रविकर शिव-सत्संग, मगन-मन सुने इंगला -कुम्भ-महिमा
इड़ा पिंगला संग मे, मिले सुषुम्ना देह ।
बरस त्रिवेणी में रही, सुधा समाहित मेह ।
सुधा समाहित मेह, गरुण से कुम्भ छलकता ।
संगम दे सद्ज्ञान , बुद्धि में भरे प्रखरता ।
रविकर शिव-सत्संग, मगन-मन सुने इंगला ।
कर नहान तप दान, मिले वर इड़ा-पिंगला।
इंगला=पृथ्वी / पार्वती / स्वर्ग इड़ा-पिंगला=सरस्वती-लक्ष्मी (विद्या-धन ) |
किडनी डी एम के गई, वेंटीलेटर पार ।
इन्ज्वायिंग मेजोरिटी, बोल गई सरकार ।
बोल गई सरकार, बहुत आनंद मनाया ।
त्राहि त्राहि इंसान, देखना भैया भाया ।
सत्ता का आनंद, हाथ की खुजली मिटनी ।
हाथी सैकिल बैठ, लूट लाएगा किडनी ।
वाह वाह ताऊ क्या लात है? में श्री अरविंद मिश्र
ताऊ रामपुरिया
गुरुवर श्री अरविन्द जी, जिनका धाकड़ ब्लॉग | वीणा-वादन ब्लॉग पर, साधे ताऊ-राग | साधे ताऊ-राग, फाग में जागे जागे | गुरु-वाइन का रंग, फिरे हैं भागे भागे | ये ही तो सरकार, ट्रांसफर फर फर रविकर | विश्वनाथ का नगर, छोड़ के जाते गुरुवर || |
pramod joshi
इच्छाधारी सर्प हैं, हटे दृश्य वीभत्स |
नाग नाथ को नाथ ले, साँप नाथ का वत्स |
साँप नाथ का वत्स, अघासुर पड़ा अघाया |
हुई मुलायम देह, बहुत भटकाई माया |
मनुज वेश में आय, वोट की मांगे भिक्षा |
सुगढ़ सलोनी देह, वोट देने की इच्छा ||
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कैसी ये सरकारRajendra Kumar
भूली-बिसरी यादें
लाई-गुड़ देती बटा, मुँह में लगी हराम | रेवड़ियाँ कुछ पा गए, भूल गए हरिनाम | भूल गए हरिनाम, इसी में सारा कौसल | बिन बोये लें काट, चला मत खेतों में हल | बने निकम्मे लोग, चले हैं कोस अढ़ाई | गए कई युग बीत, हुई पर कहाँ भलाई ?? |
किसे चुने हत्यारो और लुटेरों में ?
tarun_kt
यारा हत्यारा चुनो, बड़े लुटेरे दुष्ट | टेरे माया को सदा, करें बैंक संपुष्ट | करें बैंक संपुष्ट, बना देते भिखमंगा | मर मर जीना व्यर्थ, नाचता डाकू नंगा | हत्यारा है यार, ख़याल रख रहा हमारा | वह मारे इक बार, रोज मत मरना यारा || |
बेहतरीन लिंक्स संयोजन ... आभार
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय,सादर नमन.
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति ...रोचक लिंक्स...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति महोदय ,
ReplyDeleteसभी लिनक्स एक दूसरे से बढकर..............
साभार.......
क्या बात है ?बहुत खूब कही है जो भी कही है .काव्यात्मक व्यंग्य विनोद तंज शगल सभी इक साथ बहु -आयामी फाग कुंडलियाँ .
ReplyDeleteलगता है कुंडलिया आज तक की तरह अपडेट होती रहती हैं ताजी ताजी
ReplyDeleteआपको तो टिप्पणीश्री की उपाधि से विभूषित करना पड़ेगा मित्र!
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