थोड़ी बात करें ज़िन्दगी की!
मनोज कुमार
स्वर्ण अशरफ़ी सा रखो, रिश्ते हृदय संजोय ।
हृदय-तंतु संवेदना, कहीं जाय ना खोय ।
कहीं जाय ना खोय, गगन में पंख पसारो ।
उड़ उड़ ऊपर जाय, धरा को किन्तु निहारो ।
रिश्ते सभी निभाय, रहें नहिं केवल हरफ़ी
कहीं जाय ना खोय, हमारी स्वर्ण अशरफ़ी ।।
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शब्द रे शब्द, तेरा अर्थ कैसा
mahendra verma
शब्द अलग से दीखते, रहते अगर स्वतंत्र ।
यही होंय लयबद्ध जब, बन जाते हैं मन्त्र ।
बन जाते हैं मन्त्र , काल सन्दर्भ मनस्थिति ।
विश्लेषक की बुद्धि, अगर विपरीत परिस्थिति ।
होवे अर्थ अनर्थ, शान्ति मिट जाए जग से ।
कोलाहल ही होय, सुने नहिं शब्द अलग से ।।
शत्रु-शस्त्र से सौ गुना, संहारक परिमाण ।
शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण । मित्र हरे झट प्राण, शब्द जब स्नेहसिक्त हों । जी उठता इंसान, भाव से रहा रिक्त हो । आदरणीय आभार, चित्र यह बढ़िया खींचा । शब्दों का जल-कोष, मरुस्थल को भी सींचा ।। |
खुला खेल फर्रुखाबादी (लम्बी कविता :डॉ .वागीश मेहता )Virendra Kumar Sharma
ram ram bhai
खुला खेल खेला किये, वाह फरुक्खाबाद | देश अपाहिज झेलता, नाजायज औलाद | नाजायज औलाद, निकाला काला मुँह कर | पर कानून विदेश, वजारत करता रविकर | मान रहा सलमान, काम अपना कर प्यारे | मनमोहनी सलाह, लुटेरे चौकस सारे || |
सर्ग-5 : भगवती शांता इतिश्री राम की सहोदरी : भगवती शांतामत्तगयन्द सवैयासंभव संतति संभृत संप्रिय, शंभु-सती सकती सतसंगा ।संभव वर्षण कर्षण कर्षक, होय अकाल पढ़ो मन-चंगा । पूर्ण कथा कर कोंछन डार, कुटुम्बन फूल फले सत-रंगा । स्नेह समर्पित खीर करो, कुल कष्ट हरे बहिना हर अंगा ।। जय जय भगवती शांता परम |
छत्तीसगढ़ वंदना
अरुण कुमार निगम
प्रिय लागे ज्यूँ गाये सोहर | मंगल मंगल भली कामना | छत्तीस गढ़ की प्रेम भावना | सदा प्रांत यह बढ़ता जाए | भारत को सद्मार्ग दिखाए | सरल सौम्य हैं लोग यहाँ के | नहीं व्यर्थ की गाथा हाँके | बहुत बहुत आभार निगम जी | पोस्ट पिता का पढ़ते हम जी || |
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteआपके कवित्त-कुण्डलियाँ लाजवाब हैं!
लाजवाब कुण्डलियाँ ..आभार!
ReplyDeleteजली कटी देती सुना, महीने में दो चार ।
ReplyDeleteतुम तो भूखी एक दिन, सैंयाँ बारम्बार ।
सैंयाँ बारम्बार, तुम्हारे व्रत की माया ।
सौ प्रतिशत अति शुद्ध, प्रेम-विश्वास समाया ।
रविकर फांके खीज, गालियाँ भूख-लटी दे ।
कैसे मांगे दम्भ, रोटियां जली कटी दे ।।
सैंय्या को भूखे ही मरना बारम्बार ,
इसलिए भगवान को मना कर करुं मनुहार
आपके हाथों सम्मानित होना किसी पुरस्कार से कम नहीं है।
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