Sunday, 17 March 2013

घर घर में कुन्ती हुई, बच्चा आया कर्ण-




वाह वाह ताऊ क्या लात है? में श्री दिगंबर नासवा


ताऊ रामपुरिया 


रानी बन कर कर रही, ताई कब से मौज |
रखती है मुर्गा बना, तले कलेजा  रोज  |
तले कलेजा  रोज , खरी खोटी पकडाती |
सोलह से तैयार, स्वयं  डोली सजवाती |
धिक् धिक् यह सरकार, आज की नई कहानी |
अब आया कानून, बात यह बड़ी पुरानी |




 My Unveil Emotions 

पाए सत्ता कवच अब, कुंडल पाए स्वर्ण |
घर घर में कुन्ती हुई, बच्चा आया कर्ण |

बच्चा आया कर्ण , जलालत नहीं होयगी-
आया है अधिनियम, नहीं अब मातु खोयगी |

दुर्योधन का मित्र, दुशासन ख़ुशी मनाये |
हैं प्रसन्न धृतराष्ट्र, कलेजा ठंढक पाए  |


Kuldeep Sing 

 सुनती कर्ण पुकार है, अब जा के सरकार |
सोलह के सम्बन्ध से, निश्चय हो  उद्धार |

निश्चय हो  उद्धार, बिना व्याही माओं के |
होंगे कर्ण अपार, कुँवारी कन्याओं के |

अट्ठारह में ब्याह, गोद में लेकर कुन्ती |
फेरे घूमे सात, उलाहन क्यूँ कर सुनती ||


कमीने क़ानून बनाने वाले--


ZEAL 
(1)
लड़का कालेज छोड़ता, भाँप रिस्क आसन्न |
क्लास-मेट को हर समय, करना पड़े प्रसन्न |

करना पड़े प्रसन्न, धौंस हर समय दिखाती |
काला चश्मा डाल,  केस का भय दिखलाती |

है इसका क्या तोड़, रोज देती हैं हड़का |
लूंगा आँखे फोड़, आज बोल है लड़का ||
(2)
बेटा भूलो नीति को, काला चश्मा डाल । 
दुनिया के करते चलो, सारे कठिन सवाल । 

 
सारे कठिन सवाल, भोग सहमति से करना । 
पूछ उम्र हर हाल, नहीं तो करना भरना । 
संस्कार जा भूल, पडेगा नहीं चपेटा । 
मौज करो दो साल, नहीं तू बालिग बेटा ॥ 

 घनाक्षरी 
 सहमति संभोग हैं ,  बेशर्म बड़े लोग हैं -
पतनोमुखी योग हैं,  कानून ले आइये । 
अठारह से घटा के,  तो सोलह में पटा  के 
नैतिकता को हटा के, संस्कार भुलाइये । 
 लडको की आँख फोड़, करें नहीं जोड़ तोड़ 
कानून का है निचोड़,  रस्ता भूल जाइये । 
नीति सत्ताधारियों की,  जान सदाचारियों की,  । 
"लाज आज नारियों की, देश में बचाइये ।


कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता -

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-24

साहित्यकार इब्राहीम जी कुम्भ में

(१)
दुर्मिल सवैया
इबराहिम इंगन इल्म इहाँ इजहार मुहब्बत का करता ।

पयगम्बर का वह नाम लिए कुल धर्मन में इकता भरता ।

कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता ।

इनसान इमान इकंठ इतो इत कर्मन ते जल से तरता ॥
इंगन=हृदय  का भाव
इकंठ=इकठ्ठा
(२)
सुंदरी सवैया
हरिद्वार, प्रयाग, उजैन मने शुभ  नासिक कुम्भ मुहूरत आये ।

जय गंग तरंग सरस्वति माँ यमुना सरि संगम पावन भाये ।

मन पुष्प लिए इक दोन सजे, जल बीच खड़े तब धूप जलाये ।

इसलाम सनातन धर्म रँगे दुइ हाथन से जल बीच तिराए ॥


 यह ज़माना भला कब था,
पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
 बहन बेटी बिन मिनिस्टर, 
सोच में कुछ भला कब था-
ब्याह से पहले हुवे सच, 
किन्तु माँ से पला कब था |

कर्ण दुर्योधन दुशासन, 
और शकुनी मिल गए हैं-
विदुर चुप रहते विषय पर, 
भीष्म का कुछ चला कब था |


नाहक चिंता कर रहे, मातु-पिता कर्तव्य |
हक़ है हर औलाद का, मातु पिता हैं *हव्य |

मातु पिता हैं *हव्य, सहेंगे हरदम झटका |
वह तो सह-उत्पाद, मिलन के पांच मिनट का |

खोदो खुद से कूप, बरसते नहीं बलाहक |
होय छांह या धूप, करो मत चिंता नाहक ||

हवन-सामग्री-

3 comments:

  1. bahut hi sundaravm vividhtaon se yukt links sir ji

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  2. बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुतीकरण उम्दा टिप्पड़ियों की साथ,आभार आदरणीय.

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