Thursday, 7 March 2013

कल बेटा कुर्बान, टले पोते की शादी -


सकते में हैं जिंदगी, माँ - बहनों की आज |


सकते में हैं जिंदगी, माँ - बहनों की आज |
प्रश्न चिन्ह सम्बन्ध पर, आय नारि को लाज |

आय नारि को लाज, लाज लुट रही सड़क पर |
दब जाए आवाज, वहीँ पर जाती है मर |

कहीं नहीं महफूज, दुष्ट मिल जाँय बहकते |
बने सुर्खियाँ न्यूज,  नहीं कुछ भी कर सकते ||

दादी दिल दिखता दुखित, द्रवित दिव्यतम तेज ।
देख पार्टी की दशा, रही लानतें भेज ।

रही लानतें भेज, किया था प्राण निछावर ।
सत्ता लोलुप लोग, चाहते केवल पावर ।

कल बेटा कुर्बान, टले पोते की शादी ।
लगा वंश पर दाँव, दुखी हो जाए दादी ॥

क्यूँ नेहरू की रेस, मिटाए बबलू देता-
आमोदी दादी दुखी, जा दोजख में देश |

पोते को लेता फँसा, पी एम् पद की रेस |



पी एम् पद की रेस, मरे क्या सारे नेता  |

क्यूँ नेहरू की रेस, मिटाए बबलू देता  |



रे पोते नादान, खिलाया तुझको गोदी |

झटपट करले व्याह, छोड़ मोदी आमोदी | 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -12

सर्ग-3

भाग-1 ब
एक दिवस की बात है, बैठ धूप सब खाँय |

घटना बारह बरस की, सौजा रही सुनाय ||


 सौजा दालिम से कहे, वह आतंकी बाघ |

बारह मारे पूस में, पांच मनुज को माघ ||

सेनापति ने रात में, चारा रखा लगाय |

पास ग्राम से किन्तु वह, गया वृद्ध को खाय ||

 " प्राञ्जल की 14वीं वर्षगाँठ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


प्रिय प्राञ्जल आशीष है, कल था नेट से दूर |
छिन्नमस्तिके मातु से, मिले प्यार भरपूर |


मिले प्यार भरपूर, शक्तिपीठों में आये |
बावन हैं यह पीठ, सती ने स्वयं बनाए |


यश फैले चहुँओर, होय मंगल ही मंगल |
बाढ़े बुद्धि विवेक, स्वास्थ्य उत्तम प्रिय प्राञ्जल |

दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय-

 दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय । 

पाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय । 

 

पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला । 

भानुमती ने पुन:, पिटारा कुनबा खोला । 

 

पालागन सरकार, बनाओ रविकर अहमक । 

निगलो भारत देश,  मौज में रानी दीमक ।।
पाला पड़ना= मुहावरा
पाला= पालना / जल की बूंदे जो सर्दियों में (आम ) फसल बर्बाद कर देती है /
पालागन = प्रणाम

निष्फल करना कठिन, दुर्जनों के मनसूबे -

मन सूबे से स्वार्थ से, जुड़े धर्म से सोच । 
गर्व करें निज वंश पर, रहा अन्य को नोंच । 
रहा अन्य को नोंच, बढ़ी जाती कट्टरता । 
जिनकी सोच उदार, मूल्य वह भारी भरता ।
 भारी पड़ते दुष्ट, आज सज्जन मन ऊबे । 
निष्फल करना कठिन,  दुर्जनों के मनसूबे ॥ 


4 comments:

  1. मन सूबे से स्वार्थ से, जुड़े धर्म से सोच ।
    गर्व करें निज वंश पर, रहा अन्य को नोंच ।
    रहा अन्य को नोंच, बढ़ी जाती कट्टरता ।
    जिनकी सोच उदार, मूल्य वह भारी भरता ।
    भारी पड़ते दुष्ट, आज सज्जन मन ऊबे ।
    निष्फल करना कठिन, दुर्जनों के मनसूबे ॥

    बहुत बढ़िया,,,,रविकर जी,,,,

    Recent post: रंग गुलाल है यारो,

    ReplyDelete
  2. बढ़िया गुरूजी ... बहुत सुन्दर लिंक्स |

    ReplyDelete
  3. दुख का निवारण हक़ देने में है
    उम्दा पोस्ट के लिए शुक्रिया.

    ReplyDelete