ी देह धर, करता वह भी नेह |
करता वह भी नेह, नहीं संदेह जरा भी |
देहाती की देह, देहली भरा पड़ा जी |
तरह तरह के वाद, तभी तो मानव सहता ||
मानो अब देहात्म, वाद यह नुक्कड़ कहता |
हिला हिला सा हिन्द है, हिले हिले लिक्खाड़ -मूर्ख दिवस या नारी दिवस ...?
tarun_kt
हिला हिला सा हिन्द है, हिले हिले लिक्खाड़ |
भांजे महिला दिवस पर, देते भूत पछाड़ |
देते भूत पछाड़, दहाड़े भारत वंशी |
भांजे भांजी मार, चाल चलते हैं कंसी |
बड़े ढपोरी शंख, दिखाते ख़्वाब रुपहला |
महिला नहिं महफूज, दिवस बेमकसद महिला ||
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औरत की तरक्क़ी जारी है...Dr. Ayaz Ahmad |
औरत रत निज कर्म में, मिला सफलता मन्त्र ।
सेहत से हत भाग्य पर, नरम सुरक्षा तंत्र ।
नरम सुरक्षा तंत्र, जरायम बढ़ते जाते ।
करता हवश शिकार, नहीं कामुक घबराते ।
जिन्सी ताल्लुकात, तरक्की करता भारत ।
शादी बिन बारात, बिचारी अब भी औरत ॥
गोया गैया गोपियाँ, गोरखधंधा गोप |
ReplyDeleteबन्धन में वे बाँध के, मन की मर्जी थोप |
मन की मर्जी थोप, नारि को हरदम लूटा |
कर इनको आजाद, अन्यथा तोड़े खूंटा |
वही काटते आज, जमाने ने जो बोया |
रहें कुंवारे पुरुष, अश्रु से नयन भिगोया ||
गोया गैया गोपियाँ, गोरखधंधा गोप |
बन्धन में वे बाँध के, मन की मर्जी थोप |
मन की मर्जी थोप, नारि को हरदम लूटा |
कर इनको आजाद, अन्यथा तोड़े खूंटा |
वही काटते आज, जमाने ने जो बोया |
रहें कुंवारे पुरुष, अश्रु से नयन भिगोया ||
प्रासंगिक व्यंग्य विनोद महिला दिवस पर .
ReplyDeleteऔरत रत निज कर्म में, मिला सफलता मन्त्र ।
सेहत से हत भाग्य पर, नरम सुरक्षा तंत्र ।
नरम सुरक्षा तंत्र, जरायम बढ़ते जाते ।
करता हवश शिकार, नहीं कामुक घबराते ।
जिन्सी ताल्लुकात, तरक्की करता भारत ।
शादी बिन बारात, बिचारी अब भी औरत ॥
बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब .
कोई भी नारी दिवस सार्थक तब होगा जब निर्भया मामले में कथित बालअपराधी को सूली पे चढ़ाया जाएगा .शाहबानो का हक़ छीन के आप वोट बैंक की खातिर संविधान में संशोधन कर सकते है निर्भया को सम्मान दिल वा सकतें हैं ,? आप इस पिल्लै को फांसी पे चढ़ाके .कोई सुन रहा है इस गूंगे बहरे तंत्र में .
ReplyDeleteकिसी शायर ने कहा भी है -
ReplyDeleteकहिये तो आसमाँ को ज़मीं पे उतार लाएं
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए
कितना अच्छा हो, अगर साल 2013 में यह नज़ारा देखने को मिले कि परंपरागत और आधुनिक समाज में यह होड़ लगे कि देखें कौन औरत को हिफ़ाज़त और सम्मान देने में दूसरे को पछाड़ता है ?
मज़बूत इरादे और सकारात्मक प्रतियोगिता के ज़रिये हम औरतों को वह सब दे सकते हैं, जो उनका वाजिब हक़ है।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/mahila-diwas