तड़प,,,
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
दर्दे-दिल दफना दिया, देह दशा दुर्गेश ।
बैठ मर्सिया पढ़ रहा, अश्रु हुवे नि:शेष ।
अश्रु हुवे नि:शेष, देह यह कब्रिस्तानी ।
अब भी हलचल करे, बुरी है कारस्तानी ।
ताक-झाँक में तेज, जरा हिलते जो परदे ।
चमके रोती आँख, आस नव रविकर दर-दे ।।
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सांसद की अवमानना, पानेसर पर केस |बोल्ड सचिन को करे पर, पगबाधा से ठेस | पगबाधा से ठेस, हाथ पाकी का दीखे | गम में संसद देश, लोग सड़कों पर चीखे | करने दो सेंचुरी, रिटायर तब हो पाए | चेतो रे अंगरेज, अन्यथा मिट ही जाये || |
मोदी को करके खफा, योगी को नाराज-
मोदी को करके खफा, योगी को नाराज ।
घर से बाहर "जेठ" कर, चली बचाने लाज ।
चली बचाने लाज, केजरी देवर प्यारा ।
चूमा-चाटी नाज, बदन जब नगन उघारा ।
हुई फेल सब सोच, बिठा नहिं पाई गोदी ।
बचे हुवे अति हीन, विरोधी दिखते मोदी ।। |
मिले सैकड़ों भक्त, लानतें "धिम्मी" भेजी-
अपने मुंह मिट्ठू बनें, मियाँ ढपोरी-शंख ।
करे निखट्टू कोशिशें, काट *बया के पंख ।
*गौरैया जैसा एक चतुर पक्षी
काट *बया के पंख, खाय नामर्द कलेजी ।
मिले सैकड़ों भक्त, लानतें "धिम्मी" भेजी ।
खड़ा करे संगठन, खरे नहिं देता टपने ।
दिखें सभी में ऐब, धुनेगा खुद सिर अपने ।
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सिंह चतुर्दिक थे खड़े, बन जन-गन के रक्ष ।
अपने अपने क्षेत्र में, दिखे हमेशा दक्ष ।
दिखे हमेशा दक्ष, लक्ष अवगुण अब आये ।
गीदड़ बनते देख, गधे सत्ता हथियाए ।
ढेंचू ढेंचू रेंक, रैंक ले लेते ऐच्छिक ।
दाने देते फेंक, ताकते सिंह चतुर्दिक ।।
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'आम आदमी' की दस्तक, मीडिया को दस्तKulwant Happy "Unique Man"
युवा सोच युवा खयालात
आकर्षण होता ख़तम, व्यक्ति हो रहा गौण । पका पकाया माल हो, लगे मीडिया दौड़ । लगे मीडिया दौड़, घुटाले रेपकांड हों । पार्टी का हो गठन, समय तो वहां डांड़ हो । प्रायोजित हों न्यूज, ब्लैक मेलिंग का घर्षण । आम आदमी अगर, ख़त्म होता आकर्षण ।। |
"बड़ी मुश्किल में हूँ, मैं किधर जाऊँ...!" (कार्टूननिस्ट-मयंक खटीमा)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) कार्टूनिस्ट-मयंक खटीमा (CARTOONIST-MAYANK)
राष्ट्रवाद की तरफ या, 'बहू'-राष्ट्र की ओर । यह बैठूं निरपेक्ष गुट, जैसे बैठ करोर । जैसे बैठ करोर, हमें नृप से क्या हानी । गवर्नमेंट सर्वेंट, छोड़ ना होउब रानी । एक ऑप्शन और, बात यह बहुत बाद की । जीतेगा उन्माद, हार हो राष्ट्रवाद की ।। |
भाई जी तो फॉर्म में, गुगली देते डाल।
पत्रकार की हड़बड़ी, जला मधुबनी हाल ।।
अब जमीन का मोल क्या, गर किसान के पास ।
सोना उगलेगी वही, खरीदार गर ख़ास ।।
मिला दंड था तभी तो, छोड़ा पाकिस्तान ।
दुष्ट पंथ दो काज हों, पिछड़े हिन्दुस्तान ।।
अल्संख्यकों को मिले, पहला हक़ श्रीमान ।
बने नामधारी तभी, लूटपाट सामान ।।
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चिंतन ...
सदा
दादी बाबा बा गए, काका काकी भाय |
बच्चे भी बाहर गए, भारी जगह बनाय | भारी जगह बनाय, कई खाली हैं कमरे | रविकर लेता एक, एक में पत्नी पसरे | पाए आज स्पेस, जगह की नहिं बर्बादी | इक इक कोना थाम, बैठ बन बाबा दादी || |
आम आदमी को "आम" की तरह ख़ास आदमी चूसता रहा है..!!PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.) at 5TH Pillar Corruption Killerसत्तावन में थे मरे, जब अंग्रेज हजार । कान्ग्रेस का जन्म हो, धर धरती हथियार । धर धरती हथियार, सँभाले तिलक बोस थे । लाल बाल अरविन्द, पाल से भरे जोश थे । बाँट बाँट के काट, किये टुकड़े हैं बावन । खड़ी होय अब खाट, पुन:आया सत्तावन ।। करते कत्ले आम हो, पड़ें आम पर लात । आम आदमी की करो, किस मुंह से तुम बात । किस मुंह से तुम बात, राष्ट्रवादी इक साइड । बहू-राष्ट्र की पकड़, विदेशी जिसके गाइड । आम आदमी आज, तड़प करके हैं मरते । नेताओं का शौक, बड़े से गड्ढे करते ।। |
बहुत रंग बिरंगी सार्थक प्रस्तुति .aabhar
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteशानदार रचनाओं का संकलन !!
ReplyDeleteबेहतरीन रविकर जी,,आभार
ReplyDeleteदिल में दर्द मेरे नही , नाही मन में घाव
दिल आया वो लिख दिया,उपजे मन में भाव,,,,,
यहाँ मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |हमें तो आपकी टिप्पणी बहुत हां अच्छी लगी |बहुत आभार |
ReplyDeleteआशा
सांसद की अवमानना, पानेसर पर केस |
ReplyDeleteबोल्ड सचिन को करे पर, पगबाधा से ठेस |
पगबाधा से ठेस, हाथ पाकी का दीखे |
गम में संसद देश, लोग सड़कों पर चीखे |
करने दो सेंचुरी, रिटायर तब हो पाए |
चेतो रे अंगरेज, अन्यथा मिट ही जाये ||
करते बढ़िया व्यंग्य निसदिन रविकर भाई .
सुंदर विविधता लिये लिंक्स । मेरी कविता को इसमें शामिल करने का आभार ।
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteरचनाओं का समाहार