जन्म दिन मुबारक
बुद्धिमान को चाहिए, इक दिन में दो बार |
तन मन से उल्लू बने, फिर देखे संसार | फिर देखे संसार, मुबारक जन्म-दिवस हो | रहे प्रफुल्लित गात, कभी नहिं तू परबस हो | नोक झोंक मनुहार, रहे तन सदा निरोगी | पाए बांटे प्यार, मास्टर बनकर योगी || |
हम देख न सके,,,
Dheerendra singh Bhadauriya
हुस्न-इश्क को भूल जा, रविकर पकड़ सलाह | सूक्ष्म-दृष्टि अतिशय विकट, अभी गजब उत्साह | अभी गजब उत्साह, कहीं ना आह निकाले | यह कंटकमय राह, पड़ो ना इनके पाले | पड़ जाए गर धीर, ध्यान में रखो रिश्क को | शुभकामना असीम, भूल जा हुश्न-इश्क को || |
स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप ।
समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी ।
कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी ।
कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा ।
रावण-बध परिणाम, मारती मन्त्र मन्थरा ।।
*व्यग्र
*आपातकाल
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कविता - श्रद्धा-सुमनहरीश प्रकाश गुप्त
गुरुवर की चिंता सही, मूक बधिर कपि सूर |
जनसंख्या बढती चली, भारत माँ मजबूर | भारत माँ मजबूर, पुकारे बापू आजा | सत्ता शासक क्रूर, बजाये सबका बाजा | तीन चिकित्सक श्रेष्ठ, बुलाये अब तो रविकर | आँख कान सह कंठ, ठीक कर देवे गुरुवर ||
आचार्य
परशुराम राय
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भ्रूण-हत्या आघात, पाय नहिं पातक पानी -
संजय-दृष्टी सजग है, जात्य-जगत जा जाग ।
अब भी गर जागे नहीं, लगे पुरुष पर दाग ।
लगे पुरुष पर दाग, पालिए सकल भवानी।
भ्रूण-हत्या आघात, पाय नहिं पातक पानी ।
निर्भय जीवन सौंप, बचाओ पावन सृष्टी ।
कहीं होय न लोप, जगाये संजय दृष्टी ।।
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भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-20
सर्ग-4
भाग-8
आश्रम में शांता
दो दिन का करके सफ़र, पहुंची कोसी तीर |
आश्रम में स्वागत हुआ, मिटी पंथ की पीर ||
अगला दिन अति व्यस्त था, अति-प्रात: उठ जाय |
आज्ञा लेकर सास की, नित्य कर्म निबटाय ||
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बढिया लिंक्स
ReplyDeleteदिन में उल्लू बने दो बार ये लाइन सबसे ज्यादा पसंद आयी
vakai. .
Deleteबहुत बहुत आभार भाई जी
ReplyDeleteदिल उल्लू उल्लू हो गया :)) !
गाँधी शास्त्री ही नहीं
Deleteकुछ उल्लू भी जन्मे हैं
आज के दिन !
गाँधी शास्त्री ही नहीं,जन्मे सुसील भाई
Deleteउल्लूक के रूप आज ,ले हमसे बधाई,,,,,,
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteडा. सुशील जोशी
ReplyDeleteउल्लूक टाईम्स
बुद्धिमान को चाहिए, इक दिन में दो बार |
तन मन से उल्लू बने, फिर देखे संसार |
फिर देखे संसार, मुबारक जन्म-दिवस हो |
रहे प्रफुल्लित गात, कभी नहिं तू परबस हो |
डा. सुशील जोशी
उल्लूक टाईम्स
बुद्धिमान को चाहिए, इक दिन में दो बार |
तन मन से उल्लू बने, फिर देखे संसार |
फिर देखे संसार, मुबारक जन्म-दिवस हो |
रहे प्रफुल्लित गात, कभी नहिं तू परबस हो |
सहमत हम भी आप से बिलकुल हैं श्रीमान ,
लिखते रहें उलूक -श्री एक दिन बनें महान .
जन्म दिन मुबारक यहाँ भी वहां भी .बहुत सुन्दर उदगार !
ram ram bhai
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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
आचार्य परशुराम राय
ReplyDeleteमन्त्र मारती मन्थरा, मारे मर्म महीप ।
स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप ।
समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी ।
कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी ।
कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा ।
रावण-बध परिणाम, मारती मन्त्र मन्थरा ।।
सारी आनुप्रासिक छटा बिखेर दी मूल पोस्ट के अनुरूप .
लिंक लिक्खाड़ पर हमारे ब्लॉग की रचनाओं को सम्मान देने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteNice post.
ReplyDeleteशुक्रिया।
बढिया लिंक्स
ReplyDeleteमुझे भी स्थान दिया आपने
बहुत बहुत आभार
पहली बार आई हूं लिंक-लिक्खाड़ पर....बड़ा मजा आया पढ़कर...मेरी कविता को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद....
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