माया के जंजाल की, बड़ी मुलायम काट |
लेकिन वह अखिलेश भी, करता बन्दरबांट |
करता बन्दरबांट, धकेले भर भर कुप्पा |
जहाँ खड़ी हो खाट, बैठ जाता वह चुप्पा |
यमुना कुंडा ख़ास, कुम्भ भरदम भटकाया |
खोवे होश-हवास, खड़ी मुस्काये माया-
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बेटा भेजूं हाट, समय-गति गत कर काटे -
काटे गए दरख्त हैं, बूढ़ पुरनियाँ रूग्न |
बीज नए यूरोप के, उगते पादप *भुग्न |
उगते पादप *भुग्न, महामारी फैलेगी |
हुवे अधिनियम सख्त, त्रास लडको को देगी |
मिले विकट हथियार, कलेजा रविकर फाटे |
बेटा भेजूं हाट, समय-गति गत कर काटे ||
*वक्र / टेढ़ा
हमारी गलतियों का खामियाजा तो हमें हि भुगतना होगा !!
पूरण खण्डेलवाल
कर्णधार का हो रहा, विकृत कर्णाधार | गीदड़ भभकी दे रही, यह छक्का सरकार | यह छक्का सरकार, नहीं पक्का है एक्सन | हित साधे परिवार, खूब खा रहे कमीशन | हँसता मइका देश, पक्ष ले दुराचार का | रही नहीं जूँ रेंग, सड़ा जी कर्णधार का | |
क्या हमारे भगवानो को शर्म भी आती होगी ?
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
ठलुवा कलुवा कर रहा, फिर से बेडा गर्क | राकस को वरदान दे, पैदा करता फर्क | पैदा करता फर्क, नर्क का भय नहीं होता | मारे सज्जन वृन्द, धरा को गहिर डुबोता, लिया सुअर अवतार, ढूँढ़ता फिरता कलुवा | ठेलुवन सा नित खेल, करे यह बडका ठलुवा || |
भयभीत बेटियों का हर तात जागता हैअरुन शर्मा 'अनन्त'
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की)
आये नए जमाने में हैं गजब परिंदे - पंखों शरीर पर रेजर तेज बांधता है - ताके लिए नज़ारे पीछा किया तो समझो- पाओ नहीं जमानत जेल कौंधता है- |
नाग गले शशि गंग धरे तन भस्म मले शिथिलाय रहे-
मदिरा सवैया
स्वारथ में कुल देव पड़े, शुभ मंथन लाभ उठाय रहे ।
भंग-तरंग चढ़े सिर पे शिव को विषपान कराय रहे । कंठ रुका विष देह जला शिव, पर्वत पे भरमाय रहे । नाग गले शशि गंग धरे तन भस्म मले शिथिलाय रहे । |
behatareen , ghar ki taraf prasthan ,sadar
ReplyDeleteबेहतरीन लिंक्स और सार्थक टिप्पड़ियों की प्रस्तुति,आभार आदरणीय.
ReplyDeleteगुप्ता जी सुन्दर लिंक का संयोजन
ReplyDeleteमाया के जंजाल की, बड़ी मुलायम काट |
ReplyDeleteलेकिन वह अखिलेश भी, करता बन्दरबांट |
करता बन्दरबांट, धकेले भर भर कुप्पा |
जहाँ खड़ी हो खाट, बैठ जाता वह चुप्पा |
यमुना कुंडा ख़ास, कुम्भ भरदम भटकाया |
खोवे होश-हवास, खड़ी मुस्काये माया-
क्या बात है ,बहुत खूब सर जी .
वाह आदरणीय गुरुदेव श्री क्या बात है लाजवाब अपनी रचना पर ऐसा सुन्दर प्रतिउत्तर पाकर ह्रदय गद गद हो जाता है रचना के भाग जाग जाते हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-03-2013) के चर्चा मंच 1186 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteबेहतरीन लिनक्स ...बैसे ये काम जो आप करते है आसान नहीं ..सादर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआभार।
जबरदस्त .... कुण्डलिया विधा से सच को प्रकट करती रचना हेतु शुभकामनायें श्रीमान
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स आभार
ReplyDeletelatest postऋण उतार!