Thursday, 14 March 2013

गिरेबान में झाँक, स्वयं के पाकिस्तानी





पाकिस्तानी नेशनल, असेम्बली दे घाव-

पाकिस्तानी नेशनल, असेम्बली दे घाव । 

अफजल फांसी पर करे, यह निंदा प्रस्ताव । 



यह निंदा प्रस्ताव, लाश परिजन को जाए । 

 देता दुष्ट सुझाव,  दोगलापन भरमाये । 



गायब सैनिक शीश, काट कर कारस्तानी । 

गिरेबान में झाँक, स्वयं के पाकिस्तानी  ॥

हमारी गलतियों का खामियाजा तो हमें हि भुगतना होगा !!


पूरण खण्डेलवाल  


कर्णधार का हो रहा, विकृत कर्णाधार |
गीदड़ भभकी दे रही, यह छक्का सरकार |
यह छक्का सरकार, नहीं पक्का है एक्सन |
हित साधे परिवार, खूब खा रहे कमीशन |
हँसता मइका देश, पक्ष ले दुराचार का |
रही नहीं जूँ रेंग,  सड़ा जी कर्णधार का |

मौज करो दो साल, नहीं तू बालिग बेटा-

(1)
लड़का कालेज छोड़ता, भाँप रिस्क आसन्न |
क्लास-मेट को हर समय, करना पड़े प्रसन्न |

करना पड़े प्रसन्न, धौंस हर समय दिखाती |
काला चश्मा डाल,  केस का भय दिखलाती |

है इसका क्या तोड़, रोज देती हैं हड़का |
लूंगा आँखे फोड़, आज बोल है लड़का ||
(2)
बेटा भूलो नीति को, काला चश्मा डाल । 
दुनिया के करते चलो, सारे कठिन सवाल । 

 
सारे कठिन सवाल, भोग सहमति से करना । 
पूछ उम्र हर हाल, नहीं तो करना भरना । 
संस्कार जा भूल, पडेगा नहीं चपेटा । 
मौज करो दो साल, नहीं तू बालिग बेटा ॥ 

 घनाक्षरी 
 सहमति संभोग हैं ,  बेशर्म बड़े लोग हैं -
पतनोमुखी योग हैं,  कानून ले आइये । 
अठारह से घटा के,  तो सोलह में पटा  के 
नैतिकता को हटा के, संस्कार भुलाइये । 
 लडको की आँख फोड़, करें नहीं जोड़ तोड़ 
कानून का है निचोड़,  रस्ता भूल जाइये । 
नीति सत्ताधारियों की,  जान सदाचारियों की,  । 
"लाज आज नारियों की, देश में बचाइये ।

क्या हमारे भगवानो को शर्म भी आती होगी ?


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 


ठलुवा कलुवा कर रहा, फिर से बेडा गर्क |
राकस को वरदान दे, पैदा करता फर्क |

पैदा करता फर्क, नर्क का भय नहीं होता |
मारे सज्जन वृन्द, धरा को गहिर डुबोता,

लिया सुअर  अवतार, ढूँढ़ता फिरता कलुवा |
ठेलुवन सा नित खेल, करे यह बडका ठलुवा ||

देव आशीष

Maheshwari kaneri 

पौरा पोतक पौत्र पे, करे निछावर प्यार ।
माया बंधन ना कहें, यह है स्नेह दुलार ।
यह है स्नेह दुलार, मुबारक होवे दादी । 
देखभाल खिलवाड़, करो नित नहीं मुनादी । 
रविकर का आशीष, ख़ुशी से गूंजे चौरा । 
रहे स्वस्थ सानन्द,  होय बल बुद्धि पौरा ॥ 
पौरा =आगमन
पोतक=तीन माह का


 दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की)

आये नए जमाने में हैं गजब परिंदे -
पंखों शरीर पर रेजर तेज बांधता है -

ताके लिए नज़ारे पीछा किया  तो समझो-
पाओ नहीं जमानत जेल कौंधता है- 

मैं कहीं रहूं ....

Dr (Miss) Sharad Singh 
चाहे मथुरा जा बसे, जाय द्वारिका द्वीप |
होली के हुडदंग में, आये कृष्ण समीप |
आये कृष्ण समीप, मार पिचकारी गीला |
छुप छुप मारे टीप, रास आती है लीला |
किन्तु कालिया-नाग, आज मिलता चौराहे |
करता अनुचित मांग, खेलना होली चाहे ||

pankhuri goel  




आकांक्षा छूने चली, उचक उचक आकाश |
नखत चकाचक टिमटिमा, उड़ा रहे उपहास-

जीवन चक्र


तुषार राज रस्तोगी 

प्रश्न मोक्ष का है खड़ा, लेकर गजब तिलस्म |
कई तीन-तेरह हुवे, चले अनवरत रस्म ||

!!..शायद ,मैं फेल हो गई.. !!


सरिता भाटिया 

सुनी सनाई बात पर , मत करना विश्वास |
अंतरात्मा जो कहे, वही सत्य है ख़ास ||

9 comments:

  1. सही और सटीक कुंडलियाँ !!

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  2. बेहतरीन प्रस्‍तुति

    आभार

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  3. प्रासंगिक व्यंग्य प्रधान रचना .

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  4. अर्थपूर्ण लिनक्स से अवगत कराने और मेरी रचना को मान देने के लिए शुक्रिया :-)

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  5. घनाक्षरी

    सहमति संभोग हैं , बेशर्म बड़े लोग हैं -
    पतनोमुखी योग हैं, कानून ले आइये ।
    अठारह से घटा के, तो सोलह में पटा के
    नैतिकता को हटा के, संस्कार भुलाइये ।
    लडको की आँख फोड़, करें नहीं जोड़ तोड़
    कानून का है निचोड़, रस्ता भूल जाइये ।
    नीति सत्ताधारियों की, जान सदाचारियों की, ।
    "लाज आज नारियों की, देश में बचाइये ।

    (लड़कों ,)बढ़िया घनाक्षरी .बधाई .

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  6. सभी टिप्पणियाँ बहुत अच्छी लगीं!

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  7. मान्य वर आप की इस लेखनी को तथा इन सुंदर भावों को मेरा नमन...

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  8. आदरणीय रविकर जी प्रणाम ,

    हार्वर्ड पढ़ पढ़ मन मुआ , कारज हुवा ना कोय
    पढ़े जो मानस वतन का सोई अन्ना मोदी होय

    जय हो ! शुभ हो !

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