Friday, 30 November 2012

दो डिग्री की वृद्धि, समूची धरा डुबाये-


जलवायु परिवर्तन की आहट देख सके तो देख

Virendra Kumar Sharma 
 तापमान बढ़ता चला, सूखा आंधी बाढ़ |
बर्फ पिघलती जा रही, बढ़ती जलधि दहाढ़ |
बढ़ती जलधि दहाड़, सहे दोहा बेचैनी |
हाउस-ग्रीन इफेक्ट, राखिये नजरें पैनी |
दो डिग्री की वृद्धि, समूची धरा डुबाये |
अब औद्योगिक क्रान्ति, मनुज का जीवन खाए ||


बालिगों के लिए 

लक्षण शुभ समझो त्रिलघु, गर्दन जंघा लिंग ।
कहें चिकित्सक पुरा-अद्य, भृंग विराजे सृंग ।।

भोथर भाला भूल जा, पैना शर ही  *पन्य ।
यह लघुत्व *साधन सही, पौरुषता *पर्यन्य । 
पन्य=प्रशंसा करने योग्य
पर्यन्य = बादल की गर्जना

भारतीयों का-----सबसे छोटा

Arunesh c dave 
 तीर नुकीले तीर जब, नाविक नहीं अधीर | 
फजीहतें-थुक्का करे, हो तुक्का जब तीर |
 


हो तुक्का जब तीर, परखिये  हाथी देशी|
अफ्रीकन से तेज, रौंदते खेती वेशी  |


छोड़ गधे की बात, बन्द  बेतुकी दलीलें |
पान सुपारी चाप, साधिये तीर नुकीले ||
नाविक = घाव करें गंभीर,  की तरफ इशारा है -
तीर=पास, वाण
चाप=धनुष
सुपारी= - - - -
गधे= - - -  -

प्रतिभा सक्सेना  
राहें चुन विध्वंस की, मस्त आसुरी शक्ति ।
धर्म रूप अंकुश कहाँ, जो कर सके विरक्ति ।
 जो कर सके विरक्ति, चाटुकारों की टोली ।
इर्द-गिर्द थे जमा, एक से थे हमजोली ।
तोड़ केंद्र बेजोड़, दिया इतिहासिक आहें ।
चलिए रखें समेट, आज तक पड़ी कराहें ।।

 समयचक्र 

रोजी लगी लताड़ने, कर सौन्दर्य बयान ।
कंटक को खल ही गई, बोला बात सयान ।
बोला बात सयान, तुम्हारी रक्षा करता ।
माना सुन्दर रूप, सकल जग तुम पर मरता ।
किन्तु भरे हैं दुष्ट, विकल लोलुप मनमौजी ।
हमीं भगाएं दूर, तभी बच पाती रोजी ।।

आधा तीतर आधा बटेर

Asha Saxena 

पहले था तीतर-मना, दौड़ा-भागा ढेर |
बड़ी बटोरी डिग्रियां, बनता किन्तु बटेर |
बनता किन्तु बटेर, लड़ाकू मुर्गा बेहतर |
दंगल में उस्ताद, भिडाए सम्मुख रविकर |
चतुर चलाये चोंच, मार नहले पे दहले |
करे नहीं संकोच, गालियाँ बकता पहले ||

 

बरसता सावन

Roshi  
कुदरत कसक कुदाँव की, कजरी कहाँ सुनाय |
गर्जन वर्षण भीगना, बदले आज सुभाय  |
बदले आज सुभाव, व्यस्तता बंद कोठरी |
काम काम हर याम, चंचला हुई भोथरी |
सत्य-भाव अवसान, झूठ की रविकर फितरत |
बनावटी हर चीज, मिलावट झेले कुदरत ||

जखम - छुपाना पड़ेगा

"अनंत" अरुन शर्मा  
पाना अब मुश्किल हुआ, खोना है आसान ।
बड़े दानदाता जमे, मन में ऊंची ठान ।
मन में ऊंची ठान, गिराकर पलक उठाऊं ।
गिरे ज़मीं पर लोग, गिरा पर गाँठ लगाऊं ।
मुश्किल जीना होय, कठिन हो जख्म छुपाना ।
गम-सागर का नमक, छिड़क के खुब तड़पाना ।।
 

8 comments:

  1. बेहतरीन लिंक्‍स का संयोजन किया है आपने
    आभार सहित

    सादर

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन टिप्पणियों संग अच्छे लिंक्स,,,,बधाई रविकर जी,,,

    ReplyDelete
  3. रविकर सर मान गए आपको गुरु सुन्दर-2 दोहे रचे हैं मजा आ गया वाह

    ReplyDelete
  4. लघु ही सुन्दर है शक्तिवान है .डिजिटल के दौर में साइज़ जितना छोटा उतना सार्थक और उठाऊ साबित होता है .वात्सायन ने अश्व पुरुष को उत्तम पुरुष बतलाया है ,छोटे लाल छोटा चार इंची ,स्पर्म

    सुगन्धित काया युवतियों सी कोमल स्पर्श्य ,.छाती पे बाल का नामो -निशाँ नहीं .यही अश्व पुरुष के लक्षण हैं .अलबत्ता वृषभ ,और बुल भी हैं .

    छोटेलाल का आकार पुरुषों की हीन भावना है जानकारी के अभाव में .महिलायें भी अब पीन-स्तनी कहाँ हैं ?स्तानाकार उनकी हीन ग्रन्थि है .प्रेम निराकार है .आकार का अतिक्रमण करता है .महिलाओं

    में "मृगी" "बड़वा" से श्रेष्ठ बतलाई है वात्सायन ने .मृगी की योनी (वेजिनल ट्यूब चार इंची है )बड़वा तो फिर बड़वा ही है ."बुल" के लिए बनी है .

    वैजीनल ट्यूब बोले तो जांघ के बीच की दराज़ .

    बढ़िया सेतु ,प्रस्तुती रविकर करें कमाल ,

    एक से एक धमाल .

    गर्म दल और नर्म दल का अंतर समझाया है इस अंक में आपने .शुक्रिया मनोज भाई कहाँ हैं इन दिनों ?

    यथा नाम तथा गुण अ -शोक ,शोक- हीना बड़े ज़िंदा दिल इंसान हैं .

    न्युनोक्ति है इस पोस्ट में इरादे साफ़ नहीं हैं ,नहीं हुए हैं .कहना क्या चाहते हैं आप ?

    रचना बेहतरीन रचना .

    वाड्रा क़ानून अलग है ,गडकरी क़ानून अ -लग ,शाहीन क़ानून अलग जैसा मुंह वैसा क़ानून .

    कांगरेस की डूबती, लुटिया बारम्बार ।
    हार हार हुल्लड़ हटकु, हरदम हाहाकार ।
    हरदम हाहाकार, मौत का कह सौदागर ।
    बढ़ा गई सोनिया, विगत मोदी का आदर ।
    तरह तरह के चित्र, बिगाड़ें इमेज देश की ।
    शत्रु समझ गुजरात, चाल अघ कांगरेस की ।।

    बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब .

    मोदी का क्या बिगड़े मोदी हैं कुलश्रेष्ठ ,..........पूरी करें दिनेश कुं

    बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब .

    मोदी का क्या बिगड़े मोदी हैं कुलश्रेष्ठ ,..........

    सचमुच न बोलें ,मुख न खोलें तो दोनों सोनिया और राहुल बहुत बड़े विचारक है दोनों में से एक तो आयेगा

    ,मोदी की झोली भर जाएगा .

    संवेदना जगाती है यह रचना अपने प्रति पुस्तकों के प्रति .

    बन गया अबीर हूँ ,मॉल लो कपोलन पर .शुक्रिया आपकी उत्साह वर्द्धक टिपण्णी का .आप स्पैम से टिपण्णी क्यों नहीं निकालते भाई साहब .

    ReplyDelete
  5. लघु ही सुन्दर है शक्तिवान है .डिजिटल के दौर में साइज़ जितना छोटा उतना सार्थक और उठाऊ साबित होता है .वात्सायन ने अश्व पुरुष को उत्तम पुरुष बतलाया है ,छोटे लाल छोटा चार इंची ,स्पर्म

    सुगन्धित काया युवतियों सी कोमल स्पर्श्य ,.छाती पे बाल का नामो -निशाँ नहीं .यही अश्व पुरुष के लक्षण हैं .अलबत्ता वृषभ ,और बुल भी हैं .

    छोटेलाल का आकार पुरुषों की हीन भावना है जानकारी के अभाव में .महिलायें भी अब पीन-स्तनी कहाँ हैं ?स्तानाकार उनकी हीन ग्रन्थि है .प्रेम निराकार है .आकार का अतिक्रमण करता है .महिलाओं

    में "मृगी" "बड़वा" से श्रेष्ठ बतलाई है वात्सायन ने .मृगी की योनी (वेजिनल ट्यूब चार इंची है )बड़वा तो फिर बड़वा ही है ."बुल" के लिए बनी है .

    वैजीनल ट्यूब बोले तो जांघ के बीच की दराज़ .

    बढ़िया सेतु ,प्रस्तुती रविकर करें कमाल ,

    एक से एक धमाल .

    गर्म दल और नर्म दल का अंतर समझाया है इस अंक में आपने .शुक्रिया मनोज भाई कहाँ हैं इन दिनों ?

    यथा नाम तथा गुण अ -शोक ,शोक- हीना बड़े ज़िंदा दिल इंसान हैं .

    न्युनोक्ति है इस पोस्ट में इरादे साफ़ नहीं हैं ,नहीं हुए हैं .कहना क्या चाहते हैं आप ?

    रचना बेहतरीन रचना .

    वाड्रा क़ानून अलग है ,गडकरी क़ानून अ -लग ,शाहीन क़ानून अलग जैसा मुंह वैसा क़ानून .

    कांगरेस की डूबती, लुटिया बारम्बार ।
    हार हार हुल्लड़ हटकु, हरदम हाहाकार ।
    हरदम हाहाकार, मौत का कह सौदागर ।
    बढ़ा गई सोनिया, विगत मोदी का आदर ।
    तरह तरह के चित्र, बिगाड़ें इमेज देश की ।
    शत्रु समझ गुजरात, चाल अघ कांगरेस की ।।

    बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब .

    मोदी का क्या बिगड़े मोदी हैं कुलश्रेष्ठ ,..........पूरी करें दिनेश कुं

    बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब .

    मोदी का क्या बिगड़े मोदी हैं कुलश्रेष्ठ ,..........

    सचमुच न बोलें ,मुख न खोलें तो दोनों सोनिया और राहुल बहुत बड़े विचारक है दोनों में से एक तो आयेगा

    ,मोदी की झोली भर जाएगा .

    संवेदना जगाती है यह रचना अपने प्रति पुस्तकों के प्रति .

    बन गया अबीर हूँ ,मॉल लो कपोलन पर .शुक्रिया आपकी उत्साह वर्द्धक टिपण्णी का .आप स्पैम से टिपण्णी क्यों नहीं निकालते भाई साहब .

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  6. लघु ही सुन्दर है शक्तिवान है .डिजिटल के दौर में साइज़ जितना छोटा उतना सार्थक और उठाऊ साबित होता है .वात्सायन ने अश्व पुरुष को उत्तम पुरुष बतलाया है ,छोटे लाल छोटा चार इंची ,स्पर्म

    सुगन्धित काया युवतियों सी कोमल स्पर्श्य ,.छाती पे बाल का नामो -निशाँ नहीं .यही अश्व पुरुष के लक्षण हैं .अलबत्ता वृषभ ,और बुल भी हैं .

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    में "मृगी" "बड़वा" से श्रेष्ठ बतलाई है वात्सायन ने .मृगी की योनी (वेजिनल ट्यूब चार इंची है )बड़वा तो फिर बड़वा ही है ."बुल" के लिए बनी है .

    वैजीनल ट्यूब बोले तो जांघ के बीच की दराज़ .

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    न्युनोक्ति है इस पोस्ट में इरादे साफ़ नहीं हैं ,नहीं हुए हैं .कहना क्या चाहते हैं आप ?

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    हार हार हुल्लड़ हटकु, हरदम हाहाकार ।
    हरदम हाहाकार, मौत का कह सौदागर ।
    बढ़ा गई सोनिया, विगत मोदी का आदर ।
    तरह तरह के चित्र, बिगाड़ें इमेज देश की ।
    शत्रु समझ गुजरात, चाल अघ कांगरेस की ।।

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    सुगन्धित काया युवतियों सी कोमल स्पर्श्य ,.छाती पे बाल का नामो -निशाँ नहीं .यही अश्व पुरुष के लक्षण हैं .अलबत्ता वृषभ ,और बुल भी हैं .

    छोटेलाल का आकार पुरुषों की हीन भावना है जानकारी के अभाव में .महिलायें भी अब पीन-स्तनी कहाँ हैं ?स्तानाकार उनकी हीन ग्रन्थि है .प्रेम निराकार है .आकार का अतिक्रमण करता है .महिलाओं

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    न्युनोक्ति है इस पोस्ट में इरादे साफ़ नहीं हैं ,नहीं हुए हैं .कहना क्या चाहते हैं आप ?

    रचना बेहतरीन रचना .

    वाड्रा क़ानून अलग है ,गडकरी क़ानून अ -लग ,शाहीन क़ानून अलग जैसा मुंह वैसा क़ानून .

    कांगरेस की डूबती, लुटिया बारम्बार ।
    हार हार हुल्लड़ हटकु, हरदम हाहाकार ।
    हरदम हाहाकार, मौत का कह सौदागर ।
    बढ़ा गई सोनिया, विगत मोदी का आदर ।
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    हरदम हाहाकार, मौत का कह सौदागर ।
    बढ़ा गई सोनिया, विगत मोदी का आदर ।
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    शत्रु समझ गुजरात, चाल अघ कांगरेस की ।।

    बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब .

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    बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब .

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    संवेदना जगाती है यह रचना अपने प्रति पुस्तकों के प्रति .

    बन गया अबीर हूँ ,मॉल लो कपोलन पर .शुक्रिया आपकी उत्साह वर्द्धक टिपण्णी का .आप स्पैम से टिपण्णी क्यों नहीं निकालते भाई साहब .

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