माने बदले दोस्ती, माने होते स्वार्थ ।
दुनिया यूँ ही पोसती, करवाती परमार्थ ।
करवाती परमार्थ, स्वयं बनती लाभार्थी ।
हो सच्चों की मौत, बचे नहिं सत्य प्रार्थी ।
व्यवहारिक दस्तूर, भूल प्राचीन फ़साने ।
चले फ़साने आज, दोस्ती के कटु माने ॥
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करकश करकच करकरा, कर करतब करग्राह ।
तरकश से पुरकश चले, डूब गया मल्लाह ।
डूब गया मल्लाह, मरे सल्तनत मुगलिया ।
जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया ।
धर्म जातिगत भेद, याद आ जाते बरबस ।
जीता औरंगजेब, जनेऊ काटे करकश ।
करकश=कड़ा करकच=समुद्री नमक
करकरा=गड़ने वाला
कर = टैक्स
करग्राह = कर वसूलने वाला राजा
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
राना जी छत पर पड़े, गढ़ में बड़े वजीर |
नई नई तरकीब से, दे जन जन को पीर | दे जन जन को पीर, नीर गंगा जहरीला | मँहगाई *अजदहा, समूचा कुनबा लीला | रविकर लीला गजब, मरे कुल नानी नाना | बजट बिराना पेश, देखता रहा बिराना || **अजदहा=बड़ा अजगर बिराना=पराया / मुँह चिढाना |
सर्ग-3
भाग-1 अ
शान्ता के चरण
चले घुटुरवन शान्ता, सारा महल उजेर |
राज कुमारी को रहे, दास दासियाँ घेर || सबसे प्रिय लगती उसे, अपनी माँ की गोद | माँ बोले जब तोतली, होवे परम-विनोद || कौला दालिम जोहते, बैठे अपनी बाट | कौला पैरों को मले, हलके-फुल्के डांट || दालिम टहलाता रहे, करवाए अभ्यास | बारह महिने में चली, करके सतत प्रयास || |
बहुत बढ़िया हैं सभी टिप्पणियाँ!
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक,सुन्दर काव्य प्रस्तुति,सादर नमन.
ReplyDeleteबहुत बढिया लिंक्स
ReplyDeleteऔर आपकी शानदार टिप्पणी
sundar sanyojan.sudar tikatoppadi
ReplyDeleteजीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
ReplyDeleteपहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |
यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |
खुल जाती झट पोल, पडा इटली से पाला |
बनवाया उस रोज, आय व्यय का तख्मीना |
जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना ||
यूपीए २ पर करारा तंज .
...सभी लिंक्स बहुत ही अच्छे, शिक्षाप्रद और मनोरंजक है रविकर जी!...एक एक कर के पढूंगी!...आभार!
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