Sunday, 18 November 2012

स्वस्थ विवेकी सभ्य , चाहिए बेटी बेटे -



जब आ गए हो तो वहीँ मिलते हैं-


ज़िंदगी के रंग ....

Pallavi saxena 

 बेटे की चाहत रखें, ऐ नादाँ इंसान ।
अधिक जरुरी है कहीं, स्वस्थ रहे संतान ।
स्वस्थ रहे संतान, छोड़ यह अंतर करना ।
दे बेटी को मान, तुझे धिक्कारूं वरना ।
बेटा बेटी भेद, घूमता कहाँ लपेटे ।
स्वस्थ विवेकी सभ्य , चाहिए बेटी बेटे ।।


कराती है दिवाली यह पुरानी याद को ताजा |
खिला घर बार रोशी का, पटाखों का सुना बाजा |
रँगोली है उजाला है जले हैं दीप सब छाजा |
नहीं आये जिन्हें आना, घनी सी याद तू आजा ||


 काव्य का संसार 

 यहाँ वहाँ भरमार है, खाय रहे हैं मार ।
बैठा पति मनमार है, करिए माँ उद्धार ।।


सवैया-
सूखत स्रोत सरोवर नित्य, सहे मन-मीन महा बाधा ।
पैर पखारन हेतु मंगावत, भक्त पखाल भरा आधा ।
बर्तन एक मंगाय भरा, इक यग्य बड़ा रविकर नाधा ।
साइत आकर ठाढ़ भई पद चिन्ह बनाय गए पाधा ।।
पखाल=मसक
पाधा=उपाध्याय

"चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक -२०

 

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पानी जैसा धन बहा, मरते डूब कपूत ।
हुई कहावत बेतुकी, और आग मत मूत ।
और आग मत मूत, हिदायत गाँठ बाँध इक ।
बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक ।
कह रविकर कविराय, सिखाई दादी नानी ।
बन जा पानीदार, सुरक्षित रखना पानी ।।


2 comments:

  1. सूखत स्रोत सरोवर नित्य, सहे मन-मीन महा बाधा ।
    पैर पखारन हेतु मंगावत, भक्त पखाल भरा आधा ।
    बर्तन एक मंगाय भरा, इक यग्य बड़ा रविकर नाधा ।
    साइत आकर ठाढ़ भई पद चिन्ह बनाय गए पाधा ।।

    भावमय सुंदर सवैया,,,,,रविकर जी बधाई


    recent post...: अपने साये में जीने दो.

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