Tuesday, 20 November 2012

पैरों पर होना खड़े, सीखो सखी जरुर-




कुर(यथार्थवादी त्रिगुणामुत्मक मुक्तक काव्य)(छ)चोरों का संसार l(२)चोरी की दुनियाँ

Devdutta Prasoon 

चोर चोर में फर्क है, हट के थे वे चोर ।
उत उनका दारिद्र्य था, इत हैं जमा करोर ।
इत हैं जमा करोर, दौर नव चोरों का है ।
हरते नेता धनिक, माल जो औरों का है ।
जर जमीन लें हड़प, दबा दुष्कर्म शोर में ।
पंचायत है बड़ी, फर्क नहिं चोर चोर में ।।

पीला गुलाब - समापन सत्र.

प्रतिभा सक्सेना 
पैरों पर होना खड़े, सीखो सखी जरुर ।
 आये जब आपात तो,  होना मत मजबूर ।
 होना मत मजबूर, सिसकियाँ नहीं सहारा ।
कन्धा क्यूँकर खोज, सँभालो जीवन-धारा ।
समय हुआ विपरीत, भरोसा क्यूँ गैरों पर ?
 खुद से लिखिए जीत,  खड़े अपने पैरों पर ।।
  

नाड़ी-वैद्य

  (पुरुषोत्तम पाण्डेय)  
 नाड़ी नारी एक से, कुशल वैद्य जो आय ।
करे परिक्षण ध्यान से, तन-मन हाल बताय ।

दोहे

UMA SHANKER MISHRA 
उच्च-कोटि के दोहरे, तरह तरह के स्वाद ।
भ्रात उमा स्वीकारिये, देता रविकर दाद ।।

Virendra Kumar Sharma 
 
तैराकी के लाभ शत, संतरे रोकते छींक |
खाज पुदीना तेल से , बाल कडू से ठीक ||

कडू तेल=सरसों का तेल 

 

कैसे साफ़ कीजिएगा मुक्तावली को ?

Virendra Kumar Sharma 
 ram ram bhai


 रोज सिखाते जा रहे, सेहत भली बनाय ।
जीवन सुखमय कीजिये, मुक्तावलि  चमकाय ।

एक विचार कथा -शैतान का व्यापार

पारी पारी बेंचता, ईर्ष्या अत्याचार ।
अहंकार छल-कपट सह, बेईमानी  हथियार

बेईमानी  हथियार, सभी व्यापारी चाहें ।
सत्ता अत्याचार, विद्वता ईर्ष्या-आहें  ।

 कहता वह शैतान,  छल-कपट ले ले नारी ।
सांसारिक ले अहम् , खरीदे पारी पारी ।।
नूतन 
पानी जैसा धन बहा, मरते डूब कपूत ।
हुई कहावत बेतुकी, और आग मत मूत ।

और आग मत मूत, हिदायत गाँठ बाँध इक ।
बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक

कह रविकर कविराय, सिखाई दादी नानी
बन जा पानीदार, सुरक्षित रखना पानी ।।

मैके की अक्षुण रहे, सदा सहेली याद ।
खेलकूद झगड़े मया, खट्टे मीठे स्वाद । ।

3 comments:

  1. बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति

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  2. बहुत सुन्दर काव्यमयी प्रस्तुति!

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  3. सर अति सुन्दर लाजवाब प्रस्तुति....

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