Friday, 9 November 2012

कहाँ जलेंगे दीप, मोमबत्ती ही ज्यादा-





जगमग दीप जले - हाइगा में

ऋता शेखर मधु 
दीवट दीमक लील गई, रजनी घनघोर अमावस की ।
दामिनि दारुण दाप दिखा, ऋतु बीत गई अब पावस की ।
कीट पतंग बढे धरती, धरती नहिं पाँव, भगावस की ?
तेल नहीं घर आज रहा, फिर दीपक डारि जलावस की ?? 


चीन महीन जहीन दिखे जग छोर बहोर पटावत है ।
माल सड़ा सब ठेल रहा, अपना कचड़ा फिकवावत है ।
भारत हारत वार यहाँ  अपनी भद भी पिटवावत है ।
झालर दीप खरीद करें, सब को वह माल सुहावत है । ।।

काल कलुष का आ गया , हुआ तिमिर का नाश!

 राजेन्द्र स्वर्णकार 
 शस्वरं  

जब जब तन उजला जला, बनकर सूत कपास ।
होता जग कल्याण है, बने अन्धेरा दास ।
बने अन्धेरा दास, मगर यह उजली खादी ।
भू-नभ-पाताल, मचाये है बर्बादी ।
सारा जगत अ'धीर, बचाना अब तो हे रब ।
घबरा जाये धीर, मुसीबत आती जब जब ।

ज्यादा हैं वो बत्तियां, जगह जगह पर बलब  ।
 रहे जुआड़ी हैं  मिटा, भैया अपनी तलब ।
भैया अपनी तलब, खलब उनका खुब कसके ।
जब बुद्धि बाम मलब, हार जायेंगे हँस  के ।
लक्ष्मी दिया लुटाय, हार कर भागा  प्यादा  ।
कहाँ जलेंगे दीप,  मोमबत्ती ही ज्यादा ।।


देह देहरी देहरा, दो, दो दिया जलाय -


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देह देहरी देहरा,  दो, दो दिया जलाय ।
कर उजेर मन गर्भ-गृह, कुल अघ-तम दहकाय । 
कुल अघ तम दहकाय , दीप दस  घूर नरदहा ।
गली द्वार पिछवाड़ , खेत खलिहान लहलहा ।
देवि लक्षि आगमन, विराजो सदा हे हरी ।
सुख सामृद्ध सौहार्द, बसे कुल देह देहरी ।।

 देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय 
घूर = कूड़ा 
लक्षि  = लक्ष्मी 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - २५



   डेंगू-डेंगा सम जमा, तरह तरह के कीट |
    खूब पटाखे दागिए, मार विषाणु घसीट |
    मार विषाणु घसीट, एक दिन का यह उपक्रम |
    मना एकश: पर्व, दिखा दे दुर्दम दम-ख़म |
    लौ में लोलुप-लोप, धुँआ कल्याण करेगा |
    सह बारूदी गंध, मिटा दे डेंगू-डेंगा ||

अभिनन्दन दीपावली, दीप मालिका मस्त ।
लखें रँगोली विविधता, *बेदक  मार्ग प्रशस्त ।।
बेदक मार्ग प्रशस्त, विविध पकवान पके हैं ।
लाला लुल लाचार,लवासी लसक छके हैं ।
खतरानी वन्दना, लगा के भेजी चन्दन ।
त्रिलोचन सा नाच, करें सबका अभिनन्दन ।
वेद मानने वाला =हिन्दू
लसक = नाचने  वाला
लवासी=गप्पी

सीमा समय सँभाल  के, बहना बह ना जाय ।
दीवाली की व्यस्तता, लो पकवान पकाय ।
लो पकवान पकाय, आज हम यही चखेंगे ।
आएगा कुछ और, ध्यान पर सदा रखेंगे ।
बढ़िया आये स्वाद, पके जब लौ पे धीमा ।
कम-ज्यादा नहिं होय, सभी अवयव की सीमा ।।

उतरन बेशक पहनते, किन्तु मुखौटे त्याग ।
बड़े जुगाड़ी बड़े ये, अतिशय माहिर लाग ।
अतिशय माहिर  लाग, मिले सत्ता से जाके ।
जर जमीन ले भाग, गया सब चीज उठा के ।
टैक्स चुरा के खाय, देखिये फिर भी अकड़न ।
मानो नेचुरल ग्रोथ, बाँट नहिं सकती उतरन ।।

 
 
त्योहारों की टाइमिंग, हतप्रभ हुआ विदेश ।
चौमासा बीता नहीं, आ जाता सन्देश ।
आ जाता सन्देश, घरों की रंग-पुताई ।
सजे नगर पथ ग्राम, नई दुल्हन की नाई ।
सब में नव उत्साह, दिशाएँ हर्षित चारों ।
लम्बी यह श्रृंखला, करूँ स्वागत त्योहारों ।।
  रो ले ऐ अन्धेर तू, ख़त्म आज साम्राज्य ।
 प्रेम नेम से बट रहा, घृणा द्वेष   त्याज्य ।
 घृणा द्वेष अघ त्याज्य, अमावस यह अति पावन ।
स्वागत है श्री राम, आइये पाप नशावन ।
धूम आज सर्वत्र, यहाँ भी देवी  हो ले  ।
सुख सामृद्ध सौहार्द, दान दे पढ़कर रोले ।
 दोहे 
दे कुटीर उद्योग फिर, ग्रामीणों को काम ।
चाक चकाचक चटुक चल, स्वालंबन पैगाम ।।

हर्षित होता अत्यधिक,  कुटिया में जब दीप ।
विषम परिस्थिति में पढ़े, बच्चे बैठ समीप ।।

माटी की इस देह से, खाटी खुश्बू पाय ।
तन मन दिल चैतन्य हो, प्राकृत जग  हरषाय ।

बाता-बाती मनुज की, बाँट-बूँट में व्यस्त ।
बाती बँटते नहिं दिखे, अपने में ही मस्त ।।

अँधियारा अतिशय बढ़े , मन में नहीं उजास ।
भीड़-भाड़ से भगे तब, गाँव करे परिहास ।।

दीपक मिटटी से बने, धरती का ही अंग ।
सिट्टी-पिट्टी गुम गई, अँधियारा है दंग ।

5 comments:

  1. बहुत अच्छी कुंडलियां

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  2. रविकर सर वाह रंगा-रंग है लिंक-लिक्खाड़ उम्दा प्रस्तुति

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  3. दीवट दीमक लील गई, रजनी घनघोर अमावस की ।
    दामिनि दारुण दाप दिखा, ऋतु बीत गई अब पावस की ।
    कीट पतंग बढे धरती, धरती नहिं पाँव, भगावस की ?
    तेल नहीं घर आज रहा, फिर दीपक डारि जलावस की ??


    चीन महीन जहीन दिखे जग छोर बहोर पटावत है ।
    माल सड़ा सब ठेल रहा, अपना कचड़ा फिकवावत है ।
    भारत हारत वार यहाँ अपनी भद भी पिटवावत है ।
    झालर दीप खरीद करें, सब को वह माल सुहावत है । ।।

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

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  4. दीपावली की हार्दिक बहुत२ शुभकामनाए,,,,

    RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,

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  5. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.....आभार!!

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