Wednesday, 14 November 2012

कंकड़ लेता निगल, कहाँ फिर जाकर उगलूं-




फिजा डरावनी है लेकिन शहर है अमन का!

Amrendra Nath Tripathi 
रिपोर्ट-''चन्दन श्रीवास्तव''

चन्दन जी की वन्दना, निष्पक्षता प्रणाम ।
विश्लेषण अतिशुद्ध है, ना रहीम ना राम ।
 ना रहीम ना राम, जिले में आग लगा दी ।
कभी नहीं जो काम, कर गई यह आजादी ।
चेतो हे अखिलेश,  रोकिये ऐसा क्रंदन ।
सान रहे ये खून, रही मिट्टी जो चन्दन ।।



व्यंगकार का खुब चले, कहते लोग दिमाग |
प्लाट ढूँढ़ ना पा रहा, चला गया या भाग  |
चला गया या भाग, फैसला कर लो पहले |
घरे बोलती बंद, पड़े नहले पे दहले |
दहले मोर करेज, यहाँ तो मन की बक लूँ  |
कंकड़ लेता निगल, कहाँ फिर जाकर उगलूं  ?? 



चीखा चावल चना ज्यों, चीखा जोर लगाय |
पत्नी घबराई नहीं, खड़ी खड़ी मुसकाय |
खड़ी खड़ी मुसकाय, कहे है ना डिश धांसू |
रहा दर्द से रोय, दिखें नहिं रविकर आंसू |
दीदा दो दो लिए, किन्तु कंकड़ नहिं दीखा  |
दे बत्तीसी तोड़, कहे यूँ क्योंकर चीखा ||


बहिष्कार करते हैं हम बाल-दिवस पर नेहरू के नाम का..

ZEAL 
 ZEAL 

आक्रोशित जन गन दिखे, बाल दुर्दशा देख । 
यहाँ कुपोषण विभीषिका, छपे वहां आलेख ।
छपे वहां आलेख, बाल बंधुआ मजदूरी ।
आजादी तो मिली, किन्तु अब भी मजबूरी ।
उत्सव का उद्देश्य, इन्हें अब करिए पोषित ।
वो ही चाचा असल, हुवे जो हैं आक्रोशित ।।

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Dr. sandhya tiwari  

आकांक्षा सपने सकल, भर लें सफल उड़ान |
मंजिल पर पहुंचे सही, काट सभी व्यवधान ||

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Kirti Vardhan  

सुबह देखता जब तुम्हें, नींद जा रही भाग ।
अलबेली तू जिंदगी, भरी बर्फ सह आग ।
भरी बर्फ सह आग, पिघलती  मद्धिम जाए ।
करे कर्म अटपटे, आग धीमी दहकाए ।
रविकर दर्शन पाय, धूप में देह सेकता ।
अनुभव बढ़ता जाय, दुबारा सुबह देखता ।। 
  

अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)

गीत

कातिक मास अमावस की ,रजनी सजनी रहि दीप जला

खावत है पकवान, नहीं मन की पढ़ता सजना पगला

बोल थके नयना कजरा ,अँचरा कुछ भी नहि जोर चला

फूल झरी मुरझाय चली, नहि बालम का हिरदे पिघला ||


  1. दीवाली का पर्व है, सबको बाँटों प्यार।
    आतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
    लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
    उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।



  1. आतिशबाजी फालतू ,की सचमुच है चीज
    करे विषैली पवन को , पैदा करती खीज
    पैदा करती खीज , दिवाली पर्व हैं पावन
    जलते नन्हें दीप , लगें सबको मन-भावन
    धन का अपव्यय होय नहीं गर हम हों राजी
    है सचमुच ही चीज , फालतू 'आतिशबाजी' ||



मीत समीप दिखाय रहे कुछ दूर खड़े समझावत हैं
बूझ सकूँ नहिं सैन सखे तब हाथ गहे लइ जावत हैं ।
जाग रहे कुल रात सबै, हठ चौसर में फंसवावत हैं ।
हार गया घरबार सभी, फिर भी शठ मीत कहावत हैं ।।


डोरे डाले आज फिर, किन्तु जुआरी जात ।
गृह लक्ष्मी करती जतन, पर खाती नित मात ।
पर खाती नित मात, पूजती लक्षि-गणेशा ।
पांच मिनट की बोल, निकलता दुष्ट हमेशा ।
खेले सारी रात, लौटता बुद्धू भोरे ।
जेब तंग, तन ढील, आँख में रक्तिम डोरे ।।

एक लगाता दांव पर, नव रईस अवतार ।
रोज दिवाली ले मना, करके गुने हजार ।।


लगा टके पर टकटकी, लूँ चमचे में तेल ।
माड़-भात में दूँ चुवा, करती जीभ कुलेल ।
करती जीभ कुलेल, वहाँ चमचे का पावर ।
मिले टके में कुँआ, खनिज मोबाइल टावर ।
दीवाली में सजा, सितारे दे बंगले पर ।
भोगे रविकर सजा, लगी टकटकी टके पर ।।



  1. आतिशबाजी का जनक, हमने जाना आज
    भूत पटाखों से डरे,खूब खुला है राज
    खूब खुला है राज, भूतनी गर सुन लेगी
    मुझसे घातक कौन , सोचकर मूड़ धुनेगी
    कहीं भूत का भूत,उतारे ना नाराजी
    चली भूतनी आज , दिखाने आतिशबाजी

     आतिशबाजी की प्रथा , है काफी प्राचीन
    हमने देखे सीरियल ,एक नहीं दो - तीन
    एक नहीं दो - तीन,बाण जब टकराते थे
    चिंगारी के फूल , गगन में बरसाते थे
    चीन पटाखा बाप, खबर ये ताजी-ताजी
    अर्वाचीन समझते थे हम आतिशबाजी ||

     कीटों का नाशक बना , बारूदी यह धूम्र
    साथ साथ कुछ कम करे,मानव की भी उम्र
    मानव की भी उम्र, फेफड़े होंय प्रभावित
    नज़र होय कमजोर , श्वाँस भी होती बाधित
    "धुँआ करे कल्याण",बात पर है अपना शक़
    कैसे मानें धूम्र, सिर्फ कीटों का नाशक ||

     श्लेष और अनुप्रास का, अद्भुत संगम भ्रात
    छंद - दीप जगमग जले , दीवाली की रात
    दीवाली की रात , कुण्डली धूम मचाती
    भाव शब्द का मेल,कि जैसे दीपक - बाती
    वर्णन सम्भव नहीं,छंद की इस मिठास का
    अद्भुत संगम भ्रात, श्लेष और अनुप्रास का ||

  1. हुक्का-हाकिम हुक्म दे, नहीं पटाखा फोर ।
    इस कुटीर उद्योग का, रख बारूद बटोर ।
    रख बारूद बटोर, इन्हीं से बम्ब बनाना ।
    एक शाम इक साथ, प्रदूषण क्यूँ फैलाना ?
    मारे कीट-विषाणु, तीर नहिं रविकर तुक्का ।
    ताश बैठ के खेल, खींच के दो कश हुक्का ।


    दूर पटाखे से रहो, कहते हैं श्रीमान ।
    जनरेटर ए सी चले, कर गुडनाइट ऑन ।
    कर गुडनाइट ऑन, ताश की गड्डी फेंटे ।
    किन्तु एकश: आय, नहीं विष-वर्षा मेंटे ।
    गर गंधक तेज़ाब, नहीं सह पाती आँखे ।
    रविकर अन्दर बैठ, फोड़ तू दूर पटाखे ।।


    डेंगू-डेंगा सम जमा, तरह तरह के कीट |
    खूब पटाखे दागिए, मार विषाणु घसीट |
    मार विषाणु घसीट, एक दिन का यह उपक्रम |
    मना एकश: पर्व, दिखा दे दुर्दम दम-ख़म |
    लौ में लोलुप-लोप, धुँआ कल्याण करेगा |
    सह बारूदी गंध, मिटा दे डेंगू-डेंगा ||


    संध्या वंदन आरती, हवन धूप लोहबान |
    आगम निगम पुराण में, शायद नहीं बखान |
    शायद नहीं बखान, परम्परा किन्तु पुरानी |

    माखी माछर भाग, नीम पत्ती सुलगानी |
    भारी बड़े विषाणु, इन्हें बारूद मारती |
    शुरू करें इक साथ, पुन: वंदना आरती ||

    डीजल का काला धुंआ, फैक्टरी का जहर |
    कल भी था यह केमिकल, आज भी ढाता कहर |
    आज भी ढाता कहर, हर पहर हुक्का बीडी |
    क्वायल मच्छरमार, यूज करती हर पीढ़ी |
    डिटरजेंट, विकिरण, सहे सब पब्लिक पल पल |
    बम से पर घबराय, झेलटा काला डीजल ||





  1. दे कुटीर उद्योग फिर, ग्रामीणों को काम ।
    चाक चकाचक चटुक चल, स्वालंबन पैगाम ।।

    हर्षित होता अत्यधिक, कुटिया में जब दीप ।
    विषम परिस्थिति में पढ़े, बच्चे बैठ समीप ।।

    माटी की इस देह से, खाटी खुश्बू पाय ।
    तन मन दिल चैतन्य हो, प्राकृत जग हरषाय ।।

    बाता-बाती मनुज की, बाँट-बूँट में व्यस्त ।
    बाती बँटते नहिं दिखे, अपने में ही मस्त ।।

    अँधियारा अतिशय बढ़े , मन में नहीं उजास ।
    भीड़-भाड़ से भगे तब, गाँव करे परिहास ।।

17 comments:


  1. चन्दन जी की वन्दना, निष्पक्षता प्रणाम ।
    विश्लेषण अतिशुद्ध है, ना रहीम ना राम ।
    ना रहीम ना राम, जिले में आग लगा दी ।
    कभी नहीं जो काम, कर गई यह आजादी ।
    चेतो हे अखिलेश, रोकिये ऐसा क्रंदन ।
    सान रहे ये खून, रही मिट्टी जो चन्दन ।।

    बहुत बहुत सटीक टिपण्णी घटना क्रम पर .

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  2. चन्दन जी की वन्दना, निष्पक्षता प्रणाम ।
    विश्लेषण अतिशुद्ध है, ना रहीम ना राम ।
    ना रहीम ना राम, जिले में आग लगा दी ।
    कभी नहीं जो काम, कर गई यह आजादी ।
    चेतो हे अखिलेश, रोकिये ऐसा क्रंदन ।
    सान रहे ये खून, रही मिट्टी जो चन्दन ।।

    बहुत बहुत सटीक टिपण्णी घटना क्रम पर .

    अरे भाई साहब ये अखिलेश्वा सेकुलर मुलायम अली के बेटे हैं .और मुलायम अली इनके नेता हैं ऐसे में अमन चैन को पिछली सीट ही

    मिलती है .ये सेकुलर जादे जो करादें सो कम .

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  3. आतिशबाजी पर काव्यात्मक आतिशबाज़ी ने मन मोह लिया दोनों तीनों पक्षों के काव्य मर्मज्ञ समझाते रहे -ठीक नहीं है हवा पानी मिट्टी ,खुद हमारी काया के लिए आतिशबाजी

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  4. वाह ... बेहतरीन

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  5. ख्वाब तुमसे ही तो बनते हैं, ऐ मेरे मन
    उड़ान भरने दो मन को, मन हो जितनी ।
    प्रस्तुतकर्ता Dr. sandhya tiwari पर 7:42 am कोई

    करामाती इस्तेमाल किया है मन शब्द का ,बधाई



    आकांक्षा सपने सकल, भर लें सफल उड़ान |
    मंजिल पर पहुंचे सही, काट सभी व्यवधान ||

    काव्य सौन्दर्य के नए प्रतिमान नित बुनते रविकर जी सलामत रहें .

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  6. गर गंधक तेज़ाब, नहीं सह पाती आँखे ।
    करे इंडस्ट्री बंद , सूत तकली से कातें |

    एक दिवस में भला , कहाँ हो पाय प्रदूषण,
    नित गंधक-तेज़ाब, कर रहे खूब प्रदूषण |

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  7. एक जरूरी रिपोर्ट को विस्तार देने के लिए आपका शुक्रिया रविकर जी!

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  8. रविकर जी, जहां मेरा नाम है वहाँ ''चन्दन श्रीवास्तव'' का नाम से दें तो बेहतर होगा, क्योंकि रिपोर्ट उन्हीं के सौजन्य से है. इसलिए यह श्री भी उन्हीं को मिलना चाहिए!

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  9. श्री को *श्रेय पढ़ें, सुधार!

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  10. श्री को *श्रेय पढ़ें, सुधार!

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  11. लाजवाब प्रस्तुति!
    भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  12. धन्यवाद मुझे लिंक-लिखाड़ में शामिल करने के लिए ...........बहुत सुन्दर लिंक्स संकलन ........

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  13. एक से बढ़कर कर एक प्रस्तुति वाह लाजवाब अति सुन्दर.

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  14. चुनी लिंक्स में मुझे सम्मिलित करने हेतु आभार!

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  15. Great links...Thanks Dinesh ji

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