PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA
हल्ला कर, मरहम मले, जन-मत लेता पोट । फिर डंके की चोट पर, पहुंचा जाता चोट । पहुंचा जाता चोट, चूसता खून प्यार से । एक घरी की खाज, तड़पता व्यक्ति वार से । अक्सरहाँ दे दर्द, जहर तन भरे निठल्ला । रविकर हिट दे मार, बंद हो जाए हल्ला ।। |
rajesh kumari
रविकर के दोहे बाबा बापू चल बसे, बसे अनोखे पूत । संस्कार की छत ढहे, अजब गजब करतूत ।। चिंगारी भड़का गई, जली बुझी दिल-आग। जमी समय की राख है, मत कुरेद कर भाग ।। जल-धारा अनुकूल पा, चले जिंदगी नाव । धूप-छाँव लू कँपकपी, मिलते गए पड़ाव ।। दिल से निकली बात जब, जाए ज्यादा दूर । मचे तहलका जगत में, नव-गुल खिले जरूर । महलों में बिगड़ें बड़े, बच्चों की क्या बात । नया घोसला ले बना, मार महल को लात । बच्ची बहिनी बन बुआ, मौसी बीबी माय । नए नए नित नाम दे, नित सूरत बदलाय ।। पटाक्षेप होने चला, सुख दुःख का यह खेल । करवट देखो ऊंट की, मत कर ठेलमठेल ।। चूहे पहले भागते, डूबे अगर जहाज । गिरती देख दिवार को, ईंट करे नहिं लाज । |
पति-अनुनय को कह धता,
कुपित होय तत्काल |
बरछी-बोल कटार-गम,
दरक जाय मन-ढाल ||
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रक्त-कोष की पहरेदारी-चालबाज, ठग, धूर्तराज सब, पकडे बैठे डाली - डाली |आज बाज को काम मिला वह करता चिड़ियों की रखवाली |
गौशाला मे धामिन ने जब, सब गायों पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने अपनी हद में, मछली-घर मंजूर कराया || |
ReplyDeleteजल-धारा अनुकूल पा, चले जिंदगी नाव ।
धूप-छाँव लू कँपकपी, मिलते गए पड़ाव ।
काव्य सौन्दर्य देखते ही बनता है इस दोहे में .
वाह बहुत खूब डिजिटल बाण लायें हैं आज तो .
ReplyDeleteजल-धारा अनुकूल पा, चले जिंदगी नाव ।
ReplyDeleteधूप-छाँव लू कँपकपी, मिलते गए पड़ाव ।।
काव्य सौन्दर्य की अनुपम छटा बिखरी है यहाँ .
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह रविकर सर छा गए आप, बेहतरीन सर एक से बढ़ कर एक।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
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