कार्टून कुछ बोलता है -उज्जैन का खोता मेला
दिखा पिछाड़ी जो रहा, रविकर वही अमूर्त |
दो कौड़ी में बिक गया, लेता ग्राहक धूर्त | लेता ग्राहक धूर्त, राष्ट्रवादी यह खोता | खोता रोता रोज, यज्ञ आदिक नहिं होता | खुली विदेशी शॉप, खींचता उनकी गाड़ी | बनता लोमड़ जाय, अनाड़ी दिखा पिछाड़ी || |
विवाहेतर सम्बन्ध (लेख)
Kavita Verma
सपने ज्यादा गति बढ़ी, समय किन्तु घट जाय |
महत्वकांक्षा अहम् मद, मेटे नहीं मिटाय | मेटे नहीं मिटाय, गौण बच्चे का सपना | घर-ऑफिस बाजार, स्वयं ही हमें निबटना | मांगे हम अधिकार, लगे कर्तव्य खटकने | भोगवाद की जीत, मिटे ममता के सपने || |
अधूरे सपनों की कसक : एक विश्लेषण और उपलब्धि !
रेखा श्रीवास्तव
न्यौछावर सपने किये, अपने में संतुष्ट ।
मातु-पिता पति प्रति सजग, पुत्र-पुत्रियाँ पुष्ट ।
पुत्र-पुत्रियाँ पुष्ट, वही सपने बन जाते ।
खुद से होना रुष्ट, यही तो रहे भुलाते ।
सब रिश्तों में श्रेष्ठ, बराबर बैठा ईश्वर ।
परम-पूज्य है मातु, किया सर्वस्व निछावर ।।
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फेसबुक तनाव देता है सिब्बल एंड पार्टी को..
ZEAL
टेंसन देता फेसबुक, लेता सिब्बल लेट ।
यह तो है मस्ती भरा, तिकड़म तनिक समेट ।
तिकड़म तनिक समेट, तीन से बचना डेली ।
मोहन राहुल मॉम, बड़ी घुड़साल तबेली ।
सो जा चद्दर तान, भली भगवान् करेंगे ।
कर मोदी गुणगान, जिरह बिन नहीं मरेगा ।।
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'दिल' और 'दिमाग'
विवेक मिश्र
दिल-दिमाग में पक रही, खिचड़ी नित स्वादिष्ट ।
दिल को दूजा दिल मिला, नव-रिश्ते हों श्लिष्ट ।
नव-रिश्ते हों श्लिष्ट, मस्त हो जाती काया ।
पर दिमाग अति-क्लिष्ट, नेक दिल को भरमाया ।
पड़ती दिल में गाँठ, झोंकता प्रीत आग में ।
दिल बन जाय दिमाग, फर्क नहिं दिल दिमाग में ।।
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इक ऐसा सच!!!
Rajesh Kumari
व्यथा मार्मिक है सखी, शुरू कारगिल युद्ध । तन मन में हरदम चले, वैचारिकता क्रुद्ध । वैचारिकता क्रुद्ध , पकड़ जग-दुश्मन लेता । दुष्ट दानवी सोच, छेद वह काया देता । लड़िये जब तक सांस, कामना सत्य हार्दिक । रखिये याद सहेज, बड़ी यह व्यथा मार्मिक ।।
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आसक्ति की मृगतृष्णा
बाँध-बूँध कर लें छुपा, विचलित मन की मीन । विचलित मन की मीन, जीन का किया परीक्षण । बढ़े लालसा काम, काम नहिं आवे शिक्षण । नोट जमा रंगीन, सीन को चूमे रविकर । 'पानी' मांगे मीन, मरे पर जोड़-गाँठ कर । |
Aabhaar Ravikar ji
ReplyDeleteकुंडलिया है बड़े काम की!
ReplyDeleteकार्टून कुछ बोलता है -उज्जैन का खोता मेला
ReplyDeleteदिखा पिछाड़ी जो रहा, रविकर वही अमूर्त |
दो कौड़ी में बिक गया, लेता ग्राहक धूर्त |
लेता ग्राहक धूर्त, राष्ट्रवादी यह खोता |
खोता रोता रोज, यज्ञ आदिक नहिं होता |
खुली विदेशी शॉप, खींचता उनकी गाड़ी |
बनता लोमड़ जाय, अनाड़ी दिखा पिछाड़ी ||
बढ़िया मारा है निचोड़ के संसदीय खोतों को .बधाई .
वो वो कहकहे
वो वो वो
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण लेकिन कुछ तो बे -वफाई के जीन (जीवन खंड )भी होतें हैं .परिवर्तन प्रकृति का नियम है पूरब पश्चिम का विलय हुआ चाहता है .
अधूरे सपनों की कसक : एक विश्लेषण और उपलब्धि !
रेखा श्रीवास्तव
मेरी सोच
न्यौछावर सपने किये, अपने में संतुष्ट ।
मातु-पिता पति प्रति सजग, पुत्र-पुत्रियाँ पुष्ट ।
पुत्र-पुत्रियाँ पुष्ट, वही सपने बन जाते ।
खुद से होना रुष्ट, यही तो रहे भुलाते ।
सब रिश्तों में श्रेष्ठ, बराबर बैठा ईश्वर ।
परम-पूज्य है मातु, किया सर्वस्व निछावर ।।
.माया तू न गई मेरे मन से /माया तेरे तीन नाम ,परसी पर्सा ,परसराम /माया महा ठगनी हम जानी ...कोई सुने तब न एक ओब्सेसन है माया ....भ्रम है हेलुसिनेसन है ,सटीक पोस्ट .
ReplyDeleteआसक्ति की मृगतृष्णा
सुज्ञ
जोड़-गाँठ कर तह करे, जीवन चादर क्षीण ।
बाँध-बूँध कर लें छुपा, विचलित मन की मीन ।
विचलित मन की मीन, जीन का किया परीक्षण ।
बढ़े लालसा काम, काम नहिं आवे शिक्षण ।
नोट जमा रंगीन, सीन को चूमे रविकर ।
'पानी' मांगे मीन, मरे पर जोड़-गाँठ कर ।
कभी बे -सबब रहा करो ,
ReplyDeleteकभी कुछ भी न किया करो ,
कभी यूं ही कुछ किया करो ,
कभी बे -वजह फिरा करो ,
मुख चिठ्ठे पे भी दिखा करो ...
वो वो कहकहे
फेसबुक तनाव देता है सिब्बल एंड पार्टी को..
ZEAL
ZEAL
टेंसन देता फेसबुक, लेता सिब्बल लेट ।
यह तो है मस्ती भरा, तिकड़म तनिक समेट ।
तिकड़म तनिक समेट, तीन से बचना डेली ।
मोहन राहुल मॉम, बड़ी घुड़साल तबेली ।
सो जा चद्दर तान, भली भगवान् करेंगे ।
कर मोदी गुणगान, जिरह बिन नहीं मरेगा ।।
बदमाश है स्पैम बोक्स किसी बदजात सा .पी गया टिप्पणियाँ .
ReplyDeleteसुंदर टिप्पणियों से सटीक विश्लेषण,,,
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