कुर(यथार्थवादी त्रिगुणामुत्मक मुक्तक काव्य)(छ)चोरों का संसार l(२)चोरी की दुनियाँ
Devdutta Prasoon
चोर चोर में फर्क है, हट के थे वे चोर ।
उत उनका दारिद्र्य था, इत हैं जमा करोर ।
इत हैं जमा करोर, दौर नव चोरों का है ।
हरते नेता धनिक, माल जो औरों का है ।
जर जमीन लें हड़प, दबा दुष्कर्म शोर में ।
पंचायत है बड़ी, फर्क नहिं चोर चोर में ।।
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पीला गुलाब - समापन सत्र.
प्रतिभा सक्सेना
पैरों पर होना खड़े, सीखो सखी जरुर ।
आये जब आपात तो, होना मत मजबूर ।
होना मत मजबूर, सिसकियाँ नहीं सहारा ।
कन्धा क्यूँकर खोज, सँभालो जीवन-धारा ।
समय हुआ विपरीत, भरोसा क्यूँ गैरों पर ?
खुद से लिखिए जीत, खड़े अपने पैरों पर ।।
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नाड़ी-वैद्य
(पुरुषोत्तम पाण्डेय)
नाड़ी नारी एक से, कुशल वैद्य जो आय ।
करे परिक्षण ध्यान से, तन-मन हाल बताय ।
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दोहे
UMA SHANKER MISHRA
उच्च-कोटि के दोहरे, तरह तरह के स्वाद ।
भ्रात उमा स्वीकारिये, देता रविकर दाद ।।
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Virendra Kumar Sharma
तैराकी के लाभ शत, संतरे रोकते छींक |
खाज पुदीना तेल से , बाल कडू से ठीक || कडू तेल=सरसों का तेल कैसे साफ़ कीजिएगा मुक्तावली को ?रोज सिखाते जा रहे, सेहत भली बनाय ।
जीवन सुखमय कीजिये, मुक्तावलि चमकाय ।
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पारी पारी बेंचता, ईर्ष्या अत्याचार ।
अहंकार छल-कपट सह, बेईमानी हथियार
बेईमानी हथियार, सभी व्यापारी चाहें ।
सत्ता अत्याचार, विद्वता ईर्ष्या-आहें ।
कहता वह शैतान, छल-कपट ले ले नारी ।
सांसारिक ले अहम् , खरीदे पारी पारी ।।
| नूतन
पानी जैसा धन बहा, मरते डूब कपूत ।
हुई कहावत बेतुकी, और आग मत मूत ।
और आग मत मूत, हिदायत गाँठ बाँध इक ।
बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक
कह रविकर कविराय, सिखाई दादी नानी
बन जा पानीदार, सुरक्षित रखना पानी ।।
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मैके की अक्षुण रहे, सदा सहेली याद ।
खेलकूद झगड़े मया, खट्टे मीठे स्वाद । ।
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बहुत ही बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर काव्यमयी प्रस्तुति!
ReplyDeleteसर अति सुन्दर लाजवाब प्रस्तुति....
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