Thursday, 22 November 2012

फांसी का भय भी नहीं, लगता अब पर्याप्त - रविकर




हिन्दुस्तान में सज़ा ए मौत बाक़ी रहे या इसे ख़त्म कर दिया जाए ? Kasab:Hang Till Death -DR. ANWER JAMAL

Dr. Ayaz Ahmad 

 फांसी का भय भी नहीं, लगता अब पर्याप्त ।
त्रस्त आम-जन हो रहे, खून-खराबा व्याप्त ।
खूनखराबा व्याप्त, मरें निर्दोष करोड़ों ।
धरा चाहती शान्ति, दण्ड को नहीं मरोड़ो ।
मानवता की हार, बचे नहिं काबा काशी ।
धारदार कानून, ख़त्म क्यूँ करना फांसी ।।

लयबद्ध कविता लिखना हुआ आसान

ऋता शेखर मधु 

मनचाहा लय-बद्ध शब्द, कोई नहीं बवाल ।
 वाह वाह क्या बात है, मधुरिम गुंजन ताल ।
मधुरिम गुंजन ताल, छंद में हो आसानी ।
करिए वार्तालाप, छापिये फर्द-बयानी ।
बहुत बहुत आभार, कोशिशें खूब सराहा ।
बढे सदा साहित्य, शब्द ढूँढो मनचाहा ।


डरे हुए क़ानून की फांसी

Virendra Kumar Sharma 
लुका छिपा फांसी लगा, लें क्रेडिट मुंहजोर |
वोट बैंक की पॉलिटिक्स, देखें कई करोर |

देखें कई करोर,  मलाला खाय गोलियां |
माने नहिं फरमान, मारती दुष्ट टोलियाँ |

हमलावर यह सिद्ध, कराती सत्ता हांसी |
राष्ट्र-शत्रु यह घोर, छुपा कर क्यूँ हो फांसी ||

"कार्टून-लालबत्ती" (कार्टूनिस्ट-मयंक खटीमा)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 
खाली करवाए तुरत, सही चुकावो दाम ।
 फ़ार्म हाउस बंगला बड़ा, घर जमीन का काम ।
घर जमीन का काम, नाम धारी है बडका ।
मुर्ग-मुसल्लम खाय, भाय नहिं इसको तड़का ।
तड़के पॉन्टी मौत,  चुकाए दाम मवाली ।
जलती बत्ती लाल,  करे खुद गाड़ी खाली ।।


ठोकर लग जाये अगर, देते मिटा पहाड़ |
अपनी कुटिया के लिए, जंगल रहे उजाड़ |

जंगल रहे उजाड़, स्वार्थ में होकर अंधे |
गर्त-धरा-नभ फाड़, करे नित काले धंधे |

 ललित-चैत्य में लंठ, शिल्पशाला में पत्थर |
भवनों में मक्कार, लगाते रहते ठोकर || 

6 comments:

  1. आपका जवाब नहीं रविकर जी!
    टिप्पणी पढ़कर मन प्रसन्न हो गया!

    ReplyDelete
  2. उम्दा पोस्ट पर एक से बढ़कर एक टिप्पणी | सच कहा शास्त्री जी ने, आपका जवाब नहीं |

    ReplyDelete
  3. एक से एक लिंक लाकर ,
    भर दिया आपने ब्लोगर का घर .

    ReplyDelete
  4. फांसी का भय भी नहीं, लगता अब पर्याप्त ।
    त्रस्त आम-जन हो रहे, खून-खराबा व्याप्त ।
    खूनखराबा व्याप्त, मरें निर्दोष करोड़ों ।
    धरा चाहती शान्ति, दण्ड को नहीं मरोड़ो ।
    मानवता की हार, बचे नहिं काबा काशी ।
    धारदार कानून, ख़त्म क्यूँ करना फांसी ।।

    भय बिन प्रीती न होत गुसाईं .

    ReplyDelete
  5. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति रविकर सर तहे दिल से बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  6. बढ़िया लिंक्स...सुंदर प्रस्तुति, मधुर गुंजन को शामिल करने के लिए आभार!!

    ReplyDelete