जमा जूतियाँ सैकड़ों, टूटी कुर्सी मेज ।
माइक गाली शोर भी, रखते रहे सहेज ।
रखते रहे सहेज, कालिमा नोट चुटकुले ।
कितनी लानत भेज, दिखाते खुद को हलके ।
चेले गुरु घंटाल, सरिस जो चली गोलियां ।
नंगे भगे नवाब, पड़ी रह गई जूतियाँ ।।
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एक और पार्टी का गठन
haresh Kumar
दावा कंगरसिया करे, साथ आदमी आम ।
कैसे रखते केजरी, पार्टी का यह नाम ।
पार्टी का यह नाम, हमारा हित ही साधे।
करें परस्पर रार, राष्ट्रवादी भी आधे ।
सारे सेक्युलर साथ, मुलायम माया पावा ।
साथ आदमी आम, गलत केजरि का दावा ।।
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फ़लस्तीन बच्चों के प्रति .......
यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur)
दोनों पक्षों को ख्याल करना पड़ेगा-
*धर्मान्धता *पाखण्ड से बचाना जरुरी है यह बचपन - माँ बाप और दुश्मन में कौन हितैषी हो सकता है इनका ?? कटती मानव नाक है, दर्दनाक यह दृश्य | घटे धर्म की साख है, धर्म लगे अस्पृश्य | धर्म लगे अस्पृश्य, सुनों रे *धर्मालीकी | *धर्मध्वजी जा चेत, कर्म नहिं करो अलीकी | बचपन मन अनजान, बमों से जान सटकती | करो उपाय सटीक, नाक मानव की कटती || |
इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद और उसका मूल कारण ( भाग-2)
आशुतोष की कलम
मसला युद्धों से भरा, लंबा यह संघर्ष । लड़ते भिड़ते हो गए, इन्हें हजारों वर्ष । इन्हें हजारों वर्ष, पीढियां खपती जाती । खप्पर भरते जाँय, कालिका भी मुस्काती। लगे लाश अम्बार, धर्म में नफरत जीती । नहीं भूलते पक्ष, पुरानी बातें बीती । |
"नानकमत्ता साहिब का दिवाली मेला” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
मेले में सबसे अधिक, बिके चाट मिष्ठान ।
गुरूद्वारे की शरण में, करें सभी उत्थान ।
करें सभी उत्थान, मौज मस्ती का खेला ।
घंटे बीते चार, छूट सब जाय झमेला ।
ठोकर लग ना जाय, नहीं पब्लिक को ठेलें ।
घुटने में है चोट, घूमते क्यूँकर मेले ??
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सेहतनामा
Virendra Kumar Sharma
*नारिकेर जल दुग्ध में, कॉपर है भरपूर |
भरा विटामिन ए यहाँ, दूर खड़ा मत घूर | दूर खड़ा मत घूर , करे जो नियमित सेवन | चमड़ी हो नहिं रुक्ष, लचीलापन भी एवन | है प्रस्तुति यह मस्त, डंक गर मारे कीड़ा | सिरका रगडो वहां, हरे झट पट यह पीड़ा |||
*नारियल
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भानमती का लोक-जाल ..प्रतिभा सक्सेना
लालित्यम्
शादी के माहौल को, करा गया यह याद । लेखन को सादर नमन, भानमती को दाद । भानुमती को दाद, जमा इक छत के नीचे । हफ़्तों शिष्टाचार, कहीं भी पड़े गलीचे । नोंक-झोंक अंदाज, सजी दुल्हन सी दादी । पहले की क्या बात, रही मनभावन शादी ।। |
नारी के अकेलेपन से पुरुष का अकेलापन ज्यादा घातक
शालिनी कौशिक
बिन नारी के घर लगे, भूतों का संभाग । भूतों का संभाग, नारि से भूत भागते । संस्कार आदर्श, सत्य कर्तव्य जागते । नारी अगर अकेल, कभी नहिं होय सवेरा । दुनिया बड़ी अजीब, लफंगे डालें डेरा । |
ReplyDeleteजमा जूतियाँ सैकड़ों, टूटी कुर्सी मेज ।
माइक गाली शोर भी, रखते रहे सहेज ।
रखते रहे सहेज, कालिमा नोट चुटकुले ।
कितनी लानत भेज, दिखाते खुद को हलके ।
चेले गुरु घंटाल, सरिस जो चली गोलियां ।
नंगे भगे नवाब, पड़ी रह गई जूतियाँ ।।
जहां बनाते थे नीतियाँ वहीँ कूदते हैं अब कूप में संसदीय कूप में .आम आदमी का कांग्रेसी प्रपंच पर आपकी टिपण्णी बड़ी सामयिक और सारगर्भित है .
दावा कंगरसिया करे, साथ आदमी आम ।
कैसे रखते केजरी, पार्टी का यह नाम ।
पार्टी का यह नाम, हमारा हित ही साधे।
करें परस्पर रार, राष्ट्रवादी भी आधे ।
सारे सेक्युलर साथ, मुलायम माया पावा ।
साथ आदमी आम, गलत केजरि का दावा ।।
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
वाह...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!