देह देहरी देहरा, दो, दो दिया जलाय -
 
देह देहरी देहरा,  दो, दो दिया जलाय । 
कर उजेर मन गर्भ-गृह, कुल अघ-तम दहकाय ।   
कुल अघ तम दहकाय , दीप दस  घूर नरदहा । 
गली द्वार पिछवाड़ , खेत खलिहान लहलहा । 
देवि लक्षि आगमन, विराजो सदा हे हरी । 
सुख सामृद्ध सौहार्द, बसे कुल देह देहरी ।।   
 देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय  
घूर = कूड़ा  
लक्षि  = लक्ष्मी   
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मत्तगयन्द सवैया   
दीवाली में जुआ   
मीत समीप दिखाय रहे कुछ दूर खड़े समझावत हैं । 
बूझ सकूँ नहिं सैन सखे  तब हाथ गहे लइ जावत हैं । 
जाग रहे कुल रात सबै, हठ चौसर में फंसवावत  हैं । 
हार गया घरबार सभी, फिर भी शठ मीत कहावत हैं ।। 
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पहली प्रस्तुति   
   डेंगू-डेंगा सम जमा, तरह तरह के कीट | 
    खूब पटाखे दागिए, मार विषाणु घसीट | 
    मार विषाणु घसीट, एक दिन का यह उपक्रम | 
    मना एकश: पर्व, दिखा दे दुर्दम दम-ख़म | 
    लौ में लोलुप-लोप, धुँआ कल्याण करेगा | 
    सह बारूदी गंध, मिटा दे डेंगू-डेंगा || 
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देह देहरी देहरा, दो, दो दिया जलाय ।
ReplyDeleteकर उजेर मन गर्भ-गृह, कुल अघ-तम दहकाय ।
कुल अघ तम दहकाय , दीप दस घूर नरदहा ।
गली द्वार पिछवाड़ , खेत खलिहान लहलहा ।
देवि लक्षि आगमन, विराजो सदा हे हरी ।
सुख सामृद्ध सौहार्द, बसे कुल देह देहरी ।।
देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय
घूर = कूड़ा
लक्षि = लक्ष्मी
संस्कृति को सूक्ष्म तमस्तर पर समेटे है यह मनोहर रचना दिवाली मुबारक .