Thursday, 8 November 2012

लीडर बनता क्लीन, चिटों का चिरकुट चच्चा-452


 

निर्दोष दीक्षित 
अय्यासी में हैं रमे, रोम रोम में काम ।
बनी सियासी सोच अब, बने बिगड़ते नाम ।
बने बिगड़ते नाम, मातृ-भू  देती मेवा ।
मँझा माफिया रोज, भूमि का करे कलेवा ।
बेंच कोयला खनिक, बनिक बालू की राशी ।
काशी में क्यूँ मरे, स्वार्गिक जब अय्यासी  ।।

अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)

भली बहस का अंत कर.........

 My Photo









उपसंहार बता रहे,खीचे फिर फिर चित्र
बातों में आना नही,समझे रविकर मित्र

समझे रविकर मित्र,अरुण जी चारा डाले
लालच में खा लिया,फिर पड़ जाये न पाले

देता धीर सलाह,संभलना इस वार में
फस जाये ये अरुण,अपने उपसंहार में,,,,,
शब्द संयोजन नपे तुले, दिए आंट प्रेम डोर।
एक छोर ननदी धरे, धरे भाभी दूसरो छोर।।

.......इतना बढ़िया सजाते हैं शब्द मोतियों से
पंक्तियाँ निगम भैया......लाजवाब! शानदार 
  1. सामाजिक विन्यास में, इंसा का हर रूप |
    हर क्षण बदला जा रहा,कभु छाँव कभू धूप

    रविकर सरल सुभाव है,चंचल मन कह जाय |
    कह दिया सो कह दिया, करें नहीं परवाय ||

    नदिया तरिया तैरती, रविकर कवि की नाव |
    कुंडली बन है बह रहि, उमडत घुमडत भाव ||

    कभी ह्रदय है रो पड़े, कभी करे परिहास |
    कभी तेज चल जात है, गले पड़े है फांस |

    रिश्तों को है जोड़के, कर विनती में तात |
    सूरज सम बन जात है, अपने रविकर भ्रात



  1. भाई जी दिखला रहे, परंपरा से प्रीति |
    खलु भी नायक बन रहे, बड़ी पुरानी रीति
    बड़ी पुरानी रीति, नीति सम्मत हैं बातें |
    बता रहे तहजीब, सुधरते रिश्ते नाते |
    चौथा वाद-विवाद, मजे ले जग मुस्काई |
    रहे हमेशा याद, एक हैं भाभी भाई ||

नकारात्मक नकारे, रखते मन में धीर |
सकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
कभी नहीं हो पीर, जलधि का मंथन करके |
जलता नहीं शरीर, मिले घट अमृत भरके |
करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
हो सबका कल्याण, नहीं सिद्धांत नकारा ||





  1. खेला चौसर कबड्डी, क्रिकेट वालीबाल ।
    गोइंयाँ कुल कमजोर ले, चलता धांसू चाल
    चलता धांसू चाल, जीतता कहीं अगरचे ।
    खुश अंतर का हाल, करे सब कोई चरचे ।
    शंकर का आभार, पिए सब जहर अकेला
    उमा करें कल्याण, रहेगा चालू खेला

Bamulahija dot Com  

चिरकुट चच्चा चाहते, चमकाना व्यवसाय ।
क्लीन-चिटों की फैक्टरी, देते घरे लगाय ।
देते घरे लगाय, बेंचते सबको सस्ती ।
चित, पट देते लाभ, मार्केट बड़की बस्ती ।
ख़तम चोर माफिया, हुआ  व्यापारी सच्चा ।
लीडर बनता क्लीन, चिटों का चिरकुट चच्चा ।।


कश्तियों का कातिल

"अनंत" अरुन शर्मा 
 दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )
कातिल क्या तिल तिल मरे, तमतमाय तुल जाय ।
हँस हठात हत्या  करे, रहे ऐंठ बल खाय ।
रहे ऐंठ बल खाय, नहीं अफ़सोस तनिक है ।
कहीं अगर पकड़ाय, डाक्टर लिखता सिक है ।
मिले जमानत ठीक, नहीं तो अन्दर हिल मिल ।
खा विरयानी मटन, मौज में पूरा कातिल ।।


 Amrita Tanmay

ताज़ी भाजी सी चमक, चढ़ा चटक सा रंग |
पटल पोपले क्यूँ हुवे, करे पीलिमा दंग |
करे पीलिमा दंग, सफेदी माँ-मूली की |
नाले रही नहाय, ठण्ड से पा-लक छीकी |
केमिकल लोचा देख, होय ना दादी राजी |
कविता-लेख कुँवार, करे क्या हाय पिताजी ??






4 comments:

  1. रविकर सर क्या कहना एक से बढ़कर एक रचनाएं, पढ़कर तबियत खुश हो गई।

    ReplyDelete
  2. कुछेक लिंक पर गया, लिक्खाड़ सभी अच्छे लगे।

    ReplyDelete
  3. नकारात्मक का पक्ष ले,सकारात्मक बात
    ऐक दिन पछताओगे,लागे मन में घात,

    लागे मन में घात,समझलो दुनिया दारी
    खीचेगें जब कान ,समझ आ जाये सारी

    बातें जितनी करो,करो तुम सकारात्मक
    पासां उल्टा पड़े ,समय हो नकारात्मक,,,,,,,

    ReplyDelete
  4. nice collection of links
    like the cartoon on lokpal

    ReplyDelete