शुक्रवार, 16 नवंबर, 2012 को 18:44 IST तक के समाचार
हिन्दू पाकिस्तान में, झेल रहे हैं दंश ।
यहाँ मौज में जी रहे, उन के मामा वंश ।
उन के मामा वंश, बना शरणार्थी चाहे ।
यह भारत सरकार, असंभव टैक्स उगाहे ।
दो अनुमति अविलम्ब, शीघ्र निपटा यह बिन्दू ।
माँ की पावन गोद, छोड़ क्यूँ जाए हिन्दू ।।
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रोता रातों में रहा, हरदम पाकिस्तान |
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टीवी न्यूज : निकालते रहो टमाटर से हनुमान !
महेन्द्र श्रीवास्तव
अन्धा व्यवसायीकरण, हंगामे का दौर |
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आज कीबोर्ड के खटरागी, शब्दों के खिलाड़ी अविनाश वाचस्पति फेसबुक के मुन्नाभाई की 28वीं वैवाहिक वर्षगांठ हैं
संतोष त्रिवेदी
नुक्कड़ -
रागी खटरागी बड़े, करें सदा ही व्यंग । भैया-भाभी का रहे, सदा अमित यह संग । सदा अमित यह संग, स्वस्थ मन रहें निरोगी । हास्य-कटाक्ष सह व्यंग, स्वयं से हरदम होगी । शुभकामना असीम, प्रीति खट-ख़ट से लागी । करते टाइप रहो, प्रेम से रागी-खटरागी ।। |
अवसान के बाद का मूल्यांकन !
संतोष त्रिवेदी
कुछ कहना नहीं चाहता था इस विषय पर-
पर मित्र के लेख ने मनोभावों को प्रकट करने का मौका दिया -आभार वैसवारी || जहाँ मराठी अस्मिता, मारी हिंदु हजार | हिंदु-हृदय सम्राट पर, कौन करे एतबार | कौन करे एतबार, कई उत्तर के वासी | होते वहाँ शिकार, होय हमला वध फांसी | दोहन भय का दिखा, नहीं है कोई शंका | कृष्णा उद्धव राज, खौफ का बाजे डंका || |
ख्यालों की भीड़ में !!!
सदा
समझौते की जिंदगी, अस्त व्यस्त शत-ख्याल |
इक अलबेला ख्याल ले, चलती आज सँभाल || |
हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग: जिन पर हिन्दी ब्लॉग जगत की गुणवत्ता टिकी है ?लेखक मिलते गद्य में, वे हक़ पहला पाँय | पद्य ब्लॉग की विवशता, मन ही मन अकुलांय | मन ही मन अकुलांय, नजर अंदाज करे क्यों | मन में था यह प्रश्न, मगर हम यहाँ करें क्यों | करते अपना काम, आकलन है इनका हक़ | करें पूर्ण साहित्य, कवि आलोचक लेखक || |
क्योंकि तू सच बोलता है.(पुरुषोत्तम पाण्डेय)
जाले
चाक चला जिभ्या चली, हो मुखिया की मौत | बेटा मुखिया बनेगा, पोता फिर पर पौत | पोता फिर पर पौत, रीति है बनी यहाँ की | तू बैठा मत सोच, लगाता बुद्धि कहाँ की | चले उन्हीं का जोर, हाथ में लाठी जिनके | सत्य तुम्हारा व्यर्थ, दिया रख अपने गिनके || |
ज़िंदगी के रंग ....
Pallavi saxena
बेटे की चाहत रखें, ऐ नादाँ इंसान ।
अधिक जरुरी है कहीं, स्वस्थ रहे संतान ।
स्वस्थ रहे संतान, छोड़ यह अंतर करना ।
दे बेटी को मान, तुझे धिक्कारूं वरना ।
बेटा बेटी भेद, घूमता कहाँ लपेटे ।
स्वस्थ विवेकी सभ्य , चाहिए बेटी बेटे ।।
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कराती है दिवाली यह पुरानी याद को ताजा |
खिला घर बार रोशी का, पटाखों का सुना बाजा |
रँगोली है उजाला है जले हैं दीप सब छाजा | नहीं आये जिन्हें आना, घनी सी याद तू आजा || |
जय-जय रविकर ...!
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ReplyDeleteदो अनुमति अविलम्ब, शीघ्र निपटा यह बिन्दू ।
माँ की पावन गोद, छोड़ क्यूँ जाए हिन्दू ।।
आपकी सदा सहयता इन पंक्तियों में देखते ही बनती है .
शुक्रिया
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही अच्छे लिंक्स एवं प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार आपका
सादर
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 20/11/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteवाह सर वाह जय हो आपकी हर बार कुछ नया, नया - नया एकदम नया हरदम नया सबकुछ नया।
ReplyDeletenice links..thanks..
ReplyDeleteरविकर जी बढ़िया लिंक...
ReplyDeleteबढियां लिंक्स ।
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