पारी पारी बेंचता, ईर्ष्या अत्याचार ।
अहंकार छल-कपट सह, बेईमानी हथियार ।
बेईमानी हथियार, सभी व्यापारी चाहें ।
सत्ता अत्याचार, विद्वता ईर्ष्या-आहें ।
कहता वह शैतान, अहं को ले संसारी ।
नर-नारी छल-कपट, बेंच लूँ पारी पारी ।।
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भक्त पापधी पानि-शत, करें प्रदूषित पानि ।
पानिप घटती पानि की, बनता बड़ा सयानि ।
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पानी जैसा धन बहा, मरते डूब कपूत ।
हुई कहावत बेतुकी, और आग मत मूत ।
और आग मत मूत, हिदायत गाँठ बाँध इक ।
बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक ।
कह रविकर कविराय, सिखाई दादी नानी ।
बन जा पानीदार, सुरक्षित रखना पानी ।।
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सन्देशा देती हुई, कविता भाव सटीक ।
दीवाली का दिया सच, भागे अंध-अलीक ।।
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अवसान के बाद का मूल्यांकन !
संतोष त्रिवेदी
कुछ कहना नहीं चाहता था इस विषय पर-
पर मित्र के लेख ने मनोभावों को प्रकट करने का मौका दिया -आभार वैसवारी || जहाँ मराठी अस्मिता, मारी हिंदु हजार | हिंदु-हृदय सम्राट पर, कौन करे एतबार | कौन करे एतबार, कई उत्तर के वासी | होते वहाँ शिकार, होय हमला वध फांसी | दोहन भय का दिखा, नहीं है कोई शंका | कृष्णा उद्धव राज, खौफ का बाजे डंका || |
होम-मिनिस्टर कर रहे, शाँति-समागम होम ।
समा रहा गम रोम में, धुँआ होम का रोम ।
धुँआ होम का रोम, मिनिस्टर हुवे विदेशी ।
रहा उन्ही का वित्त, विगाड़े हालत वेशी ।
जी डी पी बढ़ जाय, खर्च भी बढ़ता रविकर ।
किचेन कैबिनेट पस्त, मस्त हैं होम मिनिस्टर ।।
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फैलाए आँखे कुटिल, बाबा से कर भेंट ।
सदा पिनक में आलसी, लेता सर्प लपेट ।
लेता सर्प लपेट, समझता खुद को औघड़ ।
पी रविकर का रक्त, करे बेमतलब हुल्लड़ ।
कातिल सनकी मूढ़, पहुँचता बिना बुलाये ।
दुराचार नित करे, धर्म का भ्रम फैलाए ।
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बहुत उम्दा!
ReplyDeleteमन प्रसन्न हो गया!
मानव - धर्म से बढ़कर कुछ नहीं है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
ReplyDeleteबढिया
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स
वास्तव में आपकी कलम वो ताकत रखती है जो किसी भी वात को सहजता से वह वात कह सकती है जिस बात को कहने में गद्य को पूरा पेज भर जाए फिर काव्य की तो यह महिमा होती है कि मधु ही मधु हर तरफ बहता है।आपका ध्येय वाक्य भी सचमुच महान है कि वर्णों का आटा-------------------------क्रमवार सजाता हूँ।
ReplyDeleteआपने हम छोटे से आयुर्वेदिक ब्लागर का लिंक अपने ब्लाग पर देकर हमारा मान बढ़ाया आपका बार बार धन्यबाद
नूतन
ReplyDeleteपानी जैसा धन बहा, मरते डूब कपूत ।
हुई कहावत बेतुकी, और आग मत मूत ।
और आग मत मूत, हिदायत गाँठ बाँध इक ।
बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक ।
कह रविकर कविराय, सिखाई दादी नानी ।
बन जा पानीदार, सुरक्षित रखना पानी ।।
बहुत खूब अभिनव इस्तेमाल किया है पानी का पानी के रंग और उसकी धार का आब का .