"भली बहस का अंत कर,रविकर कह कर जोर"
भूल स्वयं को मंच पर , अभिनय करते मात्र |
अभिनय करते मात्र,सत्य के संग हो नायक,
वहीं बुराई का प्रतीक , बनता खलनायक |
देने को संदेश , कहानी जाय
बनाई
अभिनेता की हार - जीत नहिं होती भाई ||
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रविकर की धज्जियाँ उडाती आ. अरुण निगम की पोस्ट
भाई जी दिखला रहे, परंपरा से प्रीति |
खलु भी नायक बन रहे, बड़ी पुरानी रीति | बड़ी पुरानी रीति, नीति सम्मत हैं बातें | बता रहे तहजीब, सुधरते रिश्ते नाते | चौथा वाद-विवाद, मजे ले जग मुस्काई | रहे हमेशा याद, एक हैं भाभी भाई | ------ रविकर |
ले खा एक स्टेटमेंट अखबार में और दे के आसुशीलउल्लूक टाईम्स छाये उल्लू हर जगह, पा बन्दर का साथ | राग यहाँ फैला रहे, डाल हाथ में हाथ | डाल हाथ में हाथ, दिवाली आने वाली | आये काली रात, खाय जब उल्लू काली | तांत्रिक लेते खोज, अगर उल्लू छुप जाये | देखो बन्दर मित्र, कहीं ना तुम्हें छकाये || |
लिव इन रिलेशन की हकीकत ...एवं परिणति ...डा श्याम गुप्त
डा. श्याम गुप्त
मानव पुरखों से रहा, कहीं आज अगुवाय |
मन मेदा मजबूत मनु, लेता जहर पचाय | लेता जहर पचाय, खाय ले मार गालियाँ | कर कुकर्म मुसकाय, किया था क़त्ल हालिया | घर बलात घुस जाय, हुआ बलशाली दानव | अपसंस्कृति व्यवहार, आज मानव ना मानव || |
What makes a halo around the sun or moon?
Virendra Kumar Sharma
चार दिनों से झेलता, झारखण्ड बरसात | नीलम का यह असर है, चलता झंझावात | चलता झंझावात, उपग्रह है प्राकृतिक | दर्पण सा अवलोक, गगन से घटना हर इक | हुवे घाघ अति श्रेष्ठ, पढ़ें संकेत अनोखे | करे आकलन शुद्ध, मिलें फल हरदम चोखे || |
Amrita Tanmay
ताज़ी भाजी सी चमक, चढ़ा चटक सा रंग |
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मौत के बाद है असल जीवनश्यामल सुमनमनोरमा
ईंट रेत सीमेंट को, मिला पसीना खून ।
चुन चुन कर चुनवा दिया, हो मजबूती दून ।
हो मजबूती दून, बैठ पूजा पर माता ।
पिता पढ़ें अखबार, उन्हें दालान सुहाता ।
पत्नी ड्राइंग रूम , सीढ़ियाँ चढ़ते बच्चे ।
गृह प्रवेश की धूम, इरादे अच्छे सच्चे ।।
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माता देखी पुत्र की, जब से प्रगति रिपोट ।
मन में नित चिन्तन करे, सुनी गडकरी खोट
सुनी गडकरी खोट, आई-क्यु बहुतै अच्छा ।
दाउद ना बन जाय, करो हे ईश्वर रक्षा ।
बनना इसे नरेंद्र, उसे बाबा समझाता ।
संस्कार शुभ-श्रेष्ठ, सदा दे सदगुण माता ।
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मुझे इश्क की बिमारी लगी"अनंत" अरुन शर्मादास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की ) दिन दूभर और रात भारी लगी है । 2 2 2 2 1 2 1 22 1 22 (अरुण शर्मा ) महबूबा की अजब तयारी लगी है । जब से देखा उसे हमारी लगी है ।। करने आता तभी मुलाक़ात साला उसकी बोली मुझे कटारी लगी है ।। |
Untitled
Arun Yadav
माता की महिमा अमिट , डाकू लीडर चोर । भक्त नशेडी उद्यमी, कवि पीड़ित कमजोर । कवि पीड़ित कमजोर, होय बलवान अभागा | नहिं कोयल सी माय, यहाँ पर अच्छा कागा | अपने बच्चे मान, पालती सबको काकी । रविकर जै जै बोल, जोर से जै माता की || |
अब्धि-हार
प्रतुल वशिष्ठ
खींचा-खींची कर रहे, इक दूजे की चीज ।
सोम सँभाले स्वयं सब, भूमि रही है खीज ।
भूमि रही है खीज, सभी को रखे पकड़ के ।
पर वारिधि सुत वारि, लफंगा बढ़ा अकड़ के
चाह चाँदनी चूम, हरकतें बेहद नीची ।
रत्नाकर आवेश, रोज हो खींचा खींची ।।
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उल्लू का स्टेटमेंट छाप दिये देते ही !
ReplyDeleteआभार !
उपसंहार बता रहे,खीचे फिर फिर चित्र
ReplyDeleteबातों में आना नही,समझे रविकर मित्र
समझे रविकर मित्र,अरुण जी चारा डाले
लालच में खा लिया,फिर पड़ जाये न पाले
देता धीर सलाह,संभलना इस वार में
फस जाये ये अरुण,अपने उपसंहार में,,,,,
नकारात्मक नकारते, रखते मन में धीर |
Deleteसकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
कभी नहीं हो पीर, जलधि का मंथन करके |
जलता नहीं शरीर, मिले घट अमृत भरके |
करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
हो सबका कल्याण, नहीं सिद्धांत नकारा ||
ReplyDeleteमाता देखी पुत्र की, जब से प्रगति रिपोट ।
मन में नित चिन्तन करे, सुनी गडकरी खोट
सुनी गडकरी खोट, आई-क्यु बहुतै अच्छा ।
दाउद ना बन जाय, करो हे ईश्वर रक्षा ।
बनना इसे नरेंद्र, उसे बाबा समझाता ।
संस्कार शुभ-श्रेष्ठ, सदा दे सदगुण माता ।
भले लिंक लिख्खाड है भली आपकी बाण ,
किन्तु टिप्पणियाँ आपकी सदा हमारी शान ,
बचो !भाई अरुण निगम से
दोहे से दोहे मिले, दोहों की आ गई बाढ़।
ReplyDeleteशब्दों की बारिश हुई, नहिं सावन नहीं आषाढ़।।
रविकर सर बेहतरीन प्रस्तुति....
वाह ... बेहतरीन
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