देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर
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बोला न ,
सीख रहा हूँ गजल ।
बताइये,
दिशा सही है या नहीं -
पुरानी रचना -
13 September 2011
आलू यहाँ उबाले कोई |
बना पराठा खा ले कोई || तोला-तोला ताक तोलते, सोणी देख भगा ले कोई || जला दूध का छाछ फूंकता छाछे जीभ जला ले कोई || जमा शौक से करे खजाना आकर उसे चुरा ले कोई || लेता देता हुआ तिहाड़ी पर सरकार बचा ले कोई || रविकर कलम घसीटे नियमित आजा प्यारे गा ले कोई || |
14 मास बाद संशोधन
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएँ!
दीपावली की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteनिरंतर परिपक्वता की और बढ़ते कदम -
ReplyDeleteहोते गये तिहाड़ी मंत्री
सत्ता मगर बचा ले कोई ||
गजल से गजल तक अशआर पा रहें हैं निखार और गेयता .सार और विस्तार .
दीपों की यह है कथा,जीवन में उजियार
ReplyDeleteसंघर्षो के पथ रहो, कभी न मानो हार,
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ,,,,
RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,
दोनों ही गज़लें अच्छी हैं ..मेरे विचार में पहले वाली अधिक अच्छी है...
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