Wednesday, 21 November 2012

झूलें फांसी शेष जो, क्यूँ है दिल्ली दूर ??



बुरे काम का बुरा नतीजा |
चच्चा बाकी, चला भतीजा ||
गुरु-घंटालों मौज हो चुकी-
जल्दी ही तेरा भी तीजा ||
गाल बजाया चार साल तक -
आज खून से तख्ता भीजा ||
लगा एक का भोग अकेला-
महाकाल हाथों को मींजा ||
चौसठ लोगों का शठ खूनी -
रविकर ठंडा आज कलेजा ||

हे कसाब !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
शुरू कहानी जब हुई, करो फटाफट पूर ।
झूलें फांसी शेष जो, क्यूँ है दिल्ली दूर ??
क्यूँ है दिल्ली दूर, कड़े सन्देश जरूरी ।
एक एक निपटाय, प्रक्रिया कर ले पूरी 
कुचल सकल आतंक, बचें नहिं पाकिस्तानी ।
सुदृढ़ इच्छा-शक्ति, हुई अब शुरू कहानी ।।


 शुक्रवार, 16 नवंबर, 2012 को 18:44 IST तक के समाचार
खिम्मी भील
खिम्मी भील और उनके साथ आये अन्य हिंदू किसी कीमत पार पाकिस्तान वापस जाने के लिए तैयार नहीं
खिम्मी भील ने तीन महीने पहले पाकिस्तान से आते वक़्त वचन दिया था कि वो तीर्थ यात्रा पूरी कर के वापस लौटेंगी लेकिन अब वह भारत में ही रहेगी.
राजस्थान की सरकार ने पाकिस्तान से आए 285 पाकिस्तानी हिंदुओं को लंबी अवधि का वीजा देने की सिफ़ारिश की है. अगर उन्हें वीजा मिल गया तो ये हिंदू बेरोक-टोक सात सालों तक भारत में रह सकते हैं और उसके बाद नागरिकता के लिए आवेदन दे सकते हैं.
हिन्दू पाकिस्तान में, झेल रहे हैं दंश ।
यहाँ मौज में जी रहे, उन के मामा वंश ।
उन के मामा वंश, बना शरणार्थी चाहे ।
यह भारत सरकार, असंभव टैक्स उगाहे ।
दो अनुमति अविलम्ब, शीघ्र निपटा यह बिन्दू ।
माँ की पावन गोद, छोड़ क्यूँ जाए हिन्दू ।।




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सेवा जय जय भारती, है प्रयास शुभ दिव्य ।
ऐसे ही पूरे करें, सब अपने कर्तव्य ।
सब अपने कर्तव्य, बधाई युगल डाक्टर ।

कार्य सिद्ध का मन्त्र,  लिया दायित्व स्वयं पर ।
साहस संयम धैर्य, मिले शिक्षा का मेवा ।
देशभक्ति भरपूर, यही मानवता सेवा ।।

 जब तक दुनिया है सखे, तब तक पत्थर राज |
पत्थर  से  टकराय  के,  लौटे   हर  आवाज  ||
लौटे   हर  आवाज,  लिखाये  किस्मत  लोढ़े,
कर्मों पर विश्वास, करे  क्या  किन्तु  निगोड़े ?
कोई  नहीं  हबीब,  मिला जो उसको अबतक,
जिए  पत्थरों  बीच, रहेगा जीवन जब तक ||

प्रतिभा सक्सेना 
पैरों पर होना खड़े, सीखो सखी जरुर ।
 आये जब आपात तो,  होना मत मजबूर ।
 होना मत मजबूर, सिसकियाँ नहीं सहारा ।
कन्धा क्यूँकर खोज, सँभालो जीवन-धारा ।
समय हुआ विपरीत, भरोसा क्यूँ गैरों पर ?
 खुद से लिखिए जीत,  खड़े अपने पैरों पर ।।

कुर(यथार्थवादी त्रिगुणामुत्मक मुक्तक काव्य)(छ)चोरों का संसार l(२)चोरी की दुनियाँ

Devdutta Prasoon 
चोर चोर में फर्क है, हट के थे वे चोर ।
उत उनका दारिद्र्य था, इत हैं जमा करोर ।
इत हैं जमा करोर, दौर नव चोरों का है ।
हरते नेता धनिक, माल जो औरों का है ।
जर जमीन लें हड़प, दबा दुष्कर्म शोर में ।
पंचायत है बड़ी, फर्क नहिं चोर चोर में ।।


6 comments:

  1. आपकी काव्यमयी टिप्पणियाँ लिखने की ऊर्जा प्रदान करती हैं!

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  2. आपके सीघ्र कवित्व की तो दाद देनी होगी । अपने व्लॉग पर तो उसकी छटा बिखेरते ही हैं आप की पोस्ट चर्चा भी काव्.मय और लुभावनी होती है ।

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  3. हे कवि महोदय,

    कविता-सृजन और उस पर काव्य चर्चा किसी भी घटना के होने की गवाही है।
    चाहे वह हुई हो अथवा न हुई हो। इसलिए आज के माहौल में ज़रा सावधान ....
    महामहिम पालतू [POLTU] महाराज का यह दूसरा महत्वपूर्ण काम है : 'दया याचिका खारिज़ करना'
    — जिसकी इतने दिनों से सेवा हो रही हो ...
    — जिसको मच्छरी दंश से हुए ज्वर से बचाने के भरसक प्रयास हुए हों ...
    — जिसकी मौत के कोई प्रमाणित साक्ष्य न हों ...
    "166 भारतीयों के हत्यारे की मृत्यु के बाद दया याचिका खारिज होती है और फिर 10 मिनट के अन्दर ही फाँसी भी हो जाती है। इतनी तुरत-फुरत सरकारी क्रिया (एक्शन) तो एक रिकोर्ड हुई ना! '' सोचिये ज़रा ...
    जितने भी लोग इस गोपनीय कार्य को अंजाम देने में लगे रहे उनमें कोई भी विश्वसनीय है क्या? जो एक झूठी बीमारी को छिपाने में पूरा तंत्र लगा देते हैं उनके लिए मच्छरी मौत को छिपाना बहुत सहज है। जिस कार्य को खुले आम किया जाना चाहिए था वह आखिर चोरी-छिपकर अंजाम देने की क्या जरूरत थी भला? सोचिये ज़रा ...
    जिस हत्यारे को हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा सुनाकर चिंतित नहीं थे देश का माहौल बिगड़ने का अंदेशा केवल दूरदर्शी पार्टी (?) को ही था।
    अब जब वे जब एक मच्छरी मौत का क्रेडिट लेते हैं तो अचरज होता है।
    मुझे तो सरकार में चारों ही तरफ धोखा और फरेब करने वाले नज़र आते हैं।

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    1. edit :
      — जिसकी मौत* के कोई प्रमाणित साक्ष्य न हों ...

      @ मौत = फाँसी वाली मौत

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  4. बढिया,
    अच्छे लिंक्स
    मुझे स्थान देने का शुक्रिया

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  5. aapki sakaratmakata urja pradan karati hai ..

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