सागर,,,
dheerendra bhadauriya
सागर से क्या बात करें, उनके नयनों सी गहराई ।
डूब डूब उतराते हरदिन, नाप नहीं पाता भाई ।।
सागर के क्या पास चलें, आंसू से भी खारा ज्यादा।
छूछे वापस लेकर लौटा, प्रेम-गगरिया नहीं डुबाई ।।
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मच्छर नहिं कमजोर जो, मार सके अखबार ।
मार सकोगे तभी जब, हो दोतरफा वार ।
हो दोतरफा वार , प्यार है अघ-कसाब से ।
डेंगू जैसा वार, मारता बेहिसाब ये ।
आई-क्यु की कर बात, गडकरी जैसे लगते ।
बढ़िया मौका पाय, दनादन मुंह से हगते ।
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ये मेरे बुजर्गो का खजाना
DINESH PAREEK
जाना है तो एक दिन, दनदनाय दिन बीत |
| कुछ गुनाह ...!!!
सच से हरदम भागते, भारी विकट गुनाह |
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पानी रे पानी
Saleem akhter Siddiqui
उसका एफ़ डी आय है, बना आय का स्रोत्र ।
सुखा दिया जल-स्रोत्र को, रुपियों का हो होत्र ।।
रुपियों का हो होत्र, गोत्र से शॉप विदेशी ।
पैदल बनता ऊँट , चले टेढा वह वेशी ।
नदी नहर नल कूप, मिटाता मानव मुस्का ।
कुदरत कहीं वजूद, मिटा नहिं देवे उसका ।।
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महेन्द्र श्रीवास्तव
भाजी पी-नट की सड़ी, गंध-करी में आय ।
है नरेंद्र उपवास पर, दाउद खाये जाय ।
दाउद खाये जाय, गधे के माफिक आई-क्यू ।
करे बरोबर बात, वाह रे कुक्कुर का व्यू ।
वह भी तो ना खाय, कहो क्या कहते काजी ।
हाँ जी हाँ जी सत्य, सड़ी निकली यह भाजी ।।
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छूछ आग से 'के-जरी', जे 'गुट-करी' जनाब |
'सोनी-या' रोनी शकल, करती काम खराब | करती काम खराब, बड़ा डेंगू है फैला | सुबह कपाली काँख, फाँक ले सूखा मैला | मत घबराना किन्तु, वोट तो मिलें भाग से | नाती पुत्र दमाद, डरें नहीं छूछ आग से || |
मौन रतनपुर
Rahul Singh
वन रक्षा में दे रहा, योगदान है ख़ास || ------------------------------------------------- --------------------------------------- .....और मैं हतप्रभ सा देखता रह गया!(Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि...
चार दिनों से झेलता, झारखण्ड बरसात | नीलम का यह असर है, चलता झंझावात | चलता झंझावात, उपग्रह है प्राकृतिक | दर्पण सा अवलोक, गगन से घटना हर इक | हुवे घाघ अति श्रेष्ठ, पढ़ें संकेत अनोखे | करे आकलन शुद्ध, मिलें फल हरदम चोखे || |
(1)रविकर की धज्जियाँ उडाती आ. अरुण निगम की पोस्ट(2)आदरणीय रविकर जी की कुण्डलिया को समर्पित दो कुण्डलिया....(विचार आमंत्रित)...
भली बहस का अंत कर, रविकर कह कर जोर |
खुद में करूँ सुधार अब, छमहुं गलतियाँ मोर | छमहुं गलतियाँ मोर, खीर पूरी है खाना | पत्नी रही बुलाय, प्रेम से रविकर जाना | रही जलेबी छान, काम सब उसके बस का | रब की मेहर रहे, अंत अब भली बहस का || |
मैंने क्यूँ गाये हैं नारे
(पूरण खंडेलवाल)
गाँधी के बंदरों पर, नारे ये उत्कृष्ट । असर डाल पाते नहीं, दुष्ट कलेजे कृष्ण । दुष्ट कलेजे कृष्ण , कर्म रत रहिये हरदम । भूलो निज अधिकार, चलो चित्कारो भरदम । जूँ नहिं रेंगे कान, चले नारों की आँधी । आँख कान मुँह बंद, जमे अलबेले गाँधी ।। |
मेरा बेटा
http://www.openbooksonline.com/ होली में झटपट मले, चेहरे पे मुस्कान | लाल हरे के भेद से, बच्चा है अनजान | बच्चा है अनजान, दिवाली दीप बटोरे | क्रिसमस ईद मनाय, खिलौने से भर झोले | रहता खुद में मस्त, सजाता रहे रंगोली | बच्चा बच्चा रहे, मनाये यूँ ही होली || |
गांधी जी की प्रतिज्ञा
मनोज कुमार
भीष्म कुँवारे की शपथ, सरिस वचन यह श्रेष्ठ । परतंत्री कलिकाल में, यही लग रही ज्येष्ठ । यही लग रही ज्येष्ठ, आप इन्द्रिय सुख छोड़ा । धन्य धन्य हे वैद्य, सुधरता रोगी थोडा । त्याग तपस्या कर्म, अहिंसा सदगुण सारे । गाँधी दिखते श्रेष्ठ, पिछड़ते भीष्म कुंवारे ।। (विवेकानंद-दाउद जैसा मत समझ लेना विद्वानों ) |
हर लेख को सुन्दर कहा, श्रम को सराहा हृदय से,
अब तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला ले चलो ||
खूबसूरत शब्द चुन लो, भावना को कूट-कर के
माखन-मलाई में मिलाकर, मधु-मसाला ले चलो ||
विज्ञात-विज्ञ विदोष-विदुषी के विशिख-विक्षेप मे |
इस वारणीय विजल्प पर, इक विजय-माला ले चलो | वारणीय=निषेध करने योग्य विजल्प=व्यर्थ बात विशिख=वाण
विदोष-विदुषी= निर्दोष विदुषी विज्ञात-विज्ञ= प्रसिध्द विद्वान
क्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
ना आस्तीनों में छुपाओ, तीर - भाला ले चलो ||
टिप्पणी के गुण सिखाये, आपका अनुभव सखे,
चार-छ: लिख कर के चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
हल्की सफेदी तुम चढ़ाकर, हृदय-काला ले चलो |
टिप्पणी जय-जय करे, इक लेख पर दो बार हरदम-
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |
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मेरा भारत
lokendra singh
मोहन केशव सा लगे, बड़ा सुदर्शन चित्र | टोपी मामा ने पिन्हा, दिया छिड़क के इत्र | दिया छिड़क के इत्र, मित्र यह प्यार मुबारक | बना देश का यही, समझिये सच्चा तारक | विजयादशमी मने, जलेंगे दुष्टों के शव | लगा रखो उम्मीद, करेंगे मोहन केशव || उम्मीदों के चिराग़....!!!
उम्मीदों का जल रहा, देखो सतत चिराग |
घृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग | बनी रहे लौ-आग, दिवाली चलो मना ले | अपना अपना दीप, स्वयं अंतस में बालें | भाई चारा बढे, भरोसा प्रेम सभी दो | सुख शान्ति-सौहार्द, बढ़ो हरदम उम्मीदों || |
बहुत ही अच्छे लिंक्स संयोजित किये हैं आपने ...
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर लिंक्स
ReplyDeleteमुझे शामिल करने के लिए शुक्रिया