Saturday, 16 March 2013

कीमत की-मत बात कर, मत मतलब से डाल-



Kumar Gaurav Ajeetendu 
कीमत की-मत बात कर, मत मतलब से डाल |
डाल डाल उल्लू दिखें, अपनी जात सँभाल |

अपनी जात सँभाल, वोट जस रोटी बेटी |
जाय भाड़ में देश, सियासत मटिया-मेटी |

भाषा धर्म प्रदेश, यहीं तक बाँट गनीमत |
वोट कभी मत बेंच, वोट की समझो कीमत || 



असाढ़  का कर्ज 
नीरज-नीर
बेबाकी से कर रहे, बाकी  काम  तमाम |
चालाकी से नहीं हो, करते सब कुछ राम || 

 man ka manthan. मन का मंथन।
सौतन से मिल लो जरा, जहर पिलाती आय |
युगल अधर चिपके पड़े, देह अधर में  जाय ||

मौज करो दो साल, नहीं तू बालिग बेटा-

(1)
लड़का कालेज छोड़ता, भाँप रिस्क आसन्न |
क्लास-मेट को हर समय, करना पड़े प्रसन्न |

करना पड़े प्रसन्न, धौंस हर समय दिखाती |
काला चश्मा डाल,  केस का भय दिखलाती |

है इसका क्या तोड़, रोज देती हैं हड़का |
लूंगा आँखे फोड़, आज बोल है लड़का ||
(2)
बेटा भूलो नीति को, काला चश्मा डाल । 
दुनिया के करते चलो, सारे कठिन सवाल । 

 
सारे कठिन सवाल, भोग सहमति से करना । 
पूछ उम्र हर हाल, नहीं तो करना भरना । 
संस्कार जा भूल, पडेगा नहीं चपेटा । 
मौज करो दो साल, नहीं तू बालिग बेटा ॥ 

 घनाक्षरी 
 सहमति संभोग हैं ,  बेशर्म बड़े लोग हैं -
पतनोमुखी योग हैं,  कानून ले आइये । 
अठारह से घटा के,  तो सोलह में पटा  के 
नैतिकता को हटा के, संस्कार भुलाइये । 
 लडको की आँख फोड़, करें नहीं जोड़ तोड़ 
कानून का है निचोड़,  रस्ता भूल जाइये । 
नीति सत्ताधारियों की,  जान सदाचारियों की,  । 
"लाज आज नारियों की, देश में बचाइये ।

बेटा भेजूं हाट, समय-गति गत कर काटे -

काटे गए दरख्त हैं, बूढ़ पुरनियाँ रूग्न |
बीज नए यूरोप के, उगते पादप *भुग्न | 
उगते पादप *भुग्न, महामारी फैलेगी |
हुवे अधिनियम सख्त, त्रास लडको को देगी |
मिले विकट हथियार, कलेजा रविकर फाटे |
बेटा भेजूं हाट, समय-गति गत कर काटे ||

*वक्र / टेढ़ा


माया के जंजाल की, बड़ी मुलायम काट |
लेकिन वह अखिलेश भी, करता बन्दरबांट |
करता बन्दरबांट, धकेले भर भर कुप्पा |
जहाँ खड़ी हो खाट, बैठ जाता वह चुप्पा |
यमुना कुंडा ख़ास, कुम्भ भरदम भटकाया |
खोवे होश-हवास,  खड़ी मुस्काये माया-




4 comments:

  1. वाह.... बहुत बढ़िया काव्यमयी टिप्पणियाँ!

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  2. बेहतरीन ..रचनाओं पर रचना ..जवाब नहीं है आपका ..सादर

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